बिना व्यवस्था नहीं छोड़ेंगे गांव

विस्थापन के खिलाफ जुटे हजारों ग्रामीण, सरकार पर परेशान करने का आरोप
बांधवभूमि, उमरिया
बांधवगढ़ राष्ट्रीय उद्यान के विस्तार हेतु किये जा रहे गांवों के विस्थापन का विरोध अब तेज होता जा रहा है। इसे लेकर रविवार को ताला स्थित हाटबाजार मे एक सभा का आयोजन किया गया। जिसमे हजारों की तादाद मे ग्रामीण शामिल हुए। कार्यक्रम मे उमरिया के अलावा कटनी और शहडोल जिलों के लोगों ने भी शिरकत की। जिनका साफ तौर पर कहना था कि पार्क प्रबंधन और प्रशासन बिना विस्थापितों की रजामंदी लिये जबरन कार्यवाही कर रहा है। बैठक मे सरकार के रवैये पर भी चिंता जाहिर की गई। लोगों का कहना है कि शासन उनके भविष्य के खिलवाड़ कर रहा है। उल्लेखनीय है कि बांधवगढ़ के कोर जोन मे शामिल ग्राम गढ़पुरी के विस्थापन की प्रक्रिया जारी है जबकि पनपथा के गांगीताल, सेजवाही, पतौर रेंज के बमेरा, कसेरू, कुसमहां, बड़वाही, बगैहा खितौली के बगदरी सहित कई गावों को हटाये जाने का कार्य किया जाना है।
तो परिवार सहित जान दे देंगे
बैठक मे अधिकांश हरिजन, आदिवासी और गरीब तबके के लोग थे। जिन्होने बताया कि वे पुश्तैनी रूप से इन गावों मे खेती करके अपना जीवन यापन कर रहे हैं। विस्थापन की स्थिति मे केवल पैसा देने की बात कही जा रही है। जो पैसा मिलेगा, वह तो घर बनाने मे ही चला जायेगा। फिर खेती कहां होगी। उनकी मांग है कि सरकार विस्थापित परिवारों को प्रति व्यक्ति के हिसाब से 15 लाख के अलावा 5-5 एकड़ जमीन तथा घर बनवा कर दे। सांथ ही बिजली, पानी आदि के इंतजाम भी किये जांय, तभी वे गांव छोड़ेंगे। अन्यथा परिवार सहित वहीं पर जान दे देंगे।
पास्थितिक संवेदिक जोन मे शामिल 132 गाव
गौरतलब है कि बांधवगढ़ राष्ट्रीय उद्यान के कोर जोन मे शामिल इलाकों के अलावा उमरिया, कटनी और शहडोल जिले के 132 गावों को पास्थितिक संवेदिक जोन मे शामिल किया गया है। समझा जाता है कि आगे-पीछे ये गांव भी विस्थापित होंगे। अगर ऐसा हुआ तो इसके चलते हजारों परिवार का प्रभावित होना तय है। ताला मे आयोजित बैठक मे कहा गया कि इतनी बड़ी आबादी के भाग्य का फैंसला करने से पहले राज्य सरकार को एक ऐसी नीति बनानी चाहिये, जिससे ग्रामीणो को समस्या का सामना न करना पड़े।
दी आंदोलन की चेतावनी
बैठक मे शामिल महिपाल बैगा, तिलकराज सिंह, धर्मदास, मीनाबाई, राममिलन बैगा, सुरेश बैगा आदि ग्रामीणो ने कहा कि उनकी कई पीढिय़ां सैकड़ों वर्षो से इन गावों मे रहती चली आ रही है। उन्ही की वजह से बांधवगढ़ के जंगल, जमीन और जानवर सुरक्षित हैं। इसके बाद भी सरकार यदि ग्रामीणो को हटा कर गांव खाली कराना ही चाहती है, तो लोगों के गुजर-बसर की व्यवस्था करना उसकी जिम्मेदारी है। उन्होने बताया कि अभी प्रारंभिक बैठक हुई है। यदि स्थानीय लोगों की समस्याओं का निराकरण नहीं किया गया तो इसके लिये आने वाले दिनो मे बड़ा आंदोलन किया जायेगा।

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