हमारी सभ्यता सभी प्राणियों मे ईश्वर का अंश देखती:कमिश्नर

इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय अमरकंटक मे संगोष्ठी का आयोजन
बांधवभूमि, सोनू खान
शहडोल। कमिश्नर शहडोल संभाग राजीव शर्मा ने कहा है कि हमारी सभ्यता सभी प्राणियों में ईश्वर का रूप देखती है। हमारी संस्कृति ऐसी नहीं थी। हमारे पुरखे सभी प्राणियों, कीट पतंगों, वनस्पति में भी ईष्वर को देखते थे। कमिश्नर ने कहा कि जिस भारत में रामायण लिखी गई। वो भारत वेदों से उपजा हुआ भारत है। वेदान्त की नींव पर खड़ा भारत है। भारत में रामायण आया तब इस्लामियत और ईसाईयत आ चुकी थी। तब भी हम वेदान्त को जी रहे थे। हम अपनी उदारता और विाश्व भारतीय होने के चक्कर में भारतीयता खो चुके हैं। भारतीयता को पुनजीॢवत करने की आवश्यकता है। कमिश्नर शहडोल संभाग राजीव शर्मा आज इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विष्वविद्यालय अमरकंटक में रामायण काल के सामाजिक और सांस्कृतिक विरासत पर आधारित दो दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय सेमीनार को संबोधित कर रहे थे। कमिश्नर ने कहा कि भगवान राम की सेना पहली ग्रीन आर्मी सेना थी, जो रामायण को प्रकृति के आधार को जागृत करती है। भगवान राम जी जिस सेना से रावण को हराते है, बड़े राज्य शक्तिशाली सम्राट को हराते हैं, भूत दुनिया की एकमात्र ग्रीन आर्मी सेना थी, जो जीरो काबर्न फुट  पर आधारित थी। ग्रीन आर्मी की सहायता से जैसे वानर, भालू, जटायु, संपती, गिलहरी, सब जीवों ने मिलकर लड़ाई लड़ी थी। कमिश्नर ने कहा कि पवित्र रामायण एवं बाल्मीकि रामायण प्रकृति के पंचतत्वों के संयोग का सुपरिणाम दिखाते हैं। रामायण मानव एवं प्रकृति का अनोखा एवं अटूट विश्वास का अद्वितीय उदाहरण भी है, जहां भगवान श्री रामचंद्र ने १४ वर्ष का वनवास वनस्पति एवं प्रकृति के बीच गुजारा। रामायण बीते हुए कल का स्वर्ण कथाएं नहीं है, बल्कि धर्म है, जिसे हर एक मनुष्य प्राणी को अपने जीवन में उतार कर आत्मसात करना चाहिए। कमिश्नर ने कहा कि रामायण में सभी रूपों में हमारे पुरखों ने मां के दशर्न किए हैं। हर प्राणी जैसे वनस्पति जगत, कीट जगत एवं मानव सहित सभी जगत आते हैं। हमारा भारत देश रामायण काल में भी प्रकृति एवं वनस्पति से परिपूर्ण था तथा आज भी हमारा भारत प्रकृति एवं वनस्पति से परिपूर्ण है। अगर हम इसे समझ जाते हैं तो हमारा जीवन प्रकृति एवं वनस्पति से परिपूणर् हो जाएगा। हम खुद ही कल्पना करें कि आज हमारे अमरकंटक का वन एवं प्राकृतिक सौंदर्य इतना पावन एवं मनमोहक है तो आज से १२००० वर्ष पूर्व् राम एवं रावण युद्ध के समय यहां का पयार्वरण तथा वनस्पति, जल कितना साफ स्वच्छ, मनभावन रहा होगा। रामायण और रामचरितमानस किस समय पयार्वरण गहन वनों से आच्छादित था इसके प्रमाण आज भी रामायण में मिलते हैं। कमिश्नर ने कहा कि हमारा भारत रामायणकालीन भारत है, रामायण काल की परंपरा और मयार्दा आज भी हमारे भारत में जागृत है। रामायण के समय हमारा पयार्वरण कुशलता एवं क्षमता का पयार्वरण था। उन्होंने कहा कि रामायण पढ़ने में सभी प्राणी परमात्मा के सम्मान के बिना अगर पढ़ा है तो उसका रामायण पढ़ने का कोई अर्थ नहीं है, रामायण तो परमात्मा में विलीन होकर पढ़ने वाला ग्रंथ है। उन्होंने कहा कि रामायण की कथा में राम पुरूष है तथा माता जानकी प्रकृति है। जिसके परस्पर सम्मान एवं परस्पर सहअस्तित्व से जीवन चलता है। जो प्रकृति के पंच तत्वों को पुरूष से अलग करेगा वह सोने की लंका की तरह भस्म हो जाएगा। इसलिए सभी व्यक्ति को प्रकृति एवं पुरूष का सम्मान करना चाहिए। कमिश्नर ने कहा कि अगर सभी व्यक्ति पयार्वरण को समझकर जानकर छोटी-छोटी चीजें अपनी जीवन में बदल सके क्या प्रकृति एवं वनस्पति का सम्मान कर सकें तो वापस से हमारा युग रामायण कालीन युग हो जाएगा। जहां प्रकृति एवं वनस्पतियों से मनुष्य का सीधा संवाद होता था। इस दौरान कायक्र्रम में इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विष्वविद्यालय अमरकंटक की प्राध्यापक श्रीमती अभिलाषा सी. ने कमिश्नर शहडोल संभाग राजीव शर्मा का शॉल एवं श्रीफल देकर सम्मानित किया। कायक्र्रम को भारत के विभिन्न विश्वविद्यालय से आए प्रोफेसर रश्मि आत्री, प्रोफेसर समीना खान एवं प्रोफेसर सुमित्रा कुकरेटी ने भी संबोधित किया। इस दौरान अमरकंटक विष्वविद्यालय परिवार के प्रोफेसर एवं बड़ी संख्या में छात्र-छात्राएं उपस्थित थे।

Advertisements
Advertisements

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *