सुनाई देने लगी अकाल की पदचाप

सुनाई देने लगी अकाल की पदचाप

मानसून के मिजाज से गंभीर हुए हालात, गर्मी ने बदहाल किया जनजीवन

बांधवभूमि न्यूज

मध्यप्रदेश 

उमरिया
मानसून के बिगडे मिजाज ने इस बार जिले को भयानक सूखे और अकाल की कगार पर ला खडा किया है। बीते करीब 20 दिनो से बारिश न होने के कारण खरीफ की फसल पर अनिश्चितता के बादल मंडराने लगे हैं। सैकडों किसानो ने धान की नर्सरी तो लगा ली है, पर रोपाई नहीं कर पा रहे हैं। जिन लोगों के पास अपने सिचाई के साधन है, उनके खेतों मे रोपाई तो हो चुकी है, या हो रही है। जानकारों का मानना है कि बारिश के पानी मे जहां कई तरह के मिनरल्स होते हैं, वहीं इससे मौसम भी ठंडा हो जाता है। जबकि बोरवेल के पानी से फसल तो बोई जा सकती है परंतु पौधों की ग्रोथ के लिये नियमित अंतराल मे आसमानी बारिश जरूरी है। बताया जाता है कि तेज गर्मी के कारण खेतो मे भरा पानी खौलने लगा है, जिससे फसलें खराब हो रही है। किसानो ने बताया कि कोदो-कुटकी, तिली, रमतिला, उरदा, सोयाबीन की फसल हो या धान की फसल, सभी को वर्षा की दरकार है। जिसके लिये इंतजार अब काफी लंबा हो चला है। यदि एक दो दिन मे बारिश शुरू नहीं हुई तो इनमे कोई भी फसल नहीं बचेगी।

खेतों मे पडने लगी दरारें
जानकारी के अनुसार रोपा लगने के बाद खेतों मे पानी न होने से मिट्टी की नमी गायब हो चकी है, जिससे जमीनों मे दरारें पडने लगी हैं। कृषि क्षेत्र से जुडे लोगों का कहना है कि खरीफ के सीजन मे मानसून की पहली तेज बारिश के सांथ ही खेती का सिलसिला शुरू हो जाता है। बोवाई पूरी होने के बाद होने वाली रिमझिम बरसात जहां वातावरण को ठंडा रखती है, वहीं फसल को पानी के सांथ आवश्यक नाईट्रोजन की पूॢत भी कराती है। रोपाई के लिये कम तापमान के सांथ कम से कम 5 इंच वर्षा की दरकार है, लेकिन इस बार हालात बिल्कुल अलग है। असाढ का महीना खत्म होने को है। कुछ ही दिनो मे सावन प्रारंभ हो जायेगा पर बारिश का नामोनिशान दूर-दूर तक दिखाई नहीं देता। मौसम बनता भी है, पर बारिश नहीं होती। किसानो ने बताया कि अब यदि बारिश मे विलंब हुआ तो इस बार जिले मे खरीफ का उत्पादन आधे से भी कम हो सकता है। वहीं इसका असर रबी की खेती पर भी पडेगा।

तेरह कार्तिक, तीन आषाढ़
लोक कवि घाघ की कहावत है कि तेरह कार्तिक तीन आषाढ़-जो चूका सो गया बाजार। इसका आशय है कि रबी के बुवाई मे काॢतक के तेरह दिन और खरीफ की फसल के लिए आषाढ़ माह मे सिर्फ तीन दिन ही होते हैं। आषाढ़ मे तीन दिन के खेती का तात्पर्य है कि जहां पानी नही पहुंचता हो तो पहली बारिश मे अरहर, उड़द, मूंग, तिल आदि की बुवाई कर देनी चाहिए। धान के लिए किसानों को पहले मेड़बंदी कर पानी को खेत में रोक कर रखना चाहिए। उसके बाद जुताई कर खर-पतवार को छोड़ दे ताकि वह सड़ कर खाद बन जाये। पहली बारिश होने के बाद गोबर का देसी खाद खेत में डाल दे। धान की रोपाई में भी तीन दिन का महत्व है। नर्सरी 12 से 15 दिन की होने के बाद रोपाई कर देनी चाहिए। इससे पैदावार काफी अच्छी होने की संभावना बनी रहती है। अब किसान ने तो पूरी मेहनत समय पर कर ली पर इंद्रदेव के प्रसन्न हुए बिना सब निरर्थक ही दिखाई देता है।

तकलीफ के साथ बढ रही चिंता
इस साल मानसून की बेरूखी ने तकलीफ के सांथ सभी की चिंता बढा दी है। झमाझम बारिश के लिये जाना जाता जुलाई का महीना बीता जा रहा है, लेकिन बारिश नदारत है। मौसम विभाग के अनुसार जिले मे एक जून से अब तक कुल 153.5 एमएम वर्षा हुई है। जबकि गत वर्ष इसी अवधि मे 357.7 एमएम बारिश हो चुकी थी। मतलब 2023 की तुलना मे इस बार करीब 200 मिलीमीटर कम वर्षा हुई है। जिसकी वजह से गर्मी अभी भी प्रचंड रूप धारण किये हुए है। मौसम विभाग के अधिकारियों ने बताया कि शनिवार को जिले मे अधिकतम तापमान हलांकि 35 डिग्री के आसपास रहा, परंतु उमस के कारण 40 डिग्री के बराबर ताप महसूस किया गया। भीषण गर्मी के चलते जनजीवन अस्त-व्यस्त है। इससे निजात पाने, फसलों की सुरक्षा के सांथ ही जिले को पेयजल संकट से बचाने के लिये सबकी निगाहें अब केवल आसमान को निहार रहीं हैं।

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