बाघों की कत्लगाह बना पनपथा और पतौर
बांधवगढ राष्ट्रीय उद्यान मे फिर हुई मौत, मौजूदा साल मे अलविदा होने वाला ग्यारहवां टाईगर
बांधवभूमि, रामाभिलाष त्रिपाठी
मध्यप्रदेश
उमरिया
मानपुर। जिले के राष्ट्रीय उद्यान बांधवगढ मे लगातार हो रही बाघों की मौत ने प्रबंधन तथा वन्यजीव प्रेमियों को चिंता मे डाल दिया है। गत दिवस पनपथा परिक्षेत्र के बिरहुली-करौंदिया के पास एक और बाघ का शव पाया गया है। पार्क के उप संचालक पीके वर्मा ने बताया कि गुरूवार को स्थानीय किसान ने बाघों मे बीच भिडंत की आवाजें सुनी थीं। इसकी सूचना मिलते ही हाथीं तथा कर्मचारियों का दल मौके के लिये रवाना किया गया। इसी दौरान गश्ती दल को जंगल मे एक बाघ का शव मिला। जिसकी आयु करीब दो वर्ष थी। मृत बाघ का पिछला हिस्सा खा लिया गया था। जिस समय कार्यवाही चल रही थी, तब भी अन्य बाघ की दहाडें सुनाई दे रही थी, जिसकी वजह से किसी को भी पैदल जाने से रोका गया। रात हो जाने की वजह से शेष कार्यवाही शुक्रवार को पूरी की गई। श्री वर्मा के मुताबिक पशु विशेषज्ञ डॉ.नितिन गुप्ता, डॉ.अभय सेंगर तथा डॉ.हिमांशु जोशी के दल मे बाघ का पीएम किया। इसके उपरांत एनटीसी, के प्रतिनिधि चंद्रमोहन खरे, क्षेत्र संचालक एलएल उईके, उप संचालक पीके वर्मा, अतिरिक्त उप संचालक, परिक्षेत्राधिकारियों, तहसीलदार, सरपंच बरमानी तथा विभागीय स्टाफ की उपस्थिति मे बाघ का शवदाह किया गया।
भारी पड रही लापरवाही
गुरूवार को हुई घटना को मिला कर मौजूदा साल मे बाघों की मौत का यह 11वां मामला है। बीती 28 मई को ही पार्क मे एक बाघ की मौत हुई थी। आश्चर्य की बात यह है कि अधिकांश मौतें बांधवगढ टाईगर रिजर्व के पनपथा और पतौर परिक्षेत्र मे ही हो रही हैं। लिहाजा यह इलाका उनके लिये कत्लगाह बनता जा रहा है। प्रबंधन भले ही इस घटना को भी बाघों की टेरीटेरी फाइट का नतीजा कहे, परंतु यहां तैनात अधिकारियों की लापरवाही इसके लिये कम जिम्मेदार नहीं है। बताया जाता है कि पनपथा और पतौर मे तैनात अधिकारी दुर्लभ वन्यजीवों की सुरक्षा तथा आपसी संघर्ष की घटनायें रोकने के उपायों पर ध्यान देने की बजाय फोटोग्राफी और अपने चहेतों को पार्क भ्रमण कराने मे व्यस्त रहते हैं। इसी का नतीजा है कि आये दिन दुर्लभ वन्यजीवों को अपनी जान से हांथ धोना पड रहा है।
रिसोर्टो ने तैयार किया घेरा
बांधवगढ नेशनल पार्क मे कुकुरमुत्तों की तरह पनपे होटल और रिसोर्ट वन्यजीवों के लिये खतरे का सबब बन गये हैं। कई संचालकों ने नियम विरूद्ध तरीके से इस तरह अपने होटलों का निर्माण कराया है, जिससे जानवर आसपास नकेवल दिखाई दें, बल्कि उनके बाडे मे भी आ जांय। सूत्रों का दावा है कि इस तरह की बनावट के कारण ही एक बार वहां आये जानवर फिर वापस नहीं जा पाते। जानकारों का मानना है कमजोर अथवा उम्रदराज बाघ को एक समय के बाद अपना इलाका नये रंगरूट के लिये छोडना पडता है, परंतु होटल और रिसोर्टो की वजह से वे बाहर नहीं निकल पाते। इसी का नतीजा आपसी संघर्ष की घटनाओं मे बढोत्तरी और बाघों की बेतहाशा मौतें है। मजे की बात तो यह है कि वन विभाग या राष्ट्रीय उद्यान अथॉरिटी छोटे मोटे शिकार के मामलों मे गरीब ग्रामीणो पर तो सारे नियम कानून लाद देती है, पर खुलेआम प्रावधानो की धज्जियां उडाने वाले रईस होटल-रिसोर्ट संचालकों के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं की जाती।
लगातार लग रही सुरक्षा मे सेंध
गौरतलब है कि पनपथा तथा पतौर उद्यान के सबसे संवेदनशील परिक्षेत्र माने जाते हैं। यह इलाका दर्जनो गावों और आबादी से घिरा हुआ भी है। यहां के जंगलो मे शिकारियों तथा संदिग्ध व्यक्तियों की गतिविधियां देखी जाती रही हैं। क्ष़ेत्र मे पेंगोलीन की तस्करी और वन्यजीवों के शिकार के कई मामले सामने आ चुके हैं। इतना ही नहीं कुछ साल पहले पनपथा बफर रेंज मे एक हांथी को जला कर मारने की घटना हुई थी। इसका मुख्य कारण परिक्षेत्रों मे तैनात भ्रष्ट और लापरवाह अधिकारी तथा लचर व्यवस्था है। जिसकी वजह से वन और वन्यजीवों की सुरक्षा मे लगातार सेंध लग रही है।