सुप्रीम कोर्ट का इलाहाबाद हाईकोर्ट को निर्देश
नई दिल्ली । सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट को निर्देश दिया है कि वह सांसदों व विधायकों पर मामूली अपराधों के मुकदमों की सुनवाई के लिए उत्तर प्रदेश में विशेष अदालतें गठित करे। इसके साथ ही अपराध की गंभीरता को देखते हुए इनसे संबंधित मामले सत्र या मजिस्ट्रेट अदालत को आवंटित करने की व्यवस्था सुनिश्चित करे। शीर्ष अदालत ने कहा कि यूपी में ऐसी अदालतों का गठन नहीं होने की वजह उसके आदेश का गलत अर्थ लगाना है। सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट से कहा कि वह मौजूदा आदेश की पुष्टि के लिए नया परिपत्र जारी करे। प्रधान न्यायाधीश एनवी रमण की अध्यक्षता वाली पीठ ने उत्तर प्रदेश में सांसदों व विधायकों के लिए विशेष अदालतें गठित नहीं करने पर आपत्ति प्रकट की और कहा कि 16 अगस्त 2019 को हाईकोर्ट द्वारा जारी अधिसूचना उसके पूर्व के दिशा निर्देशों की गलत व्याख्या पर आधारित थी। मामले में नया आदेश जारी करने वाली सुप्रीम कोर्ट की विशेष पीठ में जस्टिस डीवाई चंद्रचूड व जस्टिस सूर्यकांत भी शामिल हैं। यह आदेश उस कानूनी सवाल पर आया है कि क्या ‘माननीयों’ के खिलाफ दर्ज मामूली अपराधों की सुनवाई, मजिस्ट्रेट कोर्ट की बजाए एक सत्र न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली विशेष कोर्ट में होना चाहिए? जबकि सत्र न्यायाधीश न्यायिक मजिस्ट्रेट की तुलना में वरिष्ठ होते हैं। मामले में आरोप लगाया गया था कि मामूली मामलों की सुनवाई सत्र न्यायाधीशों द्वारा किए जाने से आरोपी को अपील का एक अवसर कम मिलता है, जबकि अन्य सामान्य आरोपियों को पहले मजिस्ट्रेट कोर्ट में सुनवाई के बाद सत्र न्यायाधीश के समक्ष अपील का अवसर मौजूद है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने वर्तमान आदेश में कहा कि मजिस्ट्रेट कोर्ट के विचारण योग्य केस, जिनकी सुनवाई अब तक सत्र न्यायलों में हो रही थी, उन्हें पुन: मजिस्ट्रीयल कोर्ट के पास स्थानांतरित किया जाए। इन मामलों की सुनवाई उसी स्तर से की जाए, जहां यह अभी चल रही थी। इसलिए नए सिरे से मामले की सुनवाई नहीं होगी।
अब्दुल्ला खान आजम की याचिका पर आदेश
सुप्रीम कोर्ट ने यह आदेश अब्दुल्ला खान आजम की याचिका पर दिया है। वह सपा नेता आजम खान के बेटे हैं। उनका आरोप था कि उनका केस मजिस्ट्रीयल कोर्ट की बजाए विशेष अदालत द्वारा सुना जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व के अपने आदेश में यह नहीं कहा था कि मजिस्ट्रेट कोर्ट के विचारण योग्य मामले विशेष अदालतों को ट्रांसफर किए जाएं। अपने पहले के आदेशों का जिक्र करते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने कहा उसने हाईकोर्टों को उन मामलों को विशेष अदालतों में स्थानांतरित करने को नहीं कहा है, जिन्हें मजिस्ट्रेट अदालतों द्वारा सुना जाता है।