स्वतंत्र एवं निष्पक्ष न्यायपालिका लोकतंत्र का आधार, इसपर राजनैतिक दबाव नहीं होना चाहिए: सुप्रीम कोर्ट
नई दिल्ली । सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि भारत में अमीर, संसाधनों से युक्त और राजनीतिक रूप से ताकतवर लोगों और न्याय तक पहुंच एवं संसाधनों से वंचित”छोटे लोगों के लिए दो समानांतर कानूनी प्रणालियां नहीं हो सकती। न्यायालय ने कहा कि, जिला न्यायापालिका से औपनिवेशिक सोच के साथ हो रहे व्यवहार को नागरिकों के विश्वास को बचाए रखने के लिए बदलना होगा और जब न्यायाधीश सही के लिए खड़े होते हैं,तब उन्हें निशाना बनाया जाता है। न्यायमूॢत डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूॢत एम आर शाह की पीठ ने कांग्रेस नेता देवेंद्र चौरसिया की हत्या के मामले में मध्यप्रदेश की बसपा विधायक के पति को दी गई जमानत गुरुवार को खारिज करते हुए ये अहम टिप्पणियां कीं। न्यायालय ने कहा कि एक स्वतंत्र एवं निष्पक्ष न्यायपालिका लोकतंत्र का आधार है और इस पर किसी प्रकार का राजनीतिक दबाव नहीं होना चाहिए। शीर्ष अदालत ने कहा, ”दोहरी व्यवस्था की मौजूदगी कानून की वैधता को ही खत्म कर देगी। कानून के शासन के लिए प्रतिबद्ध होने का कर्तव्य सरकारी तंत्र का भी है।
पीठ ने कहा कि जिला न्यायपालिका नागरिकों के साथ संपर्क का पहला ङ्क्षबदु है। पीठ ने कहा,अगर न्यायपालिका में नागरिकों का विश्वास कायम रखना है,तब जिला न्यायपालिका पर ध्यान देना होगा। शीर्ष अदालत ने कहा कि निचली अदालतों के न्यायाधीश भयावह परिस्थितियों, बुनियादी ढांचे की कमी, अपर्याप्त सुरक्षा के बीच काम करते हैं और न्यायाधीशों को सही के लिए खड़े होने पर निशाना बनने के कई उदाहरण हैं। पीठ ने कहा कि दुख की बात है कि स्थानांतरण और पदस्थापना के लिए उच्च न्यायालयों के प्रशासन की अधीनता भी उन्हें कमजोर बनाती है। पीठ ने कहा, ”जिला न्यायपालिका से साथ औपनिवेशिक मानसिकता वाला व्यवहार बदलना चाहिए और ऐसा होने पर ही प्रत्येक नागरिक, भले वह आरोपी हो, पीडि़त हो या नागरिक समाज का सदस्य है, उसकी नागरिक स्वतंत्रत हमारी निचली अदालतों में सार्थक रूप से संरक्षित रहेगी। ये निचली अदालतें उन लोगों की रक्षा की पहली ढाल हैं, जिनके साथ गलत हुआ है।
शीर्ष अदालत ने कहा कि एक स्वतंत्र संस्था के रूप में न्यायपालिका का कार्य शक्तियों के पृथक्करण की अवधारणा में निहित है। पीठ ने कहा कि न्यायाधीश किसी भी अन्य कारकों की बाधा के बिना कानून के अनुसार विवादों को सुलझाने में सक्षम होने चाहिए और इसके लिए न्यायपालिका और प्रत्येक न्यायाधीश की स्वतंत्रता जरूरी है। न्यायालय ने कहा कि व्यक्तिगत न्यायाधीशों की स्वतंत्रता में यह भी शामिल है कि वे अपने वरिष्ठों और सहयोगियों से स्वतंत्र हों।
स्वतंत्र एवं निष्पक्ष न्यायपालिका लोकतंत्र का आधार, इसपर राजनैतिक दबाव नहीं होना चाहिए: सुप्रीम कोर्ट
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