निकासी के रास्ते पर बना लिये घर, अब पानी मचा रहा तांडव

निकासी के रास्ते पर बना लिये घर, अब पानी मचा रहा तांडव

जरा सी बारिश से ही जल प्लावन की स्थिति, मनमाने निर्माणो से उत्पन्न हो रही समस्या

बांधवभूमि न्यूज

मध्यप्रदेश

उमरिया
जबरन रास्ता किसी का भी रोका जाय, विवाद होना तय है। यह बात हर जगह लागू होती है। प्रकृति की भी अपनी चाल और व्यवस्था है, जिस पर वह सदियों से अविरल यात्रा करती चली आई है, पर इंसान ने हमेशा अपने स्वार्थ के लिये इसमे टांग अडाने का काम किया है। जिसके परिणाम आपदाओं के रूप मे सामने आ रहे हैं। एक समय था जब कई दिन लगातार बरसात होने के बाद जा कर इसके थोडे-बहुत दुष्प्रभाव दिखाई देते थे, परंतु अब ऐसा नहीं है। बीते 23 अगस्त को 24 घंटों मे महज 100 एमएम औसत बारिश क्या हुई, जिले भर मे कोहराम मच गया। दर्जनो गावों मे पानी भर गया। कई स्थानो पर तो लोगों को अपने घर छोड कर ऊंचे स्थानो पर शरण लेनी पडी। गनीमत यह रही की बारिश का दौर थम गया और जल्दी ही जिंदगी फिर रास्ते पर लौट पडी। सोचिये यदि कहीं पहले की तरह दो-चार दिन लगातार पानी गिरा, तब स्थिति क्या होगी। दरअसल यह एक संकेत है, जो आगाह करता है कि यदि हम अब भी नहीं सुधरे तो आने वाले समय मे यह संकट और भी गंभीर हो सकता है।

न नदी छोडी, न नाली
पानी जीवन की अनिवार्य जरूरत है, इसी वजह से गावों से लेकर बडी-बडी सभ्यताएं और शहर नदियों के किनारे ही पनपे। धीरे-धीरे इनकी सूरत बदलने लगी। बढती जनसख्या, राजनैतिक हस्ताक्षेप और भ्रष्टाचार ने जिस चीज को सबसे ज्यादा बढावा दिया, वह है अतिक्रमण। पैसे दे कर लोगों ने जो मन पडा, वह किया। न नदियां छोडीं गई, न तलाब। यहां तक कि जल स्त्रोंतो के कैचमेंट एरिया और निकासी रास्तों पर भी धडल्ले से इमारतें खडी कर दीं गई। यह क्रम अभी भी जारी है। सडकों की तो यह हालत हुई कि कुछ साल पहले शासन द्वारा छेडी कई अतिक्रमण हटाओ मुहिम के दौरान उमरिया के ही कई घरों के अंदर मील के पत्थर पाये गये।

माता मानने वाले देश मे नदियों को सबसे ज्यादा दुर्दशा
भारत विश्व के उन चुनिंदा देशों मे शुमार है, जहां नदियों को माता मान कर उनकी पूजा की जाती है। जो मुल्क इसे मां नहीं मानते वहां नदियां ज्यादा बेहतर स्थिति मे है। हमारे पूर्वज यह जानते थे कि नदियां नहीं रहीं तो मानव अस्तित्व ही खत्म हो जायेगा। शायद इसीलिये उन्होने यह परंपरा शुरू की होगी। अपने शीतल जल से शहर की कई पीडियों को सींचने वाली उमरार अपनी अंतिम सांसें गिन रही है। शहर मे प्रवेश से लेकर अंतिम छोर तक नदी के दोनो तरफ की जमीने भूमाफियों ने हथिया कर सैकडों मकान बनवा दिये। आज उमरार मे घरों का मल, कपडे, पॉलीथीन, यहां तक कि मलबा तक सीधे डाला जा रहा है।

टीएनसीपी का उल्लंघन ने बिगाडी दशा
जिला मुख्यालय की हालत तो सबसे ज्यादा बदतर है। जहां अधिकांश स्थानो की मुख्य नालियों पर स्लैब डाल कर दुकाने बना ली गई है। जिसकी वजह से इनकी सफाई नहीं हो पाती और जरा सी बरसात होते ही स्टेडियम का पानी टेलर मार्केट, गांधी चौक और खलेसर रोड से बहने लगता है। यह समस्या उन्ही लोगों की वजह से उपज रही है, जो बरसात के पानी का रील सोशल मीडिया पर वायरल कर व्यवस्था को कोसते रहते हैं। शहर मे कई सालों से टाऊन एण्ड कंट्री प्लानिंग लागू है। जिसका मकसद यातायात, पानी की निकासी, आग तथा अन्य आपदाओं से सुरक्षित भवनो का निर्माण सुनिश्चित कराना है, पर नेतागिरी और भ्रष्टाचार के चलते इसका कडाई से पालन नहीं हो पा रहा है।

बांधवभूमि करता रहा है आगाह


दैनिक बांधवभूमि हमेशा से अपने कर्तव्यों का निर्वहन करते हुए समस्याओं तथा आवश्यकतों को लेकर जनता की आवाज उठाता रहा है। इसी तरह पत्र ने जिले मे पानी की निकासी के रास्तों पर हुए अतिक्रमण के कारण जल प्लावन की स्थिति निर्मित होने से जुडा समाचार कई बार प्रकाशित किया है।

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