पुराने ग्लेशियर पर बसा जोशीमठ, जरा-सी चूक जानलेवा

बसाहट के नीचे मिट्टी-पत्थर के ढेर, खुदाई-ब्लास्टिंग से मलबे में बदल सकता है शहर

जोशीमठ, उत्तराखंडउत्तराखंड का जोशीमठ धंस रहा है। यहां के 561 घरों में दरारें आ गई हैं। 4,677 वर्ग किमी में फैले इलाके से करीब 600 परिवारों को निकालने का काम चल रहा है। करीब 5 हजार लोग दहशत में हैं। उन्हें डर है कि उनका घर कभी भी ढह सकता है। सबसे ज्यादा असर शहर के रविग्राम, गांधीनगर और सुनील वार्ड में है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक जोशीमठ के मकानों में दरार आने की शुरुआत 13 साल पहले हो गई थी। हालात काबू से बाहर निकले तो NTPC पॉवर प्रोजेक्ट और चार धाम ऑल वेदर रोड का काम रोकने के आदेश दे दिए गए। एक्सपर्ट्स का कहना है कि ब्लास्टिंग और शहर के नीचे सुरंग बनाने की वजह से पहाड़ धंस रहे हैं। अगर इसे तुरंत नहीं रोका गया, तो शहर मलबे में बदल सकता है।हिमालय के इको सेंसेटिव जोन में मौजूद जोशीमठ बद्रीनाथ, हेमकुंड और फूलों की घाटी तक जाने का एंट्री पॉइंट माना जाता है। ऐसे में यह जानना जरूरी है कि जोशीमठ की स्थिति क्यों संवेदनशील है। जोशीमठ की जियोलॉजिकल लोकेशन पर जारी रिपोर्ट्स में बताया गया है कि ये शहर इतना अस्थिर क्यों है। सिलसिलेवार तरीके से इन्हें समझ लेते हैं
वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी ने अपनी रिसर्च में कहा था- उत्तराखंड के ऊंचाई वाले इलाकों में पड़ने वाले ज्यादातर गांव ग्लेशियर के मटेरियल पर बसे हैं। जहां आज बसाहट है, वहां कभी ग्लेशियर थे। इन ग्लेशियरों के ऊपर लाखों टन चट्टानें और मिट्टी जम जाती है। लाखों साल बाद ग्लेशियर की बर्फ पिघलती है और मिट्टी पहाड़ बन जाती है।1976 में गढ़वाल के तत्कालीन कमिश्नर एमसी मिश्रा की अध्यक्षता में बनी कमेटी ने कहा था कि जोशीमठ का इलाका प्राचीन भूस्सखलन क्षेत्र में आता है। यह शहर पहाड़ से टूटकर आए बड़े टुकड़ों और मिट्टी के ढेर पर बसा है, जो बेहद अस्थिर है।कमेटी ने इस इलाके में ढलानों पर खुदाई या ब्लास्टिंग कर कोई बड़ा पत्थर न हटाने की सिफारिश की थी। साथ ही कहा था कि जोशीमठ के पांच किलोमीटर के दायरे में किसी तरह का कंस्ट्रक्शन मटेरियल डंप न किया जाए।जोशीमठ हिमालयी इलाके में जिस ऊंचाई पर बसा है, उसे पैरा ग्लेशियल जोन कहा जाता है। इसका मतलब है कि इन जगहों पर कभी ग्लेशियर थे, लेकिन बाद में ग्लेशियर पिघल गए और उनका मलबा बाकी रह गया। इससे बना पहाड़ मोरेन कहलाता है। वैज्ञानिक भाषा में ऐसी जगह को डिस-इक्विलिब्रियम (disequilibrium) कहा जाता है। इसके मायने हैं- ऐसी जगह जहां जमीन स्थिर नहीं है और जिसका संतुलन नहीं बन पाया है।एक वजह यह भी है कि जोशीमठ विंटर स्नो लाइन की ऊंचाई से भी ऊपर है। विंटर स्नो लाइन या शीत हिमरेखा वह सीमा होती है, जहां तक सर्दियों में बर्फ रहती है। ऐसे में भी बर्फ के ऊपर मलबा जमा होते रहने पर वहां मोरेन बन जाता है।
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