बिना आहट के बच्चे को ले गया बाघ
डेढ़ किमी अंदर जंगल मे मिला शव, पिपरिया से तीन मील दूर की घटना
बांधवभूमि न्यूज
मध्यप्रदेश
उमरिया
जिला मुख्यालय से महज 9 किमी दूर ग्राम बड़वार के पास बाघ द्वारा एक किशोर को मौत के घाट उतारने की घटना ने जिले भर मे हडकंप मचा दिया है। बताया जाता है मृतक विजय कोल पिता अर्जुन कोल 14 निवासी पिपरिया शनिवार की सुबह अपने पिता, दादा तथा अन्य परिजनो के सांथ महुआ बीनने जंगल की तरफ गया था। इसी दौरान करीब 7 बजे बाघ बिना आहट के उसे उठा कर ले गया। काफी दूर जाने के बाद परिजनो की नजर बाघ और उसके जबड़े मे फंसी किसी चीज पर पड़ी, तो उन्होने समझा कि वह किसी शिकार को लेकर जा रहा है। इसके बाद वे महुआ बीनने मे जुट गये। तभी अचानक इन लोगों ने महसूस किया विजय वहां मौजूद नहीं है। जिसके बाद तो जैसे अफरा-तफरी मच गई।
लाश तक ले गये खून के निशान
कुछ देर तक यहां-वहां खोजने के बाद परिजनो को समझ आ गया कि बाघ उनके बेटे को ही ले गया है। आनन-फानन मे सभी उसी दिशा की ओर भागे, जिस तरफ बाघ को जाते हुए देखा गया था। इसी बीच उन्हे जमीन पर खून के निशान दिखे। जिनके सहारे बढऩा शुरू किया गया। बताया गया है कि पिपरिया से करीब ढाई किमी दूर सरैया इलाके मे नाले के पास उन्हे विजय कोल का शव क्षत-विक्षत अवस्था मे पड़ा मिला। घटना की सूचना पर वन विभाग के वरिष्ठ अधिकारी मौके पर पहुंचे और हालात का जायजा लिया। पीएम के उपरांत मृतक का शव परिजनो को सौंप दिया गया है।
उमरिया के आसपास हो रहा मूवमेंट
पिपरिया के पास हुई इस घटना ने एक बार फिर जिला मुख्यालय के समीप बाघों की मूवमेंट बढऩे का संकेत दिया है। हलांकि यह पहला मौका नहीं है, जब टाईगर शहर के आसपास देखे गये हों। करीब 5 साल पहले चपहा कॉलरी के पास बाघ के पगमार्क मिले थे, जो धनवाही से जंगल की ओर चले गये थे। इसी तरह एक बाघ ने नेशनल हाईवे के समीप स्थित राधा स्वामी सत्संग भवन से अमड़ी होते हुए हर्रवाह की तरफ कूच किया था। जबकि पिपरिया मे ही बाघ द्वारा पशुओं का शिकार करने की घटनायें कई बार हो चुकी हैं।
ले आती है आसान शिकार की तलाश
वन्यजीव विशेषज्ञों के मुताबिक बाघों का रिहायशी बस्तियों की तरफ पलायन कई कारणो से हो रहा है। इनमे से पहला बांधवगढ़ टाईगर रिजर्व से गावों का विस्थापन है। जिसके कारण खेत-खलिहान बंजर होते जा रहे हैं। बताया जाता है कि हिरण, चीतल जैसे बाघ के प्रिय भोजन अक्सर नर्म घांस के लिये गावों तथा उनसे लगे खेतों की ओर रूख करते हैं। जिनको खोजते हुए बाघ भी आ जाते हें। यहीं पर उन्हे आसान शिकार याने गाय, भैंस और बकरी जैसे पालतू जीव भी उपलब्ध हो जाते हैं, जिन्हे बिना मेहनत के दबोचा जा सकता है। जानकारों का मत है कि जैसे-जैसे विस्थापन होता जायेगा, हिरण-चीतल और उनके पीछे-पीछे बाघों का भी गाव और शहरों मे दखल भी बढ़ेगा।

