उमरिया। इस्लाम धर्म का मातमी पर्व मोहर्रम आज जिले भर मे धार्मिक रीति-रिवाज, सादगी और विश्वास के सांथ मनाया जायेगा। इस मौके पर सैय्यदना उमरिया वाले बाबा हुजूर की सवारी इमामबाड़े से उठकर जामा मस्जिद का रूख करेगी। बाबा हुजूर की मस्तानी चाल, शान ओ शौकत और मुराद के करिश्मे के कारण शहर का मोहर्रम दुनिया भर मे अपनी अलग पहचान रखता है।
दोनो संप्रदायों की भागीदारी
यूं तो मातमी त्यौहार मोर्हरम इस्लाम धर्म के प्रवर्तक पैगम्बर हजरत मो. के नवासे इमाम हुसैन के शहादत की याद मे मनाया जाता है, परंतु उमरिया मे यह पूरे देश के लिये हिन्दू-मुस्लिम एकता की मिसाल है। मोहर्रम से पहले इमामबाड़ा की सजावट हो, हुजूर की खिदमत मे शेर बन कर नृत्य करना या फिर उनकी सवारी के सांथ कदमताल कर मुकाम तक सफर करने की बात हो, हर किसी मे नगर के हिन्दुओं की बराबर भागीदारी रहती है। कहा जाता है कि यह सिलसिला वर्ष 1882 से आज तक अनवरत जारी है।
कौम को मोहर्रम का संदेश
मोहर्रम पर हिन्दु को सवारी आना कौम को यह साफ संदेश है कि ऊपर वाले के लिये हर इंसान बराबर है, वह मजहब मे फर्क नहीं करता। हमारे पूर्वजों ने सैकड़ों साल पहले परमात्मा के उस संदेश को आत्मसात किया था। जानकार बताते हैं कि उमरिया वाले बाबा हुजूर की सवारी सन 1882 मे पहली बार आमद हुई थी। तब हुजूर ने स्व. माधव सिंह जी को खिदमत का मौका दिया। यह दौर पूरे 40 साल तक चला। इस दौरान बाबा हुजूर ने कई करतब भी दिखाये। बाबा माधव सिंह जी के पर्दा करने के बाद बाबा फूल सिंह पर सैय्यदना उमरिया वाले बाबा हुजूर की सवारी आमद होती रही। बाबा फू ल सिंह जी के पर्दा करने के बाद विगत 28 वर्षो से बाबा सुशील सिंह जी पर बाबा हुजूर की सवारी की तशरीफ आमद होती चली आ रही है।
शहदत का पर्व मोहर्रम आज, निकलेगी बाबा हुजूर की सवारी
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