पॉलिथीन से मच रही गंदगी

पॉलिथीन से मच रही गंदगी
स्वच्छता मे बड़ा रोड़ा, नदी से लेकर नालियां और सार्वजनिक स्थान प्रदूषित
उमरिया। पॉलीथीन प्रकृति, पर्यावरण जीव जंतुओं के लिये सबसे बड़ी समस्या बन चुका है। वर्षो तक नष्ट नहीं होने और बेहद नुकसानदायक होने के कारण सरकारों ने इस पर पूर्ण रूप से प्रतिबंध लगा दिया है, परंतु इसका उत्पादन, विक्रय और उपयोग आज भी जारी है। जिले की नदियों, नालियों से लेकर सार्वजनिक स्थलों पर पॉलिथीन बड़ी मात्रा मे देखा जा सकता है। एक जानकारी के मुताबिक उमरिया मे रोजाना 12 से 15 ट्राली कचरा निकलता है, जिसमे 70 प्रतिशत मात्रा पॉलिथीन की है। ऐसे मे सवाल उठता है कि प्रतिबंध के बावजूद इतनी मात्रा मे पॉलिथीन की आपूर्ति आखिर कहां से हो रही है। बताया जाता है कि इसका सर्वाधिक उपयोग दूध, फल, सब्जियों तथा छोटा सामान खरीदने मे हो रहा है।
बिगड़ती जा रही उमरार की दशा
इतना ही नहीं नागरिकों द्वारा इस्तेमाल के बाद पालिथीन बैग सार्वजनिक स्थलों पर फेंक दिये जाते हैं। वजन मे हल्का होने के कारण ये उड़ कर पहले नालियों मे फिर नदियों मे पहुंच जाते हैं। शहर की जीवन दायिनी उमरार की दुर्दशा मे इसका बड़ा योगदान है। इसके अलावा पॉलिथीन की वजह से नालियां चोक हो जाती है और निस्तार का पानी नहीं निकल पाता।
जागरूकता के बिना निजात नहीं
जानकारों का मानना है कि बगैर सामाजिक जागरूकता के पालिथीन पर रोक संभव नहीं है। आज से करीब 20 वर्ष पहले तक लोग घर के थैलों मे खरीददारी करते थे, तब किसी को कोई दिक्कत नहीं होती थी। सुविधाभोगी दिनचर्या और आसान सुलभता के कारण पॉलिथीन का उपयोग शुरू हुआ। धीरे-धीरे डिस्पोजल गिलास, कटोरी, पानी की बॉटल, चम्मच आदि भी बाजारों मे आ गये। शादी-विवाह या सार्वजनिक कार्यक्रमो तो भारी तादाद मे प्लास्टिक का इस्तेमाल हो रहा है।
उत्पादन पर रोक क्यों नहीं
सरकार और विभाग गाहे-बगाहे ही सही पालिथीन से निर्मित छोटे-छोटे दुकानदारों के विरूद्ध चालानी कार्यवाही तो करते हैं, परंतु इसका उत्पादन करने वाली कंपनियों या उद्योगों पूरी तरह छूट दे दी गई है। इसी से सरकार की नियत पर संशय उत्पन्न होता है। पर्यावरण प्रेमियों का कहना है कि यदि शासन इस मुद्दे पर जरा भी गंभीर है तो उसे बिक्री की बजाय मेन्युफेक्चरर्स पर लगाम कस कर उनकी फैक्ट्रियों पर ताला लगाना चाहिये।
मूक पशुओं की होती है मौत
प्लास्टिक की थैलियों के कारण साल भर मे कई पालतू पशुओं की मौत हो जाती है। दरअसल मूक पशु प्लास्टिक बैग और फेंके गये खाने मे फर्क नही समझ पाते । जिससे वे कचरे के डिब्बों या फेंके गये भोजन के साथ प्लास्टिक को भी खा लेते है और यह उनके पाचन तंत्र में फंस जाता है। अत्याधिक मात्रा मे प्लास्टिक खा लेने पर यह उनके गले मे जा फंसती हंै और दम घुटने से उनकी मृत्यु हो जाती है।
लगातार हो रही कार्यवाही
पालिथीन के इस्तेमाल पर रोक लगाने नगर पालिका द्वारा लगातार कार्यवाही की जा रही है। दुकानदारों एवं आम नागरिकों से आग्रह है कि वे सिंगल यूज प्लास्टिक का उपयोग न करें और नगर को स्वच्छ व सुंदर बनाने मे अपना सहयोग प्रदान करें।
एसके गढ़पाले
मुख्य नगर पालिका अधिकारी
उमरिया

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