पंचायतों मे खुली दुकान, सरकारी योजनाओं के लिये भटक रहे हितग्राही
उमरिया। सरकार और प्रशासन की सोच है कि गांव मे रहने वाले गरीबों को किसी भी तरीके से सक्षम बनाया जाय ताकि वे विकास की मुख्यधारा मे शामिल हो कर राष्ट्र निर्माण मे अपना योगदान दे सकें। इसके लिये विभिन्न योजनायें संचालित की जा रही हैं, जिन पर प्रतिवर्ष करोड़ों रूपये पानी की तरह बहाये जा रहे हैं किन्तु उनका लाभ पात्र व्यक्तियों के बजाय जेब ढीली करने वाले हितग्राहियों को मिल रहा है। इसके लिये बकायदा रेट तय किये गये हैं, जो इन कीमतों को अदा करता है उसे अपात्र होने के बाद भी योजना का लाभ मिल जाता है परंतु जो गरीब फीस का भुगतान नहीं कर पाते वे तहसील से जनपद और कलेक्ट्रेट तक के चक्कर काटते रह जाते हैं। इसका एक ताजातरीन उदारण जिले के करकेली जनपद के तहत आने वाली ग्राम पंचायत गुड़ा है, जहां के आदिवासी पीएम आवास से लेकर राशन कार्ड बनवाने तक के लिये सरपंच और सचिव को आरजू मिन्नतें कर रहे हैं, लेकिन उनकी सुनवाई नहीं हो रही है।
ठप्प पड़ी शासन की योजनायें
कलेक्टर संजीव श्रीवास्तव के समक्ष अपनी समस्या लेकर पहुंचे इन कोल आदिवासियों ने बताया कि लगभग 600 की आबादी वाले ग्राम पंचायत गुड़ा के बांसा गांव मे अभी तक एक भी प्रधानमंत्री आवास स्वीकृत नहीं हुआ है। उनका आरोप है कि ग्राम पंचायत मे सरकार की अधिकांश योजनायें ठप्प पड़ी हुई है। लोग परेशान हो कर भटक रहे हैं पर उनकी कोई सुनने वाला नहीं है। उल्लेखनीय है कि पीएम आवास केन्द्र सरकार की एक महात्वाकांक्षी योजना है, जिसके तहत प्रत्येक आवासहीन को छत मुहैया कराई जानी है। ग्रामीणो के ये आरोप इसलिये और भी गंभीर हैं क्योंकि बांसा कोल बाहुल्य गांव है, जो कि अति पिछड़ी जातियों मे शुमार है।
दलालों का बोलबाला
पीडि़त गांव वालों का कहना है कि बांसा गांव मे सरपंच, सचिव और दलालों की मिलीभगत के कारण लोग या तो सरकारी योजनाओं से वंचित हैं, या इसके लिये उन्हे कीमत चुकानी पड़ती है। उन्होने आरोप लगाया कि ग्राम पंचायत मे प्रधानमंत्री आवास के लिये हजार रूपये जबकि राशन कार्ड के लिये पांच सौ रूपये के बतौर एडवांस दाम फिक्स हैं। बाकी पैसा काम होने के बाद लिया जाता है।
शिकायत की होगी जांच
ग्रामीणो द्वारा की गई शिकायत की जांच कराई जायेगी। यदि इसमे सत्यता पाई गई तो दोषियों के विरूद्ध कड़ी कार्यवाही सुनिश्चित की जायेगी।
संजीव श्रीवास्तव
कलेक्टर, उमरिया