उपेक्षा ने कतरे पर्यटन के पर
आवागमन की दयनीय हालत से विमुख हो रहे सैलानी, रसातल मे पहुंचा जिले का विकास
बांधवभूमि न्यूज
मध्यप्रदेश
उमरिया
औद्योगीकरण के अलावा पर्यटन ही एकमात्र ऐसा उपाय है, जिससे विकास और रोजगार की संभावनायें बढ सकती हैं। निजीकरण ने उद्योगों का अध्याय तो लगभग बंद ही कर दिया है, रही-सही कसर आवागमन के साधनो और जर्जर सडक़ों ने पूरी कर दी है। जिसके कारण से पर्यटन से विकास का सपना भी टूटता नजर आ रहा है। गौरतलब है कि जिले का बांधवगढ राष्ट्रीय उद्यान देश ही नहीं दुनिया भर मे अपने सुरम्य वन और रॉयल बंगाल टाईगर सहित ना-ना प्रकार के दुर्लभ जानवरों के लिये प्रसिद्ध है। नेशनल पार्क का सही प्राकृतिक वातावरण सैलानियों को अपनी ओर आकर्षित करता रहा है। सरकार कई बार पर्यटन को उद्योग का दर्जा देने और इसे आय का मुख्य जरिया बनाने की घोषणायें कर चुकी है, परंतु यह केवल जबानी जमाखर्च तक सीमित है। रही बात सैलानी यहां आयें भी तो कैसे। एक जमाना था जब उमरिया तहसील की स्टेशन पर प्रत्येक ट्रेन रूका करती थी। आज जिला मुख्यालय बनने के बाद यहां लगभग 28 महत्वपूर्ण ट्रेनो का स्टापेज नहीं है। इसके अलावा इंटरलॉकिंग के बहाने आये दिन हो रही गाडियों को निरस्त किया जा रहा है। सडक़ों ही हालत बद से बदतर है। जिसकी वजह से सैलानियों की दिलचस्पी कम हुई है। हलांकि शासन की ओर से आंकडे दिखा कर जिले मे आने वाले पर्यटको की तादाद बढऩे की बात कहीं जाती है, पर सच्चाई यही है कि यदि रेल और सडक़ मार्ग बेहतर हों तो यह वृद्धि कई गुना हो सकती है। कुल मिला कर सरकारी तंत्र की संवेदनहीनता तथा जिम्मेदारों की उपेक्षा ने जिले मे पर्यटन के परों को कतरने का काम किया है।
दूर नहीं हो रही सिंगलटोला फाटक की समस्या
इसी तरह मण्डला से बांधवगढ़ या मैहर पहुंचना भी फिलहाल टेडी खीर ही है। सबसे मुश्किल सफर उमरिया से बांधवगढ़ के बीच का है। जिसके लिये ताला तक सिंगल रोड है। वहीं रास्ते मे पडने वाले असंख्य स्पीड ब्रेकर यात्रियों की कमर तोड देते हैं। इससे भी बडी समस्या उमरिया-शहपुरा रोड पर पडने वाला सिंगलटोला रेलवे फाटक है। बताया जाता है यह फाटक हर आधे घंटे मे बंद हो जाता है। जिसके बाद वाहनो की लंबी-लंबी कतारें लग जाती है। रेलवे फाटक के दोनो तरफ की सडक़ गड्ढों मे गुम हो चुकी है। महीनो से रोड की मरम्मत तो दूर गड्ढे तक नहीं भरे जा रहे। इस समस्या से निपटने के लिये सिंगलटोला मे ओवरब्रिज बनाने का निर्णय लिया गया है। जानकारी के मुताबिक इस निर्माण के लिये महीनो पहले कार्यादेश भी जारी हो चुका है, लेकिन अभी तक ले आऊट तक नहीं किया गया है।
दस साल मे नहीं बना शहडोल रोड
जनता को मुसीबतों मे किस तरह झोंका जाता है, इसका अंदाज उमरिया-शहडोल रोड की हालत को देख कर लगाया जा सकता है। करीब 70 किमी लंबी इस सडक़ का निर्माण लगभग 10 साल पहले शुरू हुआ था, परंतु यह आज तक नहीं बन सकी है। ऊपर से सडक़ को जगह-जगह खोद दिया गया है। बरसात मे तो हालत और भी बुरी हो जाती है। थोडी सी बारिश होते ही वाहन कीचड मे फंस जाते हैं और जाम लग जाता है। बडे-बडे गड्ढों और फिसलन की वजह से हाईवे पर दर्जनो दुर्घटनायें हो चुकी हैं, जिसमे कई लोगों को अपनी जान से हांथ धोना पडा है। उमरिया से शहडोल के बीच तीन रेलवे ओवरब्रिज भी बनाये जाने हैं। सडक़ और ओवरब्रिज निर्माण की मंथर गति को देखते हुए नहीं लगता कि आने वाले पांच सालों मे भी यह काम हो पायेगा। मजे की बात यह भी है कि यह रोड जिले को संभागीय मुख्यालय से जोडती है। जिस पर जिले से लेकर प्रदेश भर के वरिष्ठ प्रशासनिक तथा न्यायिक अधिकारियों का आवागमन होता है, परंतु किसी ने भी इसे लेकर अपना मुंह खोलना उचित नहीं समझा है।
मैहर से अमरकण्टक पहुंचने मे समस्या
किसी भी क्षेत्र की तरक्की के लिये व्यवस्थित सडक़ों का होना बेहद जरूरी है। जिले मे इनकी बुरी हालत की वजह से परिवहन और पर्यटन ही नहीं श्रद्धालुओं का सफर भी मुश्किल भरा हो गया है। कुछ वर्ष पहले राज्य सरकार ने धार्मिक शहरों को सडक़ों के जरिये जोडने की महात्वाकांक्षी योजना की घोषणा की थी। इसके अलावा राम वन गमन पथ को भी विकसित करने की बात कही गई, जिसका बडा हिस्सा उमरिया जिले से होकर गुजरता है। वहीं मां शारदा की नगरी मैहर से नर्मदा उद्गम स्थली अमरकण्टक जाने के लिये लोगों को शहडोल होकर इसी नेशनल हाईवे-43 पर सनी हुई कीचड और गड्ढों से जूझते हुए यात्रा करनी पड रही है।