बाघ के हमले मे एक और युवक की मौत
बांधवगढ़ नेशनल पार्क के मानपुर रेंज की घटना, मवेशियों कोच चरा रहा था युवक
बांधवभूमि न्यूज
मध्यप्रदेश
उमरिया
जिले के बांधवगढ़ राष्ट्रीय उद्यान से लगे क्षेत्रों मे बाघ के हमलों की घटनायें कम होने का नाम नहीं ले रही हैं। शनिवार को बाघ ने एक और चरवाहे को मौत के घाट उतार दिया। मृतक का नाम घिन्नु सिंह पिता रामस्वरूप निवासी पतोर 45 बताया गया है, जो अपने मवेशियों को लेकर जंगल गया था। इसी दौरान मानपुर परिक्षेत्र की कुचवाही बीट मे टाईगर ने उस पर जानलेवा हमला कर दिया। इस हादसे मे घिन्नू सिंह की मौके पर ही मौत हो गई। मामले की जानकारी मिलते ही मृतक के परिजन तथा उद्यान के अधिकारी व कर्मचारी तत्काल घटनास्थल पर पहुुच गये और हालात का जायजा लिया। प्रबंधन द्वारा मृतक का शव पोस्टमार्टम हेतु रवाना किया गया। इस घटना के बाद पूरे इलाके मे दहशत फैल गई है। उल्लेखनीय है कि बीते साल बाघों ने आधा दर्जन से अधिक लोगों को मौत के घाट उतार दिया था, वहीं एक महिला भालू के गुस्से का शिकार हुई थी।
अक्लमंदी ने बचाई युवक की जान
इधर जिला मुख्यालय के समीपस्थ ग्राम उजान मे भी टाईगर अटैक का मामला सामने आया है। यह घटना जनपद मुख्यालय करकेली से कुछ ही दूर अकमानिया तेंदुआ पठारी बीट मे हुई है। बताया गया है कि प्रभु बैगा पिता भैयाराम 35 और उसका भाई छोटू घर के बाड़ी की रूंधाई के लिए खडिय़ा लेने जंगल गये थे। इसी दौरान झाडिय़ों मे छिपे बाघ ने प्रभु बैगा पर हमला कर दिया, जिससे वह गिर गया। घटना के बाद अपनी जान बचाने के लिये युवक चालाकी के सांथ वहीं लेटा रहा। इस दौरान बाघ ने प्रभु पर कई वार किये, परंतु उसने कोई हरकत नहीं की, यह देख कर बाघ चला गया। बाघ के जाते ही प्रभु ने छोटू को आवाज दी, तो वह भी आ गया और भाई को गांव ले आया। घटना की सूचना मिलने के बाद सहायक वन परिक्षेत्र अधिकारी संतोष कुमार महोबिया, बीट गार्ड मुनीद्र त्रिपाठी, बीट प्रभारी, अभिषेक पांडे आदि उजान पहुंचे और करकेली मे प्राथमिक उपचार के बाद घायल युवक को जिला चिकित्सालय पहुंचाया।
मजबूरी और मनमानी ने बिगाड़े हालात
जिले मे आये दिन हो रही इन घटनाओं के पीछे राजनैतिक लाभ को ध्यान मे रख कर लिए गए निर्णय, लोगों की मजबूरी और मनमानी भी कम जिम्मेदार नहीं है। यह सबको पता है कि जंगल वन्यजीवों का निवास है। वे तो अपनी सीमाएं नहीं लांघते। इंसान ही उनके जीवन मे बिन बुलाये पहुंच रहा है। एक समय था जब हर गांव मे अपनी चरनोई भूमि थी। वह तो सरकार ने वनाधिकार और व्यवस्थापन मे बांट दी, अब पशुओं का पेट भरने के लिए ग्रामीण जंगल न जांय तो कहां जांय। देखा जाय तो विगत वर्षों मे इस तरह की जितनी भी घटनाएं हुई हैं, वे सभी तब हुई जब लोग अचानक बाघ के सामने जा पड़े। उस समय वह या तो किल करके बैठा था, या उसके शिकार मे खलल महसूस हुआ।
काम नहीं आ रहा बाघों का रेस्क्यू
इस तरह की घटनाओं मे लोगों की मौत के बाद ग्रामीणों मे भडक़े असंतोष तथा नाराजगी को कम करने के लिए प्रबंधन अब तक कई बाघों को पकड़ कर उन्हे बाड़े मे पहुंचा चुका है, लेकिन इससे कोई फायदा होता नजर नहीं आ रहा। एक जानकारी के मुताबिक सिर्फ साल 2023 मे ही पतौर, पनपथा और मानपुर रेंज के जंगल से चार बाघ और एक भालू रेस्क्यू कर ले जाये गये, परंतु कुछ ही दिनों मे एक नया रंगरूट प्रगट हो जाता है। जानकारों का मानना है कि अपने जीवन की रक्षा और वन्यजीव संरक्षण के लिए ग्रामीणों को ही अपने कदम खींचने होंगे। जबकि सरकार को ऐसी नीति बनाने की दरकार है ताकि गांव के पालतू पशुओं को गांव मे ही भोजन मुहैया हो सकें। तभी इंसान और बाघों का द्वंद कुछ मंद हो सकेगा।