हाय…ये बेरोजगारी

हाय…ये बेरोजगारी
चपरासी और स्वीपर बनने की होड़, इंजीनियर-वकील भी कतार मे
बांधवभूमि, उमरिया
बेरोजगारी किस कदर अपने पैर पसार चुकी है, इसका उदाहरण जिला न्यायालय मे निकली भर्तियों के दौरान एक बार फिर देखने को मिला। अदालत के बाहर शनिवार की सुबह से ही युवाओं की लंबी कतारें लगी हुई थी। इनमे उमरिया जिले के अलावा अन्य कई शहरों के लोग भी शामिल थे। हर किसी की आखों मे बस नौकरी पाने की ललक दिखाई दे रही थी। दरअसल न्यायालय मे चपरासी और स्वीपर के 5 पदों हेतु भर्ती प्रक्रिया शुरू की गई है। इनमे से भृत्य का 1 पद सामान्य, 1 पिछड़ा तथा 1 अनुसाूचित जाति वर्ग के लिये आरक्षित है। इसके अलावा दो पद स्वीपर के लिये हैं।
600 ने लगाई अर्जी
जानकारी के मुताबिक जिला न्यायालय मे चपरासी और स्वीपर के मात्र 5 पदों के लिये करीब 600 लोगों ने अर्जी लगाई है। इस दौरान कई पोस्ट ग्रेजुएट, वकील और इंजीनियरिंग जैसे उच्च डिग्रीधारी बेरोजगार भी नौकरी पाने की जद्दोजहद करते दिखाई दिये। उनका कहना था कि भले ही चपरासी की नौकरी है, पर इससे उनका जीवन सुरक्षित तो हो ही जायेगा।
रोजगार की हालत खराब
उल्लेखनीय है कि जिले मे रोजगार की हालत दिनो-दिन बदतर होती जा रही है। यही कारण है कि महज 7 हजार रूपये वेतनमान की नौकरी के लिये पढ़े-लिखे युवा अपनी पूरी ताकत झोंक रहे हैं। न्यायालय पहुंचे कुछ युवाओं ने बांधवभूमि को बताया कि पहले वे दिल्ली, गुजरात, महाराष्ट्र तथा अन्य प्रांतों मे जा कर नौकरी करते थे, परंतु अब वहां भी स्थिति अच्छी नहीं है। कोरोना के बाद कई फैक्ट्रियां बंद हो चुकी हैं। ऐसे मे वे कहां जांय।
निजीकरण के कारण बढ़ी बेरोजगारी 
सरकार द्वारा भर्तियों पर रोक और निजीकरण की नीति के कारण बेरोजगारी तेजी से बढ़ी है। कई वर्षो से जिले मे कोई उद्योग नहीं खुला है, जबकि पुरानी कालरियां लगातार बंद होती जा रही हैं। जो बची हैं, वे ठेकेदारों के हवाले कर दी गई हैं। सांथ ही नये प्रोजेक्ट प्रायवेट कम्पनियों को सौंपे जा रहे हैं। जहां एक ओर सरकारी खदान मे एक हजार के आसपास लोगों को नौकरियां मिलती थीं, जिनका वेतन कम से कम 50 हजार रूपये तक है। वहीं निजी कम्पनियां यही काम मशीनो से कर रही हैं। कुल मिला कर निजीकरण से चंद धन्ना सेठ कुछ सालों मे ही अरबों रूपये कमा कर चले जायेंगे। जानकारों का मानना है कि इससे सरकार और स्थानीय लोगों को नुकसान के अलावा कुछ भी हांसिल नहीं होगा।
बाजारों से पैसा गायब
भर्तिया न होने और निजीकरण का सीधा असर अब जिले के कारोबार पर साफ दिखने लगा है। कालरी, रेलवे जैसे उपक्रमो के अलावा राजस्व, स्वास्थ्य, लोक निर्माण आदि विभागों मे बीते कुछ वर्षो के दौरान हजारों मुलाजिम सेवानिवृत हो चुके हैं। वहीं सरकारी योजनाएं भी ठप्प पड़ी हैं। इन वजहों से लोगों की क्रय शक्ति घटी है और बजार मंदी की चपेट मे हैं। कुछ साल पहले जमीन-जायदाद की खरीद-फरोख्त मे आया उछाल भी धरातल सूंघने लगा है, क्योंकि लोगों के पास पैसा ही नहीं है। जल्दी इस दिशा मे कोई ठोस पहल नहीं हुई तो स्थिति विकट होते देर नहीं लगेगी।

 

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