रिमझिम बारिश ने दिलाई राहत
वातावरण मे आई ठंडक, खरीफ की तैयारी मे जुटे किसानो को मानसून का इंतजार
बांधवभूमि न्यूज
मध्यप्रदेश
उमरिया
जिले मे गुरूवार को हुई रिमझिम बारिश ने गर्मी से तप रहे वातवरण मे ठंडक घोल दी है। हलांकि बारिश का दौर ज्यादा देर तक नहीं चला, फिर भी इससे तापमान मे काफी गिरावट आई है। सांथ ही रूक-रूक कर हो रही बूंदाबांदी से खरीफ की तैयारी मे जुटे किसानो की ङ्क्षचता कुछ कम हुई है। गौरतलब है कि हर साल जून के पहले या दूसरे सप्ताह मेे आमतौर पर लोकल सिस्टम सक्रिय हो जाता है। हल्की-फुल्की बारिश से किसान मक्के की बुवाई मे जुट जाते हैं, परंतु इस बार ऐसा नहीं हुआ। जून की शुरूआत से ही तेज धूप ने लोगों को हलाकान किये रखा, इस दौरान तापमान 40 से 43 डिग्री के बीच बना रहा। बीते कुछ दिनो से आसमान पर बादलों की आवाजाही शुरू हो गई परंतु वर्षा का कहीं अता-पता नहीं चल रहा था, वहीं तेज उमस भरे ताप से जनजीवन पूरी तरह अस्तव्यस्त हो गया। मौसम के इस मिजाज से जहां खरीफ की खेती पिछड रही है, वहीं कई क्षेत्रों मे पेयजल संकट गहरा गया है। जानकारों का मानना है कि प्री मानसून की वजह से यह बारिश हो रही है, एक या दो दिनो मे मानसून जिले मे दस्तक दे सकता है। मौसम विभाग ने इस वर्ष संभाग मे औसत के मुकाबले 95 प्रतिशत बारिश होने का अनुमान जताया है।
वर्षा पर निर्भर है खेती
सरकारी रिकार्ड भले ही जिले मे सिचाई का रकबा 18 हजार हेक्टेयर होने का दावा करता है, पर हकीकत मे बात कुछ और ही है। सूत्र बताते हैं कि जलाशयों से महज आठ से दस हजार हेक्टेयर जमीन की सिचाई ही हो पाती है। जबकि कुछ सिचाई कुओं, नलकूपों, नदी, तालाबों के माध्यम से की जाती है। यहां पर भी सिर्फ दो-या तीन बार सिचाई संभव है। फरवरी आते-आते ये जल ोत भी रीत जाते है। बताया जाता है कि जिले की करीब आठ हजार हेक्टेयर खेती की सिचाई भगवान भरोसे है, अर्थात वर्षा पर निर्भर है। लिहाजा किसान जानता है कि बगैर पर्याप्त मानसून की वर्षा के खेती संभव नहीं है। कृषि क्षेत्र से जुडे लोगों का कहना है कि धान की रोपाई की रोपाई के लिये कम से कम चार इंच बारिश जरूरी है।
उमरार पर बढा दबाव
जिला मुख्यालय से सटे खेतों की सिचाई उमरार जलाशय के भरोसे है, जिसकी हालत किसी से छिपी नहीं है। कहा जाता है कि इस जलाशय की डिजाईन इतनी शानदार थी कि कुछ मिनटों की वर्षा से ही यह लबालब हो जाता था, लेकिन बीते कुछ वर्षा के दौरान बांध के ऊपरी हिस्से मे बिना किसी योजना और आचित्य के बनवाये गये दर्जनो स्टाप तथा चेकडेमो के चलते इसका कैचमेंट एरिया सिकुड गया है। बारिश की कमी तथा पानी की आवक के अवरोधों की वजह से उमरार का भराव नहीं हो रहा है। दूसरी ओर इसी जलाशय से उमरिया नगर सहित कई गांवों को पेयजल की आपूॢत हो रही है, ऐसे मे प्रशासन को सिचाई के लिये पानी खोलने पर बेन लगाना पडता है।
ठण्डे बस्ते मे मछडार लाने की परियोजना
उमरार जलाशय मे आ रही पानी की कमी को दूर करने कुछ साल पहले जल संसाधन विभाग द्वारा तामन्नारा के समीप स्थित मछडार नदी को लाने की योजना बनाई गई थी। इसके लिये टेण्डर की प्रक्रिया भी चालू हो गई, परंतु बात आगे नहीं बढी। हर बार गर्मी के सीजन मे पानी का संकट गहराते ही अधिकारी मछडार को उमरार मे उडेलने की फाईल को निकालते, परंतु जैसे ही बारिश शुरू होती, इसे फिर अलमारी मे बंद कर दिया जाता। इस तरह एक महात्वाकांक्षी परियोजना धरी की धरी रह गई। दूसरी तरफ शहर की उमरार नदी का जलस्तर बढाने के लिये चपहा नाले को इससे मिलाने की चर्चा भी आज तक क्रियान्वित नहीं हो सकी है। यह बात और है कि बढती आबादी के कारण उमरार जलाशय और उमरार नदी दोनो पर ही दबाव लगातार बढ रहा है। ऐसे मे अगर जल्दी ही कोई ठोस उपाय नहीं हुए तो नकेवल शहर बल्कि आसपास के क्षेत्रों के लिये पेयजल की दिक्कत बढना तय है।