नई दिल्ली । पुलिस को बायोमेट्रिक डेटा एकत्र करने की अनुमति देने वाला विधेयक लोकसभा में पारित हो गया है। सदन ने साेमवार को अपराधिक प्रक्रिया (पहचान) विधेयक को मंजूरी दे दी। इससे पहले बिल पर बोलते हुए गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि अपराधिक प्रक्रिया (पहचान) विधेयक लाने के पीछे सरकार की मंशा देश की कानून-व्यवस्था और आंतरिक सुरक्षा को मजबूत करना है। मसौदा कानून में इसका ध्यान रखा गया है। उन्होंने कहा कि विधेयक में अपराधियों के साथ-साथ अपराधों के आरोपी व्यक्तियों के बायोमेट्रिक डेटा लेने के लिए पुलिस को कानूनी मंजूरी प्रदान करने का प्रयास किया गया है। अपराधिक प्रक्रिया (पहचान) विधेयक पर चर्चा करते हुए शाह ने कहा कि विधेयक के अलावा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सरकार एक मॉडल जेल मैनुअल भी तैयार कर रही है जिसे राज्यों को भेजा जाएगा। उन्होंने कहा कि जेल मैनुअल को भेजने से बहुत सारी चिंताओं का समाधान किया जाएगा। इसमें कैदियों के पुनर्वास, उन्हें फिर से मुख्यधारा का हिस्सा बनाने, जेल अधिकारियों के अधिकारों को सीमित करने, अनुशासन बनाए रखने, सुरक्षा जैसे विषयों से संबंधित विभिन्न प्रावधान हैं। साथ ही इसमें महिलाओं के लिए अलग जेल और खुली जेल बनाने की बात भी कही गई है।
गृह मंत्री ने कहा कि जब तक अदालतों में अपराध साबित करने की शक्तियों को नहीं बढ़ाया जाता, एक तरह से कानून व्यवस्था की स्थिति और देश की आंतरिक सुरक्षा को बनाए रखना और मजबूत करना असंभव होगा।
सदस्यों ने व्यक्त किया विरोध
विधेयक पेश किए जाने के समय सदस्यों ने इसका बहुत विरोध व्यक्त किया। इस पर अमित शाह ने कहा कि उनके द्वारा मानव और व्यक्तिगत अधिकारों के दृष्टिकोण से चिंता व्यक्त की गई थी।उन्होंने कहा कि उनकी चिंताएं जायज हैं लेकिन इस बिल में उनका पहले से ही जिक्र किया गया है। गृहमंत्री अमित शाह ने आगे कहा कि 1980 में तत्कालीन विधि आयोग ने भी वर्तमान कानून पर फिर से विचार करने की सिफारिश की थी। अमित शाह ने कहा कि सत्ता में आने के बाद, हमने राज्यों के साथ इसको लेकर चर्चा की थी और इस पर विचार मांगे थे। शाह ने कहा कि अगर हम कानून में जरूरी बदलाव नहीं करते हैं, तो हम अदालतों को अपराध साबित करने के लिए सबूत मुहैया कराने में पिछड़ जाएंगे। इससे एक तरह से जांच में मदद नहीं मिलेगी।
इस बिल में गिरफ्तार किए गए किसी व्यक्ति के निजी बायोलॉजिकल डाटा इकट्ठा करने की छूट देता है। इसमें पुलिस को अंगुलियों, पैरों, हथेलियों के निशान, रेटिना स्कैन, भौतिक, जैविक नमूने और उनके विश्लेषण, हस्ताक्षर, लिखावट या अन्य तरह का डाटा एकत्र करने की छूट होगी।
विरोधी दल इसे सरकार की जरूरत से ज्यादा निगरानी और निजता का हनन बता रहे हैं। अगर ये बिल कानून का रूप लेता है तो ये कैदियों की पहचान अधिनियम, 1920 की जगह लेगा। मौजूदा कानून केवल ऐसे कैदियों की सीमित जानकारी एकत्र करने की बात कहता है जो या तो दोषी करार हो चुके हैं या फिर सजा काट रहे हैं। इसमें भी केवल उंगलियों के निशान और पदचिह्न ही लिया जा सकता है।