बांधवगढ़ के वन्यजीवों पर संक्रमण का खतरा

बांधवगढ़ के वन्यजीवों पर संक्रमण का खतरा
उद्यान के कोर जोन मे विचरण कर रहे पालतू मवेशी, अधिकारी कुंभकर्णी निद्रा मे
उमरिया। जिले के बांधवगढ़ नेशनल पार्क के कोर तथा बफर जोन मे विचरण कर रहे पालतू मवेशी वहां के दुर्लभ वन्यजीवों के लिये बड़ा खतरा बन गये हैं। बताया जाता है कि धमोखर से लेकर पनपथा तक बड़ी संख्या मे गाय, भैंस, बकरी आदि जानवर क्षेत्र मे बने रहते हैं। जो कि बेहद आपत्तिजनक और खतरनाक है। जानकारों का मानना है कि इस सीजन मे अधिकांशत: पालतू पशु गोड़हा, खुरपका, मुंहपका अदि रोगों से संक्रमित हो जाते हैं। जंगल मे चरने के दौरान वे इन बीमारियों के विषैले वायरस वहीं छोड आते हैं। जैसे ही बाघ, तेंदुआ, हिरन आदि उस स्थान पर पहुंचते हैं, जीवाणु उन्हे भी अपनी चपेट मे ले लेते हैं। इतनी गंभीर स्थिति के बावजूद पार्क केे अधिकारियों के कानो मे जूं तक नहीं रेंग रही। बताया जाता है राष्ट्रीय उद्यान के ताला कोर जोन मे पदस्थ एसडीओ और रेंजर की सारी कवायद निर्माण कार्यो और सामान की खरीददारी तक सीमित है। बाकी चीजों से उन्हे कोई लेना-देना ही नहीं है। कई-कई दिनो तक तो ये अधिकारी अपने बंगलों से बाहर झांकते तक नहीं हैं। दरअसल सारी समस्या की जड़ यही भ्रष्ट और लापरवाह अधिकारी ही हैं।
बांधवगढ़ का संक्रमण काल
देश और दुनिया मे बेशकीमती घने जंगलों, पुरातत्विक सपंत्तियों, किंवदंतियों तथा दुर्लभ जीवों के लिये मशहूर बांधवगढ़ नेशनल पार्क की जितनी दुर्गति बीते कुछ वर्षो मे हुई है,शायद ही पहले कभी हुई होगी। साल 2021 की शुरूआत तो उद्यान मे भीषण आग के सांथ हुई। जिससे हजारों हरे-भरे वृक्ष जलकर खाक हो गये। इस दुर्घटना मे बाघ सहित कई जंगली जानवर भी मौत के मुंह मे समा गये। मजे की बात यह है ताला रोड से आग की भयावह स्थिति और धुएं का गुबार साफ-साफ दिखने के बावजूद पार्क के अधिकारी इस घटना के प्रति अनभिज्ञ बने रहे। यहां तक कि अधिकारियों ने वनमंत्री को भ्रमित कर उनसे आग को स्वाभिक घटना होने का बयान तक जारी करवा दिया। आग लगभग 10 दिनो तक वनों को तबाह करती रही और अधिकारी अपने बंगलों मे आराम फरमाते रहे।
अमूल-चू्रल बदलाव की दरकार
हालत आज भी वही है। उद्यान की व्यवस्था पूरी तरह से चरमराई हुए है। आये दिन बाघों सहित अन्य जीवों की संदिग्ध मौतें हो रही हैं। मौत चाहे किसी भी कारण से हो, अधिकारी इसे टेरिटोरीयल फाईट बता कर अपनी जिम्मेदारियों से मुक्त हो जाते हैं। यदि मामला गले की फांस बना तो भोले-भाले ग्रामीणो और आदिवासियों पर जबरन आरोप मढ़ कर अपनी पीठ ठोकने मे भी गुरेज नहीं किया जाता। वन्य जीव प्रेमियों का मानना है कि पार्क प्रबंधन स्तर पर अब अमूल-चूल परिवर्तन आवश्यक हो गया है। यदि ऐसा नहीं हुआ तो बांधवगढ़ की हालत भी पन्ना और पेंच जैसे बाघविहीन पार्को जैसी हो जायेगी।
जंगल से आती हैं बीमारियां
ऐसा नहीं है कि पालतू पशु केवल जंगल मे बीमारियां छोड़कर आते है। बल्कि वे वहां से रैबीज जैसी बीमारियां लेकर भी आते है। वन्यजीव विशेषज्ञों का कहना है कि जंगल मे रहने वाले सियार, भेडिय़ा, लोमड़ी, बंदर, जंगली कुत्ते, नेवला आदि के काटने से पालतू पशुओं को रैबीज हो जाता है। आम पशुपालक इसे जान नहीं पाते है। वह साधारण चोट या खरोंच समझ उसे अनदेखा कर देते है एक या दो महीने बाद यही बीमारी पशुओं के लिए जानलेवा बन जाती है। इसके अलावा मच्छर, मक्खी, किलनी और उनके मल-मूत्र से एनाप्लाजमोसिस, फाइलेरिया, ट्रैपनोसोमसिस और बेबियोसिस जैसी बीमारियों का आदान प्रदान आसानी से हो जाता है।

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