मोदी कैबिनेट में दी केन-बेतवा लिंक प्रोजेक्ट को मंजूरी

केन बेतवा नदियों को जोडऩे वाली परियोजना पर 44,605 करोड़ होंगे खर्च
नई दिल्ली । केन-बेतवा नदियों को जोडऩे वाली केन-बेतवा लिंक प्रोजेक्ट को केंद्रीय कैबिनेट ने मंजूरी दे दी है। यह परियोजना 44,605 करोड़ रुपए की लागत से पूरी होगी। इस परियोजना के तहत 8 वर्ष में पूरा किया जाएगा। इस राष्ट्रीय परियोजना में केंद्र सरकार का योगदान 90 प्रतिशत होगा। केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने कैबिनेट के फैसलों की जानकारी देते हुए बताया कि इस परियोजना को मंजूरी दे दी गई है। केन-बेतवा लिंक परियोजना को लेकर मप्र-उप्र की राज्य सरकारों के बीच समझौता और परियोजना का अंतिम सर्वे होने के साथ ही शिलान्यास की तैयारी की जा रही है। लेकिन 16 साल पिछडऩे से परियोजना की लागत भी बढ़ गई है। करीब आठ हजार करोड़ रुपए की नदी जोड़ो परियोजना अब 44 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा की हो गई है। जबकि वर्ष 2015 में परियोजना की लागत 37 हजार करोड़ आंकी गई थी। लागत में भारी भरकम इजाफा 16 साल की देरी के साथ जीएसटी लगने से भी हुआ है।
2002 में बनी थी परियोजना की रूपरेखा
तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के समय वर्ष 2002 में केन और बेतवा नदी को जोडऩे की रूपरेखा बनी थी। अगस्त 2005 में उत्तरप्रदेश और मध्यप्रदेश सरकार के बीच इसको लेकर पहला समझौता हुआ। इसमें केन नदी को पन्ना जिले में प्रस्तावित ढोढऩ बांध से लगभग 221 किमी लंबी केन-बेतवा लिंक नहर के जरिए झांसी के बरुआसागर के पास बेतवा नदी से जोड़ा जाना था। उस दौरान इसकी लागत 8 हजार करोड़ रुपए आंकी गई थी। सबसे अधिक खर्च पुनर्वास पर किया जाना था। डूब के चलते पन्ना टाइगर रिजर्व पार्क को स्थानांतरित किया जाना था। लेकिन परियोजना पर काम शुरु होने के बजाए उप्र एवं मप्र के बीच जल बंटवारे को लेकर विवाद शुरू हो गया। विवाद के चलते परियोजना लगातार पीछे खिसकती गई। इस वजह से पुनर्वास लागत भी बढ़ती गई। 2015 में जब एक बार फिर दोनों राज्य परियोजना को लेकर सहमत होने लगे तब इसकी लागत बढ़कर 37 हजार करोड़ तक पहुंच चुकी थी। लेकिन उसके बाद भी परियोजना जल बंटवारे को लेकर छह साल उलझी रही।
जीएसटी से बढ़ी 18 फीसदी लागत
केंद्र सरकार के दखल के बाद 22 मार्च 2021 को आखिरकार उप्र एवं मप्र की राज्य सरकारें पानी के बंटवारे को लेकर सहमत हो गई। अब परियोजना पर काम शुरु होने का समय आ गया है। ऐसे मेें सिंचाई विभाग के इंजीनियरों ने परियोजना की लागत का फिर से आंकलन किया जा रहा है, जो अब 75 हजार करोड़ रुपए होने का अनुमान है। लागत बढऩे की वजह जीएसटी को भी माना जा रहा है। जो परियोजना पर 18 फीसदी जोड़ा गया है। वहीं, पुनर्वास खर्च में बढ़ोतरी हो गई। ऐसे में लागत का करीब 30 फीसदी बढऩा तय है हालांकि अभी लागत पूरी तरह तय नहीं हुई है। लागत को लेकर परीक्षण का काम चल रहा है।
केंद्र सरकार का बढ़ा खर्च
परियोजना की कुल लागत का 90 फीसदी बजट केंद्र सरकार को देना है, जबकि शेष दस प्रतिशत बजट उप्र एवं मप्र सरकार अपने-अपने पानी के अनुपात में वहन करेंगे। इस लिहाज से दोनों ही राज्यों को इस परियोजना में काफी कम लागत खर्च करनी होगी। लेकिन बढ़ी लागत के अनुसार केन्द्र का खर्च बढ़ गया है।

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