राष्ट्रपति पद को लेकर विपक्ष होगा हमलावर

पवार पर विपक्ष लामबंद
नई दिल्ली। राष्ट्रपति पद का चुनाव जुलाई माह में होना है। उ.प्र और पंजाब के चुनाव परिणामों ने भाजपा के लिए नई मुसीबत खड़ी कर दी है। पिछले 1 वर्ष में सहयोगी दलों के साथ बनी दूरियां तथा दक्षिणी राज्यों के मुख्यमंत्रियों द्वारा भाजपा के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है। ऐसी स्थिति में विपक्षी एकता काफी मजबूत हो रही है। राष्ट्रपति पद के लिए शरद पवार ने पिछले माह केसीआर को नीतीश कुमार का नाम सुझाया था। दक्षिण भारत के नेता पवार को राष्ट्रपति पद के लिए सहमत थे। ममता बैनर्जी भी पवार के पक्ष में है। शरद पवार के नाम पर कांग्रेस शिवसेना सहित सभी विपक्ष दल एकजुट हैं। उप्र में भाजपा की बढ़ती ताकत के बाद विपक्ष और आक्रमक मुद्रा में आ गया है। उप्र में राष्ट्रपति पद के चुनाव में भाजपा को भारी नुकसान हुआ है। नीतीश कुमार के ऊपर दक्षिण के राज्यों को भरोसा नहीं है। शरद पवार बदली हुई परिस्थितियों में शरद पवार का पलड़ा दिख रहा है। वहीं भाजपा भी राष्ट्रपति चुनाव के लिए एक बार फिर नए गठबंधन तैयार करने की रणनीति पर काम करना शुरु कर दिया है। सूत्रों के अनुसार विपक्षी दलों को अपने पाले में लाने के लिए भाजपा ने गंभीरता से प्रयास शुरु कर दिये हैं। इसमें साम-दाम दंड भेद की रणनीति बनाकर राष्ट्रपति पद पर भाजपा अपने उम्मीदवार को निर्वाचित कराने के लिए काफी गंभीर है। सूत्रों के अनुसार मार्गदर्शन मंडल के किसी नेता को राष्ट्रपति पद के चुनाव में उतार सकती है।

राष्ट्रपति चुनने में होगी दिक्कत
पांच में से चार राज्य जीतने के बाद भाजपा का उत्साह भले ही अभी आसमान पर हो, मगर आने वाले दिनों में यही परिणाम भाजपा के लिए दिक्कतों का कारण भी बनेंगे। यूपी, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर के चुनाव में से भाजपा की यूपी में 52, उत्तराखंड में 10, पंजाब में एक सीट कम हुई है। यूपी में बहुमत घटने से जुलाई में होने वाले राष्ट्रपति चुनाव के लिए भाजपा की राह थोड़ी कठिन हो गई है। जुलाई 2021 में सिर्फ 0.05 फीसदी की तुलना में भाजपा के नेतृत्व वाला एनडीए अब बहुमत के निशान से 1.2 फीसदी दूर हो गया है। भाजपा को लग रहा है कि निर्वाचक मंडल में बहुमत हासिल करने में काफी हद तक आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी की वाईएसआर कांग्रेस पार्टी और ओडिशा के सीएम नवीन पटनायक की बीजू जनता दल उसकी मदद कर देगी। एनडीए के वोट-शेयर में गिरावट के लिए काफी हद तक उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड विधानसभा चुनावों में भाजपा का संख्याबल घटने को जिम्मेदार माना जा सकता है।
8 माह में 48 विधायकों का नुकसान
जुलाई 2021 तक कुछ सीटें रिक्त होने के कारण यह संख्या घटकर 315 रह गई थी। 2022 के चुनावों में, भाजपा ने 255 सीटें जीतीं और अपना दल (एस) ने 12 जीतीं। वहीं, एक अन्य सहयोगी निर्बल इंडियन शोषित हमारा आम दल (निषाद) के छह विधायक जीते हैं। इस तरह, एनडीए के पास अब राज्य में कुल 273 विधायक हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो आठ महीनों के भीतर, एनडीए को उत्तर प्रदेश में 48 विधायकों का नुकसान उठाना पड़ा है, जो राष्ट्रपति चुनाव में कुल वोट-शेयर का लगभग 0.9 प्रतिशत है। इस साल मतदान वाले अन्य राज्यों में से उत्तराखंड में भाजपा की सीटें घटकर 47 रह गईं, जो जुलाई 2021 में 56 थी। मणिपुर में, एनडीए जुलाई 2021 के 36 विधायकों की तुलना में अब 32 विधायकों पर सिमट गया है, खासकर तब तक के लिए जब तक अलग चुनाव लड़ने वाले सहयोगी दल फिर भाजपा से हाथ नहीं मिला लेते। गोवा में, एनडीए अपने पुराने सहयोगी महाराष्ट्रवादी गोमांतक के बाहरी समर्थन के साथ 28 विधायकों से घटकर 20 पर आ गया है।

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