कैसे मिटेगी पशुओं की भूंख
हार्वेस्टिंग मशीन से गेहूं की गहाई, बढ़ सकती है भूसे की किल्लत
बांधवभूमि न्यूज
मध्यप्रदेश, उमरिया
विगत वर्षो से जिले मे भी आधुनिक यंत्रों से फसलों की गहाई का चलन बढ़ता जा रहा है। इससे किसानो का समय बचता ही है। जोखिम और परिश्रम से भी निजात मिल जाती है। हलांकि इस पद्धति के अपने कई साईड इफेक्ट हैं। जिनका सामना ग्रामीणो तथा पशुपालकों को करना पड़ रहा है। गेहूं की फसल तैयार होते ही कृषक इसकी कटाई तथा गहाई की तैयारी मे जुट गये हैं। इसी बीच गांव-गांव विशाल हार्वेस्टर पहुंच गये हैं। जिनका काम फसलों की कटाई के सांथ उनकी गहाई करना है। बताया जाता कि यह मशीन एक घंटे मे करीब 20 क्विंटल अनाज निकाल देती है। इससे गेहूं तो पूरा मिल जाता है, लेकिन भूसा नष्ट हो कर खेत मे ही फैल जाता है। गौरतलब है कि गाय, बैल अथवा भैंस जैसे दुधारू पशुओं के लिये यह भूसा बेहद अहम है। जो साल भर उनके आहार के काम मे आता है। आधुनिक गहाई से जहां भूसे की भारी किल्लत हो रही है, वहीं इसके दाम भी आसमान छूने लगे हैं।
दूसरे राज्यों मे लगी है रोक
जानकारों के मुताबिक हार्वेस्टर के जरिये गेहूं की गहाई से भूसे का नुकसान होने के अलावा खेतों मे फसल के अवशेष रह जाते हैं। जिन्हे जलाने से पर्यावरण को नुकसान होता है। इन दुष्प्रभावों को देखते हुए देश के कई राज्यों ने इस मशीन से कटाई व गहाई को प्रतिबंधित कर दिया है। लिहाजा सीजन मे वे मध्यप्रदेश का रूख करते हैं। बताया जाता है कि हार्वेस्टर मे स्टोरेज सिस्टम लगा कर भूसे को बचाया जा सकता है, पर टाईम बचाने के लिये मशीन संचालक ऐसा नहीं कर रहे हैं।
प्रति एकड़ दस हजार का नुकसान
बताया जाता है कि एक एकड़ जमीन मे बोई गई गेहूं की फसल मे करीब दो ट्रॉली भूंसे का उत्पादन होता है। जिसकी कीमत लगभग 10 हजार रूपये है। यही भूंसा सीजन के बाद दोगुने दामो मे बिकता है। खेती के रकबे मे लगातार आ रही गिरावट तथा हार्वेस्टर्स से गहाई के परिणाम स्वरूप भूसे के दामों मे काफी बढ़ोत्तरी हो रही है। इसका सीधा असर पशु पालन पर देखा जा सकता है। कई लोगों ने अब या तो पशुओं को रखना बंद कर दिया है, या दूध से हटते ही गाय-भैंस घरों से बाहर कर दी जा रही है।
इसलिये ले रहे मशीन का सहारा
कई किसान यह जानते हैं कि हार्वेस्टर द्वारा गेहूं की गहाई से भूसें के सांथ करीब दस प्रतिशत अनाज भी नष्ट हो जाता है। इसके बावजूद उन्हे मजबूरी मे बड़ी मशीन का सहारा लेना पड़ता है। उन्होने बताया कि पिछले कुछ सालों मे मौसम का व्यवहार लगातार बिगड़ रहा है। विशेषकर गहाई के समय बारिश होने से फसलें खराब हो जाती है। इसी वजह से वे हार्वेस्टर से गहाई कराने पर मजबूर हैं, ताकि जल्दी से उपज को सुरक्षित किया जा सके।