गंदे नाले मे तब्दील हुई उमरार नदी, सड़ांध से बीमारियां फैलने का खतरा
बांधवभूमि, उमरिया
वर्षो से नगर को अपना नाम और जीवन देने वाली उमरार अब पूरी तरह से विलुप्त होने की कगार पर पहुंच गई है। हालत यह है कि जो नदी अपने शुद्ध जल से हजारों परिवारों का कण्ठ तर करती आई है, वह घरों से निकले निस्तार के पानी पर आश्रित हो चली है। इतना ही नहीं धार सूखने के बाद पाटों के बीच भरे कचड़े की सड़ांध से संक्रामक बीमारियों के फैलने का खतरा पैदा हो गया है। दुर्भाग्य यह है कि इतना सब कुछ होने के बाद भी न तो लोगों की लापरवाही रूक रही है और ना शासन स्तर पर उमरार के जीर्णोद्धार की कोई गंभीर पहल होती दिख रही है। अभी भी समय है कि कोई ठोस रणनीति बना कर शहर पर आसन्न इस भीषण संकट से निजात पाने का कोई उपाय खोजा जाय। वरना वह दिन दूर नहीं जब उमरार नदी केवल किस्सों और कहानियों का हिस्सा बन कर रह जायेगी और उसके तट पर बसे शहर के बाशिंदे अपनी ही करनी के कारण बूंद-बूंद पानी के लिये भटकने को मजबूर होंगे।
नदी मे डाल रहे गंदा पानी
उमरार की इस हालत के लिये केवल और केवल पंगु व्यवस्था और स्थानीय लोगों की संवेदनहीनता दोषी है। नगर मे प्रवेश से पहले नदी की स्थिति अभी भी काफी बेहतर है, परंतु आगे आते ही इसमे मोहल्लों और कालोनियों से निकला लाखों लीटर दूषित पानी सीधे धार मे समाने लगता है। जिससे नदी का बचा-कुचा पानी भी कीचड़ मे तब्दील हो गया है। इतना ही नहीं कई क्विंटल पॉलीथीन और कचरा भी बाहर की बजाय नदी मे ही फेंका जा रहा है। यही कारण है कि कभी भी अथाह जल इतराने वाली नदी मे अब बीता भर पानी भी नहीं बचा है।
भ्रष्टाचार ने लीला कैचमेंट
नदी की इस दुर्दशा के लिये ऊपर बने स्टाप डेम भी कम जिम्मेदार नहीं हैं। बताया गया है कि मिट्टी का क्षरण रोकने के नाम पर होने वाले काम की बजाय भ्रष्ट अधिकारियों ने दर्जनो जगह कांक्रीट के रपटे बना डाले। जिसकी वजह से नदी का कैचमेंट एरिया खत्म हो गया। रही सही कसर नगर पालिका ने खलेसर के पास गेट लगा कर पूरी कर दी। जिसका असर यह हुआ कि पहले तो नदी मे पानी कम हुआ फिर स्लैक का भराव शुरू हो गया।
किस काम का स्वच्छता अभियान
ऐसा नहीं है कि उमरार को स्वच्छ बनाने की पहल नहीं हुई। एक बार तो मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने नदी को गोद ही ले लिया था परंतु इस पहल मे इच्छाशक्ति कम दिखावा ज्यादा था। आज भी नगर मे स्वच्छता सर्वेक्षण के नाम पर जागरूकता अभियान चलाया जा रहा है, पर इस जीवन रेखा की ओर किसी का भी ध्यान नहीं है। सवाल उठता है कि जब उमरार ही नहीं बचेगी तो उमरिया कैसे सुरक्षित रह सकता है। पर्यावरणविदों का कहना है कि नदी को बचाने के लिये इसमे गिरने वाले गंदे पानी को ट्रीटमेंट के जरिये साफ करने, पॉलीथीन फेंकने पर प्रतिबंध के अलावा मछड़ार और चपहा को उमरार मे डालने की योजना पर अमल किया जाना जरूरी है।
अतिक्रमण बना समस्या
बीते कुछ वर्षो मे हुए बेतहाशा अतिक्रमण ने उमरार को भी अपने आगोश मे ले लिया है। करबला के बाद से नगरीय सीमा की समाप्ति तक नदी के दोनो ओर धार तक मकानो का निर्माण हो चुका है। कैम्प मे तो बाकायदा नदी की जमीन पर कब्जा कर इसे बेंच दिया गया है। यह फर्जीवाड़ा आज भी जारी है लेकिन रसूखदार माफियाओं की इस कारस्तानी पर राजस्व विभाग आंख मूंदे हुए है।
विलुप्त हुई नगर की जीवन रेखा
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