बीते सैकड़ों वर्षों में जुलाई सबसे गर्म महीना, 2024 में बिगड़ेंगे हालात’, नासा वैज्ञानिक की चेतावनी

EL NINO

 

बीते सैकड़ों वर्षों में जुलाई सबसे गर्म महीना, 2024 में बिगड़ेंगे हालात’, नासा वैज्ञानिक की चेतावनी

न्यूज डेस्क, बांधवभूमि
गेविन शिमिट ने चेतावनी दी कि 2024 में हालात और बिगड़ सकते हैं। शिमिट ने कहा कि अल नीनो प्रभाव अभी उभरा है और इस साल के अंत तक यह चरम पर होगा।
दुनिया के बढ़ते तापमान से हर कोई परेशान है। अब नासा के एक वैज्ञानिक ने चेतावनी दी है कि यह परेशानी और बढ़ सकती है। बता दें कि नासा के जलवायु विज्ञानी गेविन शिमिट ने दावा किया है कि बीते सैकड़ों सालों में जुलाई का महीना सबसे गर्म रहा है। यूरोपीय यूनियन और यूनिवर्सिटी ऑफ मेन के जमीनी और उपग्रह डाटा का विश्लेषण कर जो डाटा निकला है, उसके आधार पर नासा के विशेषज्ञ ने यह दावा किया है।
पूरी दुनिया में हो रहे अभूतपूर्व बदलाव
नासा विशेषज्ञ शिमिट ने कहा कि हम दुनिया भर में अभूतपूर्व बदलाव देख रहे हैं। अमेरिका, यूरोप और चीन में जो गर्म हवाएं चल रही हैं, वह आए दिन रिकॉर्ड तोड़ रही हैं। शिमिट ने कहा कि अल नीनो प्रभाव ही दुनिया का तापमान बढ़ने की अकेली वजह नहीं है बल्कि इसकी प्रमुख वजह पर्यावरण में ग्रीन हाउस गैसों का लगातार उत्सर्जन और इनमें कमी नहीं आना है।
हालांकि शिमिट ने ये भी कहा कि अल नीनो प्रभाव भी एक वजह है, जिसकी वजह से तापमान बढ़ रहा है। 2023 हाल के सालों में सबसे गर्म साल रह सकता है। हालांकि अभी डाटा का विश्लेषण करने के बाद ही इसकी पुष्टि हो पाएगी लेकिन कई वैज्ञानिक दावा कर रहे हैं कि इसके 80 फीसदी चांस हैं।
2024 में और बिगड़ेंगे हालात
गेविन शिमिट ने चेतावनी दी कि 2024 में हालात और बिगड़ सकते हैं। शिमिट ने कहा कि अल नीनो प्रभाव अभी उभरा है और इस साल के अंत तक यह चरम पर होगा। अल नीनो के प्रभाव से ही 2024 के और अधिक गर्म रहने की आशंका है।
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क्या होता है अल नीनो प्रभाव और यह कैसे जलवायु को प्रभावित करता है
सामान्य परिस्थितियों में प्रशांत महासागर में जब व्यापारिक हवाएं चलती हैं तो वह भूमध्य रेखा से होते हुए अपने साथ प्रशांत महासागर की सतह पर मौजूद गर्म पानी को दक्षिण अमेरिका से एशिया की तरफ ले जाती हैं। सतह के गर्म पानी की जगह समुद्र की गहराईयों का ठंडा पानी सतह पर आ जाता है। इस पूरी प्रक्रिया को अपवेलिंग (उत्थान) कहा जाता है। अल नीनो प्रभाव में यह प्रक्रिया बदल जाती है, जिसका असर पूरी दुनिया के मौसम पर होता है।
अल नीनो प्रभाव के दौरान प्रशांत महासागर से व्यापारिक हवाएं धीमी चलती हैं, जिसके प्रभाव से प्रशांत महासागर की सतह का गर्म पानी अमेरिका के पश्चिमी तटों से होते हुए पूर्व की तरफ चला जाता है। इसके चलते पश्चिम से पूर्व की तरफ चलने वाली तेज हवाएं, जिन्हें प्रशांत जेट स्ट्रीम कहा जाता है, वह अपनी तटस्थ जगह यानी दक्षिण की तरफ चली जाती हैं। इसके चलते अमेरिका, कनाडा में सामान्य से ज्यादा गर्मी बढ़ जाती है। वहीं अमेरिका अरब तट और दक्षिण पूर्व के देशों में भारी बारिश होती है, जिससे बाढ़ की घटनाएं बढ़ जाती हैं।

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