17 जुलाई से थम जायेगी शहनाई

17 जुलाई से थम जायेगी शहनाई

हरिशयन एकादशी को प्रारंभ होगा देवताओं का विश्रामकाल, चार मांह बाद खुलेंगे मुहूर्त

बांधवभूमि न्यूज

मध्यप्रदेश

उमरिया
चातुर्मास आरंभ होने मे अब केवल तीन दिन शेष रह गये हैं। ज्योतिषाचार्यो के अनुसार आगामी 17 जुलाई से वैवाहिक कार्यों पर विराम लग जाएगा। सनातन धर्म को मानने वालों के लिये करीब चार महीने बाद अर्थात नवंबर से शुभकार्यो के मुहूर्त खुलेंगे। नवंबर और दिसंबर के महीने मे 9-9 दिनों तक शहनाई बजेगी। गौरतलब है कि वैवाहिक कार्यो के लिये माघ, फाल्गुन, वैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ़ और अगहन अत्यंत शुभ माना जाता है। ज्योतिष शा ों मे ग्रहों के स्थान परिवर्तन से मानव जीवन, पृथ्वी एवं व्रत त्योहार के साथ मांगलिक कार्यों पर भी असर पड़ता है। बीते दो माह से शुक्र व गुरु ग्रह के अस्त होने के कारण मांगलिक कार्य पर विराम लगा हुआ था। ऐसे में अप्रैल व मई में शादियां व मांगलिक उत्सव नहीं हो रहा था। शुक्र व गुरु  के उदय होने के साथ नौ जुलाई से वैवाहिक कार्यक्रम आरंभ हो गया। हालांकि 15 जुलाई के बाद मांगलिक कार्य पर विराम लग जाएगा।

क्या है चातुर्मास की मान्यता
हिन्दू धर्म की मान्यता है कि आषाढ़ शुक्ल एकादशी यानी हरिशयन एकादशी 17 जुलाई को भगवान विष्णु चार माह के लिए क्षीर सागर में विश्राम करेंगे। इस दौरान मांगलिक पर विराम लगा रहता है। काॢतक शुक्ल एकादशी 12 नवंबर को देवोत्थान एकादशी के दिन भगवान विष्णु के योग निद्रा से जागृत होने के बाद वैवाहिक कार्यक्रम आरंभ हो जायेंगे। देवोत्थान एकादशी के दिन गोधूलि बेला मे शंख, डमरू, मृदंग, झाल और घंटी बजा कर भगवान नारायण को निद्रा से जगाया जाता है। कहा जाता है कि चातुर्मास के दौरान सृष्टि का संचालन भगवान शिव करते हैं। छत्तीसगढ के ज्योतिषाचार्य चंदन शर्मा ने बताया कि शादी-ब्याह व मांगलिक कार्यों के लिए गुरु, शुक्र व सूर्य का शुभ होना जरूरी होता है। रवि-गुरु का संयोग सिद्धि दायक और शुभ फलदायी होता है।

आगे आने वाले शुभ मुहूर्त
नवंबर 16,17,22,23,24,25,26,28,29
दिसंबर 2,3,4,5,9,10,11,14,15

शहदत का पर्व मोहर्रम बुधवार को
हजरत इमाम हुसैन की शहादत का पर्व मोहर्रम 17 जुलाई को पूरी अकीदत और एहतमाम से मनाया जाएगा। हमेशा की तरह दोपहर बाद बाबा हुजूर की सवारी इमामबाड़ा से निकल कर मुरादगाह मे मुरीदों को दुआओं से नवाजेगी। कड़ी मेहनत से तैयार ताजिये निकाले जायेंगे। चौराहों पर चाय वितरण और लंगरे आम होगा। अखाड़ों पर कलाबाजों के हैरतंगेज करतब होगे और छाती पीटते शियाओं से समां गमगीन हो जायेगा। उमरिया का मोहर्रम सबसे जुदा और खास है जो बरबस ही जायरीनो को यहां खीच लाता है।  शहर मे मनाया जाने वाला यह त्यौहार सदियों से इसलिये भी खास रहा है, क्योंकि इसमे हर धर्म के लोगों के बराबर की हिस्सेदारी होती है। सवारी के सांथ सिर पर हरा रूमाल बांधे हजारों लोगों के हुजूम मे यह पहचानना मुश्किल हो जाता है कि इनमे कौन हिन्दू है और कौन मुसलमान। वास्तव मे कौमी एकता उमरिया को विरासत मे मिली है जो उसे अलग पहचान देती है।

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