पोर्टेबल कटिंग मशीन से साफ हो रहे जंगल
जिले मे हर महीने बिक रहीं 200 से ज्यादा चैन शॉ, बेहोंशी की नींद मे वन विभाग
बांधवभूमि न्यूज
मध्यप्रदेश
उमरिया
पर्यावरण संतुलन और ग्लोबल वार्मिग के खतरों से चिंतित सरकार एक ओर वृक्षारोपण के लिये लोगों को जागरूक कर रही है। एक पेड़ मां के नाम अभियान इन्ही प्रयासों का हिस्सा है, जिसके लिये प्रधानमंत्री ने स्वयं नागरिकों का आहवान किया है। वहीं दूसरी तरफ उसी रफ्तार से हरे भरे पेड़ों को काटने का सिलसिला भी चल रहा है। इस काम के लिये अब टंगिया और आरों जैसे परंपरागत साजो-सामान की जगह एक आधुनिक यंत्र का उपयोग किया जा रहा है, जो मिनटों मे बड़े से बड़ा झाड़ धराशायी कर देता है। इसका नाम है चैन शॉ। चैन शॉ ऐसी पोर्टेबल कटिंग मशीन है, जिसमे एक छोटा सा इंजिन लगा रहता है। पेट्रोल से चलने वाली यह मशीन अपनी धारदार चैन से कई फिट मोटी लकड़ी को देखते ही देखते टुकड़े-टुकड़े कर देती है। अब तो इसका बैट्री से चलने वाला वर्जन भी बाजार मे आ गया है। जिसमे आवाज बेहद कम है। लकड़ी माफिया अवैध कारोबार मे इसका बड़े पैमाने पर उपयोग कर रहे हैं।
अचानक बढ़ गई बिक्री
हाल ही के दिनो मे चैन शॉ तथा इसमे लगने वाली आरा चैन की बिक्री मे आश्चर्यजनक रूप से इजाफा हुआ है। सूत्रों ने बताया कि जिले मे हर महीने करीब 200 नई मशीने लाई जा रही हैं। उमरिया के अलावा कई लोग कटनी से भी चैन शॉ खरीद कर ला रहे हैं। जबकि इसी दौरान करीब 1500 चैन भी बेची जा रही हैं। सवाल उठता है कि आखिर इतनी बडी तादाद मे चैन शॉ मशीनो और उसमे लगने वाली चैन का उपयोग किस काम मे किया जा रहा है।
कई राज्यों मे हो रही सप्लाई
जानकारी के मुताबिक लकड़ी माफिया इस काम मे भोले-भाले ग्रामीणो को आगे करते हैं। यह कारोबार पूरी योजना के सांथ किया जाता है। जिसमे पहले तो रात के समय पेड़ को काट कर गिराया जाता है, फिर इसे टुकड़े कर गांव मे ही सुरक्षित स्थान पर पहुंचा दिया जाता है। माल पहुंचते ही कारीगर इसकी पटिया बनाने मे जुट जाते हैं। यहीं से पिकप द्वारा इसकी सप्लाई होती है। सूत्रों का दावा है कि उमरिया अलावा रीवा, सतना, जबलपुर तथा छत्तीसगढ और उत्तरप्रदेश सहित कई राज्यों मे जिले के जंगलों की लकडी तस्करी कर ले जाई जा रही है।
ऊपर तक पहुंच रहा मोटा माल
सूत्रों का दावा है कि अधिकांश मशीनो का इस्तेमाल करकेली और नौरोजाबाद क्षेत्र मे जंगलों को काटने मे किया जा रहा है। जोकि नकेवल सागौन तथा सरई जैसी बेशकमती इमरती पेड़ों के लिये मशहूर है। हलांकि यहां के जंगलों से लकड़ी की तस्कारी कोई नई बात नहीं है, पर यह काम अब काफी तेजी से हो रहा है। इसमे वन विभाग की भी मिलीभगत है। कहा जाता है कि लकड़ी तस्कर बीट से लेकर जिला मुख्यालय मे बैठे अधिकारियों तक को हर महीने मोटा माल पहुंचाते हैं। यही वजह कि अब गांव-गांव खुलेआम पेड़ों की कटाई हो रही है। यही हाल रहा तो वह दिन दूर नहीं जब जिले मे हरियाली की बजाय चारों तरफ सिर्फ रेगिस्तान की दिखाई देगा।