बीमार अस्पताल पर इलाज का दारोमदार
डायलिसिस समेत कई सुविधायें ठप्प, मरीज परेशान, कमीशनबाज अधिकारियों की मौज
बांधवभूमि न्यूज
मध्यप्रदेश
उमरिया
अपनी आधी से ज्यादा कमाई टेक्स पर देने वाली जनता को यदि मामूली इलाज की सुविधा तक नसीब न हो, इससे ज्यादा दुर्भाग्य की बात भला क्या हो सकती है। आज हर नागरिक ऐसी ही समस्या से दो-चार है। सबसे ज्यादा दुर्दशा जिला चिकित्सालय की है, जिसके पास शायद दिल्ली के एम्स अस्पताल जितनी बडी बिल्डिंग तो है, पर वहां न तो डॉक्टर हैं, न पर्याप्त स्टाफ और नां ही दवायें। अस्पताल मे जो मशीने लगी हैं, वे भोपाल की संस्थायें ठेके पर चला रही हैं। इनमे से अधिकांश मशीने महीनो से खराब हैं। यह बात अलग है कि भ्रष्ट अधिकारियों की मिलीभगत से कम्पनियों का भुगतान बराबर हो रहा है। यही हालत जिले के अन्य सामुदायिक स्वास्थ्य एक तरफ केन्द्र और राज्य सरकारें शहरों और कस्बों की जनता को बेहतर स्वास्थ्य सेवायें मुहैया कराने के लिये हर मांह मे करोडों रूपये आवंटित कर रही है तो वहीं जिम्मेदार अमला इस पैसे की बंदरबांट मे जुटा हुआ है। यही कारण है कि मरीजों को क्रिटिकल कंडीशन तो दूर सामान्य परिस्थितियों मे भी इलाज नहीं मिल पा रहा है।
पांच मे से चार मशीने बंद
जिला अस्पताल मे व्याप्त अव्यवस्था से हार्ट, लीवर, किडनी जैसी गंभीर बीमारियों से जूूझ रहे मरीजों को भारी परेशानी का सामना करना पड रहा है। बताया जाता है कि यहां डायलिसिस सुविधा का संचालन भोपाल की अपेक्स किडनी केयर द्वारा किया जा रहा है। जिसके द्वारा चिकित्सालय मे कुल पांच सिस्टम स्थापित किये गये हैं। सिस्टम को ऑपरेट करने के लिये आऊट सोर्सिग कम्पनी ने तीन टेक्नीशियन लगा रखे हैं, इनमे से एक ने जॉब छोड दिया है। डायलिसिस मशीनो की बात करें तो पांच मे से चार खराब पडी हैं। हलांकि अधिकारियों ने कल ही दो और मशीने के चालू होने की बात कही है। इस हिसाब से 2 अभी भी चलने की स्थिति मे नहीं हैं। कुल मिला कर एक बीमार और अस्त-व्यस्त अस्पताल पर हजारों मरीजों के इलाज का दारोमदार है।
बाहर से ही कर देते हैं रेफर
एक जमाना था जब हार्ट अटैक के समय डॉक्टर मरीजों को हिलने-डुलने तक से मना करते थे, परंतु जिले के नये कर्णधार ऐसे मामलों मे जरा भी संवेदनशीलता का परिचय नहीं देते। इतना ही नहीं ऐसे गंभीर रोगियों के अस्पताल पहुंचते ही डॉक्टर इस कोशिश मे जुट जाते है कि कितनी जल्दी उसे दफा कर दिया जाय। वे यह तो जानते ही होंगे कि एक्जर्शन अटैक के मरीज के लिये जानलेवा साबित हो सकता है, इसके बाद भी उसे बाहर से ही रेफर कर अपना पिंड छुडा लिया जाता है।
डाक्टरों के 38 पद खाली
केवल बदइंतजामी ही नहीं स्टाफ की कमी भी स्वास्थ्य सेवाओं की दुर्दशा का मुख्य कारण है। पूरे जिले मे विशेषज्ञ तथा मेडिकल आफिसरों के अस्सी प्रतिशत तक पद खाली पडे हैं। केवल जिला चिकित्सालय मे ही 38 पद रिक्त हैं। जानकारी के अनुसार अस्पताल मे विशेषज्ञ चिकित्सकों की 30 पोस्ट हैं, जिनमे से महज 20 खाली हैं। वहीं 19 मेडिकल आफिसरों मे से सिर्फ एक अधिकारी अपनी सेवायें दे रहा है।
सीएमएचओ नहीं ले रहे दिलचस्पी
जिला अस्पताल से लेकर सामुदयिक एवं प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों तक हर जगह भर्रेशाही का आलम है। अस्पताल दुर्गन्ध और गंदगी से बजबजा रहे हैं। वहां इलाज के लिये पहुंचे मरीज और उनके परिजन यहां से वहां भटक रहे हैं। कहीं किसी की सुनवाई नहीं हो रही है। इसका मुख्य कारण महकमे के जिम्मेदार अधिकारी हैं। कुछ महीने पहले एक नाटकीय घटनाक्रम के बाद पद से हटाये गये डॉ. आरके मेहरा के स्थान पर शिवबहोर चौधरी को सीएमएचओ की जिम्मेदारी सौंपी गई थी परंतु उनकी निष्क्रियता से समस्या और भी गंभीर हो गई है। विभाग से जुडे सूत्र बताते हैं कि श्री चौधरी की दिलचस्पी शहरी और ग्रामीण क्षेत्र की स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर बनाने से ज्यादा समय काटने और सप्लायरों तथा आऊट सोर्सिग कम्पनियों के भुगतान मे ज्यादा रहती है। वे अधिकांश समय जिले से बाहर रहते हैं। उनकी कार्यप्रक्रिया का व्यवस्थाओं को पलीता लगाने मे कम योगदान नहीं है।