हादसों के बाद भी नहीं चेत रहा परिवहन विभाग

बसों मे ठूंस-ठूंस कर भरी जा रही सवारी, कुंभकर्णी नींद मे सोया महकमा
बांधवभूमि, उमरिया
आये दिन हो रहे सड़क हादसों और उनकी चपेट मे मासूमो की मौतों से परिवहन विभाग कोई सीख नहीं ले रहा है। सड़कों पर कंडम बसें बिना किसी रोक-टोक के दौड़ रही हैं। संचालक अपने फायदे के लिये क्षमता से दोगुनी सवारियां ठूंस-ठूंस कर उनमे भर रहे हैं। यह सब अपनी आखों से देखने के बावजूद विभागीय अमला किसी तरह की कार्यवाही तो दूर वाहनो के जांच-पड़ताल की जहमत तक नहीं उठा रहा है। बताया जाता है कि जिले मे चल रही अधिकांश बसें पुरानी और समय सीमा से बाहर हो चुकी हैं। जिन्हे अन्य प्रांतों से लाया गया है। सूत्रों के मुताबिक ट्रांसपोर्टर सस्ती और कबाड़ मे पड़ी बसें खरीद कर ले आते है, फिर उनकी मरम्मत कर सड़कों पर उतार दिया जाता है। मौके पर ऐसी बसों की या तो स्टेयरिंग फैल हो जाती है, या बे्रेक नहीं लगती। जिसका खामियाजा निरपराध सवारियों को भुगतना पड़ता है।
बीते मांह हुआ था हादसा
गौरतलब है कि बीती 24 मई को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की भरौला मे आयोजित सभा मे शामिल होने लोगों को ले जा रही यात्री बस घंघरी ओवरब्रिज के पास दुर्घटनाग्रस्त हो गई थी। इस हादसे मे चार लोगों की अकाल मृत्यु हो गई थी। जानकारी के मुताबिक बस के सामने अचानक आई एक बाईक को बचाने के लिये जैसे ही चालक ने ब्रेक लगाई, बस लहराती हुई पलट गई। विशेषज्ञों का मानना है कि बस के चारों पहियों मे बराबर ब्रेक नहीं लगने के कारण यह दुर्घटना हुई। दुर्घटनाग्रस्त बस ओडिशा पासिंग थी। सवाल उठता है कि ऐसी अनफिट बसों को चलाने की इजाजत किसके द्वारा और क्यों दी जा रही है। सांथ ही इन मौतों के लिये केवल बस का चालक और मालिक ही नहीं परिवहन विभाग के भ्रष्ट और लापरवाह अधिकारी भी जिम्मेदार हैं।
अपात्र चला रहे वाहन
बताया गया है कि विगत कुछ सालों से जिले का परिवहन विभाग अव्यवस्था और दलाली का अड्डा बना हुआ है। विभाग मे पदस्थ अधिकारी उमरिया के अलावा कई जिलों का प्रभार संभाल रहे हैं। यही कारण है कि वे महीने मे कुछ दिन केवल अपना हिसाब-किताब करने ही आफिस आते हैं। उनके जाते ही दफ्तर मे बाबूराज शुरू हो जाता है। ट्रांसपोर्ट कारोबार से जुड़े लोगों का दावा है कि कई संचालक अपनी बसें अपात्र ड्राईवरों से चलवा रहे हैं। नियमानुसार बसों के सांथ ही चालकों के फिटनेस की भी नियमित जांच होनी जरूरी है। जिसमे फिट पाये जाने के बाद ही उन्हे बस चलाने की अनुमति मिलनी चाहिये, परंतु जिले मे ऐसी किसी प्रक्रिया का पालन शायद ही कभी होता हो।
नहीं हैं सुरक्षा के इंतजाम
कुछ वर्ष पहले सीधी जिले मे एक बस के नहर मे गिरने से हुई दर्जनो मौतों के बाद शासन द्वारा बसों मे एमरजेंसी द्वार साहित सुरक्षा के कई इंतजाम करने के निर्देश अधिकारियों को दिये गये थे। शुरूआती दौर मे थोड़ी-बहुत जांच पड़ताल और कार्यवाही हुई भी, लेकिन जैसे ही समय बीता, सभी आदेश डस्टबिन के हवाले कर दिये गये। जिले मे संचालित अनेक बसों मे सरकार द्वारा निर्धारित किसी भी तरह की सुरक्षा व्यवस्था नहीं है। ऐसे मे यात्री बस मे नहीं, खतरों के बीच अपनी यात्रा को पूरी कर रहे हैं। अधिकारी भी जानते यदि कोई हादसा हुआ भी तो सारा दोष चालक के सिर मढ़ दिया जायेगा।

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