नई दिल्ली। देश की सर्वोच्च अदालत ने चर्चित हिजाब विवाद पर सुनवाई के बाद उन याचिकाओं पर गुरुवार को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया, जिसमें कर्नाटक हाईकोर्ट के राज्य के शैक्षणिक संस्थानों में हिजाब पर प्रतिबंध हटाने से इनकार करने के निर्णय को चुनौती दी गई है। सुप्रीम कोर्ट ने दस दिन की सुनवाई के बाद अपना फैसला सुरक्षित रखा है। अब सुप्रीम कोर्ट अपने फैसले में तय करेगा कि कर्नाटक हाईकोर्ट द्वारा दिया गया फैसला सही है या नहीं। हालांकि, 16 अक्टूबर को जस्टिस हेमंत गुप्ता रिटायर हो रहे हैं, इसलिए माना जा रहा है कि हिजाब बैन मामले फैसला इससे पहले आने की उम्मीद है। दरअसल, कर्नाटक हाईकोर्ट ने 15 मार्च को उडुपी में ‘गवर्नमेंट प्री-यूनिवर्सिटी गर्ल्स कॉलेज’ की मुस्लिम छात्राओं के एक वर्ग द्वारा दायर याचिकाओं को खारिज कर दिया था, जिसमें उन्होंने कक्षाओं के भीतर हिजाब पहनने की अनुमति देने का अनुरोध किया था। अदालत ने कहा था कि यह (हिजाब) इस्लाम धर्म में अनिवार्य धार्मिक प्रथा का हिस्सा नहीं है। इसके बाद राज्य सरकार ने पांच फरवरी 2022 को दिए आदेश में स्कूलों तथा कॉलेजों में समानता, अखंडता और सार्वजनिक व्यवस्था में बाधा पहुंचाने वाले वस्त्रों को पहनने पर प्रतिबंध लगा दिया था। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट में उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देते हुए कई याचिकाएं दायर की गईं। न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता और न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया की पीठ ने आज इस मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है।
कर्नाटक सरकार ने हिजाब संबंधी अपने आदेश को मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में ‘धर्म निरपेक्ष’ बताया। राज्य सरकार ने अपने आदेश का जोरदार बचाव करते हुए पोपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) को विवाद के लिए दोषी ठहराते हुए दावा किया कि यह एक ‘बड़ी साजिश’ का हिस्सा था। राज्य सरकार ने जोर दिया कि शिक्षण संस्थानों में हिजाब पहनने के समर्थन में आंदोलन कुछ लोगों व्यक्तियों द्वारा ‘स्वतःस्फूर्त’ नहीं था और अगर उसने उस तरह से काम नहीं किया होता तो वह ‘संवैधानिक कर्तव्य की अवहेलना’ की दोषी होती। कर्नाटक सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सर्वोच्च न्यायालय में कहा कि पीएफआई ने सोशल मीडिया पर एक अभियान शुरू किया था जिसका मकसद ‘लोगों की धार्मिक भावनाओं’ के आधार पर आंदोलन शुरू करना था।
सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक हिजाब विवाद पर फैसला सुरक्षित रखा
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