बढ़े अवसाद और आत्महत्या के मामले

कोरोना के बाद घटनाओं मे आई तेजी, सितंबर मांह मे अब तक डेढ़ दर्जन मौतें
उमरिया। कोरोना संक्रमण के दौरान जिले मे अवसाद और आत्महत्याओं की घटनाओं मे काफी वृद्धि हुई है। यह आंकड़ा मंाह दर मांह बढ़ता जा रहा है। पुलिस द्वारा दी गई जानकारी के मुताबिक शनिवार को ही आत्महत्या के 4 मामले सामने आये थे, इन चारों ने फांसी लगा कर अपना जीवन समाप्त कर लिया। इस महीने मे ही अब क फांसी, आग, जहर और ट्रेन से कट कर करीब डेढ़ दर्जन से ज्यादा की मौत हो चुकी है, जो कि एक बड़ा आंकड़ा है। जानकार इसके पीछे कोरोना के संक्रमण, बेरोजगारी, उद्योग धंधों का ठप्प होना और बीमारी को लेकर पैदा हुई अनिश्चितता को कारण मान रहे हैं। उनका मानना है कि कोविड-19 ने नकेवल लोगों के स्वास्थ्य को अपना निशाना बनाया है बल्कि इससे रोजगार और व्यापार भी बुरी तरह चरमराया गया है। घटने की बजाय यह महामारी अब गुणात्मक तेजी के सांथ बढ़ती जा रही है। बीमारी का सटीक इलाज न होने और इसकी वृद्धि से जहां लोगों मे भय व्याप्त है वहीं पिछले कई महीनो से लॉकडाउन, वैवाहिक कार्यक्रमों और धार्मिक आयोजनो पर पाबंधियों ने आम आदमी की जेब पर सीधा प्रहार किया है। शायद इन्ही वजहों से समाज मे तनाव और अवसाद की स्थिति निर्मित हो रही है।
सात महीनो मे सौ से ज्यादा मौतें
बताया गया है कि कोरोना की आमद के बाद से जिले मे खुदकुशी के मामले अचानक बढ़े हैं। विभिन्न स्त्रोतों से मिले आंकड़ों के मुताबिक मार्च से सितंबर के दरमियान लगभग 110 से अधिक लोगों की मौत फांसी, अग्नि स्नान, जहर खाने अथवा ट्रेन से कट कर हुई है। इनमे अकेले फांसी पर झूल कर मौत का वरण करने वालों की तादाद करीब 80 के आसपास है। जबकि आग से 20, जहर से 5 और ट्रेन के सामने कूदने वालों की संख्या 10 के आसपास बताई गई है।
त्यौहारों और विवाहों से मिलता रोजगार
व्यापारिक क्षेत्र से जुडे सूत्रों का कहना है कि त्यौहार और लगन का सीजन रोजगार के सबसे ज्यादा अवसर पैदा करता है। केवल विवाह से ही कपड़ा, किराना, बर्तन, फोटो स्टूडियो, वाहन, होटल, बैण्ड, बाजों सहित दर्जनो तरह के कारोबार चलते हैं। वहीं तीज-त्यौहार से भी खरीद-बिक्री मे काफी उछाल आता है। कोरोना ने पहले तो विवाहों पर ब्रेक लगाई फिर इन्हे सीमित कर दिया। धार्मिक आयोजनो का भी यही हाल है, अधिकांश पर्व अब सार्वजनिक की बजाय घरों पर ही मनाये जा रहे हैं। इन सब वजहों ने उद्योग धधों की कमर तोड़ दी है।
रेलबंदी ने भी तोड़ी कमर
ट्रेनो के संचालन पर भी कई लोग आश्रित हैं। महामारी ने रेलों के पहियों को रोक दिया है, जिससे हजारों लोग बेरोजगार हो गये हैं। जिले के कई परिवार टे्रनों मे चाय-नास्ता, मूंगफली, चना, फल-फ्रूट आदि बेंच कर बड़े आराम से अपना जीवन-यापन कर रहे थे। बीते सात महीनो से यात्री गाडिय़ां ठप्प है, तो ये सभी सड़क पर आ गये हैं। एक दो महीने तक तो इन लोगों का काम किसी तरह जमा पूंजी से चला, पर अब वह भी चूक गई। ट्रेने कब तक शुरू होंगी इसका भी कोई भरोसा नहीं है।
मंहगाई रूकने के आसार नहीं
घटती कमाई पर बढ़ती मंहगाई करेले पर नीम चढऩे जैसा काम कर रही है। पेट्रोल, डीजल, किराना, अनाज से लेकर भाड़ा तक आसमान छूने लगे हैं। जिसने मध्यम वर्ग के सामने मुसीबत खड़ी कर दी है। रोज-मर्रा का खर्च, घरों का किराया, बिजली का बिल और बच्चों की पढ़ाई का खर्च तो बढ़ता ही जा रहा है पर कमाई घटती चली जा रही है। ऐसे मे तनाव, गुस्सा और घरेलू कलह होना स्वाभाविक है। कुल मिला कर सैकड़ों साल बाद आम आदमी के सामने सबसे बड़ी चुनौती है जिसका सामना सभी को करना है।

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