लड़कियों की शादी की उम्र 21 साल करने वाला विधेयक पेश हुआ

विपक्ष ने कहा- केंद्र जल्दबाजी कर रहा
 नई दिल्ली।लड़कियों के विवाह की आयु 18 से बढ़ाकर 21 साल करने का प्रावधान करने वाले इस संशोधन विधेयक को पेश करते हुए स्मृति ईरानी ने कहा, ‘एक लोकतंत्र में, महिलाओं और पुरुषों को विवाह का समान अधिकार देने में हमने 75 साल की देरी की है। इस संशोधन के जरिए पहली बार लड़के और लड़कियां दोनों ही 21 साल की आयु में समानता के अधिकार को ध्यान में रखते हुए अपने विवाह को लेकर निर्णय लेने में सक्षम हो पाएंगे। कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी ने इस विधेयक पर कहा कि हम सरकार को सलाह देना चाहते हैं कि जब काम जल्दी में किया जाता है तो गलतियां होती हैं। इस मामले पर देश में अभी विचार-विमर्श चल रहा है। केंद्र सरकार ने इस मामले को लेकर न तो किसी हिस्सेदार से बात की है और न ही किसी राज्य से सलाह ली है। चौधरी ने कहा कि हम मांग करते हैं कि इस संशोधन विधेयक को संसद की स्थायी समिति के पास भेज दिया जाए।
स्वतंत्रता के अधिकार का हनन है विधेयक: असदुद्दीन ओवैसी
ऑल इंडिया मजसिल-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के अध्यक्ष और हैदराबाद से सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि यह संशोधन विधेयक अनुच्छेद 19 के तहत स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन है। 18 साल के एक व्यक्ति प्रधानमंत्री चुन सकता है, लिव-इन संबंध में रह सकता है लेकिन आप उससे शादी करने का अधिकार छीन रहे हैं। ओवैसी ने आगे कहा कि भारत में महिला मजदूरी सोमालिया से भी अधिक है।
सुप्रिया सुले का आरोप, विपक्ष से चर्चा नहीं करती केंद्र सरकार
राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) की सांसद सुप्रिया सुले ने कहा कि यह लगातार दूसरी या तीसरी बार है जब वो (केंद्र सरकार) आक्रामत तरीके से विधेयक लेकर आए हैं और उसके बारे में विपक्ष के किसी भी नेता से चर्चा नहीं की गई है। कारोबार सलाहकार समिति में जो भी विचार-विमर्श हुए वह सदन में कभी लागू नहीं किए गए। उन्होंने कहा कि मैं केंद्र सरकार के इस के तौर-तरीके की निंदा करती हूं, जो यह आज-कल कर रही है।
स्थायी समिति के पास भेजा जाए संशोधन विधेयक: कनिमोझी
इसके साथ ही द्रमुक सांसद कनिमोझी ने इस संशोधन विधेयक को लेकर कहा कि महिला आरक्षण विधेयक के अलावा केंद्र सरकार किसी के साथ भी चर्चा करने में भरोसा नहीं करती है। उन्होंने कहा कि यह बहुत जरूरी है कि लड़कियों की शादी की आयु के बेहद महत्वपूर्ण विधेयक को संसद की स्थायी समिति या फिर चयन समिति के पास भेजा जाए। वह इसकी समीक्षा करें और लोगों की राय जानने के बाद विधेयक पेश करें।

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