जिले की हरियाली पर माफियाओं की वक्रदृष्टि
ठूठ के रेगिस्तान मे तब्दील हो रहे जंगल, कहीं योजनाये तो कहीं तस्कर लील रहे बेशकीमती पेड
बांधवभूमि न्यूज
मध्यप्रदेश
उमरिया
जिले मे एक बार फिर बेशकीमती पेडों की अवैध कटाई चर्चाओं मे है। हाल ही मे जिला मुख्यालय के समीपस्थ ग्राम चंदवार मे दर्जनो हरे-भरे वृक्ष अचानक चोरी हो गये। जहां यह घटना घटी वह इलाका वन विकास निगम के अंतर्गत आता है। जंगल गये लोगों ने जब वहां बडे पैमाने पर ठूंठ देखे और इसकी बात फैली, तब जा कर विभाग की नींद खुली और जांच शुरू हुई। इस मामले मे वन विकास निगम के डीएम अमित पटौदी ने जहां जिम्मेदार अधिकारियों को नोटिस देने की बात कही है, वहीं क्षेत्रीय महाप्रबंधक ने भी जांच के लिये एक अलग टीम का गठन किया है। उल्लेखनीय है कि उमरिया जिला हमेशा से हरे-भरे जंगल और दुर्लभ वन्यजीवों के लिये विख्यात रहा है, परंतु लगता है कि इस समृद्धि को किसी की नजर लग गई है। एक तरफ माफिया बेशकीमती इमरती के हरे-भरे पेड काट कर उनकी तस्करी मे जुटे हुए हैं तो दूसरी ओर शासकीय योजनाओं और संरचनाओं की वजह से वृक्ष धराशायी किये जा रहे हैं। यही हाल रहा तो वह दिन दूर नहीं जब अन्य जिलों की तरह उमरिया के लोग भी शुुद्ध हवा और ताजी सांस के लिये तरसेंगे।
हाईवे और तिहरी लाईन मे साफ हुए इलाके
बताया जाता है कि जिले मे रेलवे की तीसरी लाईन के चलते करीब सौ किलीमीटर क्षेत्र के जगलों मे लहलहा रहे हजारों पेड काट दिये गये हैं। इससे पहले राष्ट्रीय राजमार्ग के निर्माण तथा एसईसीएल की खुली खदानो ने हरियाली को खण्डहर और कांक्रीट के मैदानो मे बदल दिया है। जानकारों का मानना है कि वन एवं पर्यावरण विभाग द्वारा माईनिंग और विकास कार्यो की अनुमति तय मापदण्डों के आधार पर दी जाती है। जिसमे काटे जाने वाले पेडों के अनुपात मे वृक्षारोपण का प्रावधान है, परंतु संबंधित विभाग इसका पालन नहीं करते। थोडा-बहुत वृक्षारोपण होता भी है, तो देखरेख के अभाव पौधे सूख कर समाप्त हो जाते हैं।
आखिर कहां जांय वन्यजीव
पेडों की अधाधुंध कटाई से जंगलों मे रहने वाले जीव-जंतुओं की दिक्कतें बढती जा रही है। इसी वजह से वन्यजीव बस्तियों का रूख कर रहे हैं। सांथ ही इंसानो के सांथ उनका संघर्ष भी बढता जा रहा है। वन और वन्यजीवों की जानकारी रखने वाले विषेशज्ञों का मानना है कि विकास कार्यो के लिये काटे जाने वाले पेडों की जगह भले कितनी ही प्लांटेशन करा दी जाय, वो वृक्ष वर्षो मे तैयार नैसर्गिक जंगल का स्थान नहीं ले सकते। उनका कहना है कि लिपटिस और बमूल जैसे पौधे कई सालों बाद पेड बन भी जांय तो वन्यजीव उनके बीच स्वाभाविक रूप से विचरण नहीं करेंगे। कुल मिला कर उद्योगपतियों के सहारे होने वाले इस तथाकथित विकास का परिणाम बेहद घातक और उपलब्धियों को खोने वाला है।
इन परियोजनाओं से होगा विनाश
जिले मे अभी भी कई परियोजनायें वन विभाग की अनुमति के इंतजार मे हैं। जो देर-सबेर मिलते ही शुरू हो जायेंगे। इसके बाद कई इलाकों का वृक्षविहीन होना तय है। बताया गया है कि जल संधाधन विभाग द्वारा जिले मे कम से कम सात सिचाई परियोजनायें स्वीकृत की गई हैं। इनमे मानपुर जनपद की भडारी मे 13.775 हेक्टेयर, पटपरिहा मे 10.516 हेक्टेयर, वनदेही मे 8.213 हेक्टेयर वन भूमि प्रभावित होगी। इसी तरह करकेली जनपद की मगर जलाशय मे 4.994, खोह मे 11.228, अतरिया मे 1.282 तथा चंगेरा मे 7.903 हेक्टेयर भूमि प्रभावित हो रही है। इनमे से अतरिया परियोजना का निर्माण कार्य प्रारंभ हो चुका है। एक अनुमान के मुताबिक एक हेक्टेयर भूमि पर करीब 200 पेड होते हैं। इस हिसाब से उक्त जल संरचनाओं के बनने से करीब 12 हजार पेडों की बलि लेनी होगी।
दिखने लगा मौसम पर प्रभाव
पेडों की कटाई तथा बेजा कार्बन उत्सर्जन के दुष्परिणाम धीरे-धीरे सामने आ रहे हैं। बेमौसम बारिश और आकाशीय बिजली गिरने की घटनाओं मे निरतर वृद्धि हो रही है। गर्मी का मौसम होने के बावजूद हर दो-चार दिन मे कभी तेज ताप तो कभी बारिश, कहीं आंधी-तूफान और ओलावृष्टि ग्लोबल वार्मिग का परिणाम है। चार महीनो तक चलने वाले मानसून का सीजन भी अब सिमट कर रह गया है। वर्षा का दौर अपने मौसम मे न होकर साल भर चलता रहता है। जिससे खेती-किसानी तथा जनजीवन बुरी तरह प्रभावित हुआ है।