नहीं जागे तो खत्म हो जाएगा पाली ब्लॉक

नहीं जागे तो खत्म हो जाएगा पाली ब्लॉक

शासन द्वारा पुनर्गठन आयोग बनाते ही शुरू हुआ चर्चाओं का दौर, संभाग मे चल रही सुगबुगाहट

बांधवभूमि न्यूज 

मध्यप्रदेश 

उमरिया
शासन द्वारा जिलों और तहसीलों के क्षेत्रीय असंतुलन को दूर करने के उद्देश्य से पुनर्गठन आयोग गठित किये जाने के साथ ही संभाग के जिलों मे भी सुगबुगाहट तेज हो गई है। कहा तो यह भी जा रहा है कि शहडोल के कई नेता उमरिया के दर्जनों पंचायतों को अपने जिले मे शामिल कराने के प्रयासों मे जुट गये हैं। ये वो गांव हैं, जो शहडोल मुख्यालय से सटे हुए हैं। जिनकी संख्या करीब डेढ से दो दर्जन बताई जाती है। उल्लेखनीय है कि उमरिया जिले मे करकेली, मानपुर और बिरसिंहपुर पाली सहित कुल 3 ब्लाक हैं। जिसमे से पाली सबसे छोटा है, जिसमे महज 44 ग्राम पंचायते हैं। यदि सीमावर्ती पंचायतों को अलग किया गया तो जिले का एक ब्लाक तो खत्म ही हो जायेगा। जानकारी के अनुसार इस तरह के प्रयास पहले भी हुए है, पर तत्कालीन अधिकारियों ने यह कह कर कि हर जिले की कोई न कोई सीमा तो होगी ही, इस मामले को ठंडे बस्ते मे डाल दिया पर इस बार सरकार ने बकायदा पुर्नगठन आयोग ही बना डाला है, जिसे देखते हुए जिले के नुमाईन्दों को अपनी आखें खोल कर रखनी होंगी।

आसान नहीं होगी कवायद
हलांकि इस प्रक्रिया मे तमाम तरह की पेचीदगियां हैं। इसमे सबसे बडा अडंगा तो ब्लाकों के विखण्डन को लेकर है। कहा जाता है कि ब्लाक को तोडने या उसे किसी अन्य जिले मे शामिल करने का अधिकार केन्द्र सरकार का है। पुनर्गठन आयोग भी इस मामले मे प्रशासन से चर्चा करके सिर्फ अपना सुझाव ही दे सकता है, इसे लागू करना राज्य सरकार के हांथ मे है। वहीं इस तरह की कोई भी कवायद तभी साकार होगी जब ब्लाकों का पुनर्गठन हो। जहां तक पाली का सवाल है तो इस ब्लाक मे 6वीं अनुसूची लागू है, वहीं तथाकथित रूप से इसकी 10-12 पंचायतों को ही शहडोल से जोडने की बात की जा रही है। बिना ब्लाक को खण्डित किये यह संभव नहीं है।

सही तरीके से हो युक्ति युक्तकरण
जानकार कहते हैं कि सवाल यदि तहसील, ब्लाक और जिला मुख्यालय की दूरी, कनेक्टिविटी या सुविधा का है, तो यह समस्या केवल शहडोल जिले की सीमाओं पर बसे क्षेत्रों की नहीं है। जिले के डिंडौरी और कटनी से सटे दर्जनो गांव इसी परेशानी से जूझ रहे हैं। मसलन कटनी जिले का खितौली, बरही के अलावा उमरार और महानदी के बीच बसे खरहटा, सलैया, गणेशपुर तथा शहडोल की तरफ सोन नदी के पार कई ऐसे गांव हैं, जो उमरिया जिले के तहसील मुख्यालयों से बिल्कुल सटे हुए हैं। सांथ ही उमरिया डिस्ट्रिक हेड क्वार्टर से उनकी दूरी अपेक्षाकृत आधी से भी कम है। ऐसे मे यदि सुविधा का संतुलन बनाना ही है तो यह कार्यवाही प्रत्येक जिले की सभी सीमा पर युक्तियुक्तकरण के अनुसार की जाय।

तो नहीं होता शहडोल का विखण्डन
ध्यांतव्य है कि वर्ष 1958 तक पूर्व विंध्य प्रदेश के समय से ही उमरिया एक जिले के रूप मे स्थापित था। कालांतर मे इसे विखंडित कर शहडोल को जिला बनाया गया। जिले के राजनेताओं और नागरिकों को शासन का यह निर्णय कभी रास नहीं आया। लोग हमेशा से उमरिया को पुन: जिले के रूप मे देखना चाहते थे। 1980 के दशक मे तत्कालीन मुख्यमंत्री स्व. अर्जुन सिंह द्वारा जिला पुनर्गठन आयोग बनाने के सांथ ही जिलेवासियों को यह सपना सच होने का आभास होने लगा। साल 1990 मे पटवा सरकार ने उमरिया सहित 16 जिले बनाने की घोषणा की तो जनता की खुशी का ठिकाना ही नहीं रहा। उस समय प्रस्तावित उमरिया जिले मे ब्यौहारी और जयसिंहनगर तहसील भी शामिल थी। इसी बात पर हाईकोर्ट मे हुई याचिका के कारण सरकार के फैंसले पर रोक लगा दी गई। एक लंबे संघर्ष के बाद 1998 मे मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने उमरिया को जिले का दर्जा तो दिया पर इसमे से ब्यौहारी और जयसिंहनगर तहसीलें बाहर कर दी गई। विश्लेषकों का मानना है कि उस समय यदि उमरिया को पूर्ण जिले का दर्जा मिल जाता तो शायद शहडोल का एक और विखण्डन नहीं होता।

उमरिया मे शामिल हो शहपुरा और बरही ब्लाक
उमरिया को जिले का दर्जा दिलाने मे महत्वपूर्ण योगदान देने वाले पूर्व विधायक एवं जिला कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष अजय सिंह ने कटनी जिले के बरही तथा डिंडौरी के शहपुरा ब्लाक को उमरिया मे शामिल करने की मांग की है। उन्होने बताया कि उमरिया जिला बनाओ आंदोलन को शहपुरा के लोगों ने न सिर्फ समर्थन दिया था, बल्कि अपने ब्लाक को इसके सांथ जोडने की मांग भी की थी। वहीं बरही के खितौली सहित कई गावों का उमरिया के सांथ सघन संपर्क है। दोनो ही ब्लाकों की भौगौलिक और सामाजिक परिस्थति भी जिले से मेल खाती है। श्री सिंह ने कहा कि यह एक बेहतर अवसर है और कांग्रेस दोनो क्षेत्रों के प्रमुख तथा प्रभावशाली लोगों से चर्चा कर उनसे उमरिया मे सम्मिलित होने का आग्रह करेगी।

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