पूर्व रीवा रियासत के महाराज की याचिका पर हाईकोर्ट ने जारी किया नोटिस
बांधवभूमि, उमरिया
पूर्व रीवा रियासत के महाराज पुष्पराज सिंह ने जिले के राष्ट्रीय उद्यान बांधवगढ़ मे स्थित अपनी निजी संपत्ति का मुआवजा दिलाने के लिये अब हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। श्री सिंह की याचिका क्रमांक 24210/22 को स्वीकार करते हुए उच्च न्यायालय जबलपुर के जस्टिस श्री संजय द्विवेदी की एकलपीठ ने केन्द्रीय गृह मंत्रालय के सचिव, महामहिम राष्ट्रपति के कैबिनेट सचिव, केन्द्रीय वन एवं पर्यावरण सचिव के अलावा मध्यप्रदेश के मुख्य सचिव, वन विभाग के प्रमुख सचिव, मुख्य वन सरंक्षक, संचालक नेशनल पार्क तथा कलेक्टर उमरिया को नोटिस जारी कर 19 दिसंबर तक अपना जवाब प्रस्तुत करने को कहा है।
विलय पत्र मे मानी गई थी निजी संपत्ति
याचिकाकर्ता का कहना है कि देश की स्वतंत्रता के उपरांत रीवा स्टेट का भारत मे विलय हुआ था। सरकार द्वारा विलय पत्र मे अन्य चल-अचल संपत्तियों के सांथ बांधवगढ़ किले और उससे लगी करीब साढ़े पांच सौ एकड़ भूमि को भी राजघराने की निजी संपत्ति माना गया था। बांधवगढ़ नेशनल पार्क की स्थापना के बाद प्रशासन द्वारा इस क्षेत्र मे आवागमन पूरी तरह प्रतिबंधित कर दिया गया था। पुष्पराज सिंह के अधिवक्ता ने माननीय न्यायालय को बताया कि संविधान के अनुच्छेद 363 के अुनसार राजघराने एवं उनके उत्तराधिकारियों को उनके अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता। वर्तमान समय मे उक्त निजी संपत्तियों का उपयोग राज्य सरकार और वन विभाग द्वारा किया जा रहा है। इसके एवज मे आज तक कोई मुआवजा नहीं दिया गया है। अत: शासन की गाईडलाईन के मुताबिक संपत्ति का मुआवजा दिलाया जाय।
बिना पक्ष सुने सरकार ने किया था फैंसला
बताया गया है कि राज्य की शिवराज सरकार ने कई वर्ष पूर्व बांधवगढ़ किले और उससे लगी भूमि को शासकीय संपत्ति घोषित कर दिया था। उस समय भी सरकार ने राजघराने का ना तो पक्ष सुना और ना ही अवार्ड ही पारित किया गया। काननूविदों का मानना है कि किसी भी निजी संपत्ति को बिना उचित मुआवजा दिये अथवा अधिग्रहण की कार्यवाही के शासकीय संपत्ति घोषित नहीं किया जा सकता।
सुप्रीम कोर्ट भी जा चुका है मामला
जानकारी के अनुसार यह मामला इससे पहले सर्वोच्च न्यायालय तक भी जा चुका है। बताया गया है कि किसी एनजीओ द्वारा प्रस्तुत याचिका मे सुप्रीम कोर्ट ने आदेशित किया था कि वन्यजीव कानून के तहत नेशनल पार्क के कोर जोन मे निजी संपत्ति नहीं रह सकती। इस दौरान भी बांधवगढ़ किले और भूमि के संबंध मे राजघराने के स्वामित्व को नकारा नहीं गया था।
बांधवगढ किले का मांगा मुआवजा
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