शी..शी..पार्क के बाहर खतरा है
वन विभाग की निष्क्रियता से असुरक्षित हुए वन्य जीव और जंगल
बांधवभूमि न्यूज
मध्यप्रदेश, उमरिया
संत कबीर और संगीतज्ञ तानसेन जैसे अनेक महापुरूषों की तपोभूमि उमरिया जिला बेशकीमती खनिज, अमृत रूपी फल, फूल, जड़ी बूटियों के अलावा सुरम्य वनो और बाघ, तेंदुए, हिरण, चीतल, सांभर जैसे दुर्लभ जीवों के लिये देश ही नहीं पूरी दुनिया भर मे विख्यात है। एक जमाना था जब ये खूबसूरत जंगली जानवर पूरे जिले मे फैले हुए थे। और तो और आये दिन वे शहरी और ग्रामीण इलाकों मे भी पहुंच जाते थे, परंतु अवैध शिकार तथा अन्य कारणो से उनका कुनबा सिमटता चला गया। वर्तमान मे कई क्षेत्र वन्यजीवों से पूरी तरह खाली हो गये हैं। इसका मुख्य कारण वन विभाग की निष्क्रियता, भ्रष्टाचार और लापरवाही है। आलम यह है कि पार्क के बाहर न तो जानवर सुरक्षित है और नां ही जंगल। इन क्षेत्रों पर लकड़ी माफिया और शिकारियों का कब्जा हो चुका है। अपराधी तत्व बहुमूल्य इमरती लकड़ी और रेत के अलावा भोजन की तलाश मे उद्यान से भटक कर आये वन्यजीवों पर घात लगाये बैठे रहते हैं। सूत्रों का दावा है कि नेशनल पार्क से रहस्यमयी तरीके से गायब हुए बाघ यहीं निपटाये जाते हैं। बाद मे बड़ी आसानी से उन्हे तस्करों को सौंप दिया जाता है।
डकार जाते हैं सरकार का बजट
गौरतलब है कि राष्ट्रीय उद्यान बांधवगढ़ की तरह जंगल और वन्य जीवों की सुरक्षा सुनिश्चित करना सामान्य वन मंडल तथा वन विकास निगम की भी जिम्मेदारी है। जहां पार्क की तर्ज पर ग्राम वन तथा सुरक्षा समितियां गठित हैं। इन महकमो को संयुक्त वन प्रबंधन के तहत विभिन्न गतिविधियां संचालित करने के निर्देश हैं। जिसके लिये शासन द्वारा भारी-भरकम बजट और संसाधन मुहैया कराया जाता है। बताया जाता है कि वन मण्डल और निगम सरकार द्वारा भेजा गया पैसा तो पूरा खर्च करते हैं, पर उनकी कोई गतिविधि दिखाई नहीं देती। सूत्रों का दावा है कि वर्षाे से दोनो महकमो के अधिकारी सारे आयोजन कागजों पर करा कर शासन का बजट डकार रहे हैं।
जिले से गायब हुए सांभर
जानकारों का कहना है कि अधिकारियों की अकर्मण्यता, धांधली और शिकार के कारण राष्ट्रीय उद्यान के बाहर स्थित जंगल अब पूरी तरह से वन्यजीव रिक्त हो गये हैं। विशेषकर सांभर जैसे जानवर तो गायब ही हो गये हैं। पहाड़ी क्षेत्र की पथरीली जमीनो पर विचरण करने वाला यह जीव बांधवगढ़ नेशनल पार्क, उसके आसपास के अलावा चंदिया तहसील अंतर्गत हर्रवाह, बिलासपुर तथा भांगराज के जंगलों मे भारी तादाद मे पाया जाता था। सांथ ही हिरण की प्रजाति चौसिंगा, चिंकारा, सेही आदि दुर्लभ जीव भी विलुप्त होने की कगार पर हैं। सूत्र कहते हैं वन्यजीवों से आबाद जिले के जंगलों को तहस-नहस करने मे दावतों के लिये हो रहा हिरण, चीतल, सांभर आदि का शिकार तथा पारधी गिरोह का बड़ा योगदान है।
राष्ट्रीय उद्यान के कारण बचा जंगल
वनो की दयनीय हालत के कारण पर्यावरण प्रेमियों की चिंतायें बढ़ती जा रही है। वे कहते हैं कि यदि बांधवगढ़ को राष्ट्रीय उद्यान का दर्जा न मिला होता तो यहां की हालत भी वन मण्डल और विन विकास निगम के जंगलों जैसी ही होती। बताया जाता है कि मण्डल तथा निगम के कई इलाके किसी समय सागौन, सरई तथा अन्य प्रजाति के वृक्षों से सराबोर थे, जो अब वीरान हो गये हैं। नौरोजाबाद परिक्षेत्र तो कई सालों तक सागौन की सप्लाई का मुख्य केन्द्र बना रहा। जहां अब कटे पेड़ों के ठूठ की दिखाई पड़ते हैं। उल्लेखनीय है कि सरकार द्वारा बांधवगढ़ को वर्ष 1968 मे राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया गया था, जबकि 1993 मे यहां प्रोजेक्ट टाईगर लागू हुआ। इसके बाद से ही यहां बाघों की संख्या तेजी से बढऩे लगी तथा पर्यटन की संभावनाओ का उदय हुआ।