नीति लागू करने पर केंद्र के जवाब से सुप्रीम कोर्ट खफा

कहा- भोजन मुहैया कराना सरकार की पहली जिम्मेदारी
नई दिल्ली । सुप्रीम कोर्ट ने देशभर के लिए सामुदायिक रसोई की नीति बनाने और उसे लागू करने को लेकर केंद्र सरकार के जवाब पर मंगलवार को सख्त नाराजगी प्रकट की। कोर्ट ने इस बारे में राज्यों के साथ बैठक करने के लिए केंद्र को तीन सप्ताह का समय दिया। शीर्ष कोर्ट ने मामले की सुनवाई करते हुए यह भी कहा कि कल्याणकारी सरकार का यह पहला दायित्व है कि वह भूख से मर रहे लोगों को भोजना मुहैया कराए। प्रधान न्यायाधीश एन वी रमण व जस्टिस एएस बोपन्ना व जस्टिस हिमा कोहली की पीठ ने मंगलवार को केंद्र, राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को भूख और कुपोषण मिटाने के लिए सामुदायिक रसोई की एक योजना तैयार करने का निर्देश देने के लिए दायर एक जनहित याचिका की सुनवाई कर रही थी।

इसलिए नाराज हुई शीर्ष अदालत
देशभर में सामुदायिक रसोई योजना लागू करने को लेकर केंद्र के जवाबी हलफनामे से पीठ नाराज हो गई, क्योंकि यह हलफनामा यह एक अवर सचिव के स्तर के एक अधिकारी ने दायर किया था। इसमें प्रस्तावित योजना और उसे लागू करने को लेकर कोई ब्योरा नहीं था। पीठ ने कड़ी नाराजी प्रकट करते हुए कहा कि यह हलफनामा इस बात का कोई संकेत नहीं देता कि केंद्र सरकार एक नीति बनाने पर विचार कर रही है। केंद्र सिर्फ सूचनाएं दे रहा है। इसमें यह नहीं बताया गया है कि केंद्र ने कितना फंड जुटाया है और क्या कदम उठाए जा रहे हैं। हम केंद्र से योजना का एक आर्दश मॉडल चाहते हैं। केंद्र राज्यों से पूछे, पुलिस की तरह मात्र सूचनाएं न जुटाए। पीठ ने केंद्र सरकार के वकील को यह भी कहा कि आप वो सूचनाएं नहीं मांग सकते, जो पहले से मौजूद हैं। क्या आप अपने हलफनामे के अंत में यह कहते सकते हैं कि आप अब योजना पर विचार करेंगे। 17 पेज के हलफनामे में ऐसी कोई बात नहीं है।

केंद्र सरकार को अंतिम चेतावनी
शीर्ष कोर्ट ने केंद्रीय उपभोक्ता, खाद्य व लोक प्रशासन मामलों के मंत्रालय के एक अंडर सेक्रेटरी द्वारा हलफनामा दायर करने पर नाराजगी प्रकट की। कोर्ट ने कहा कि केंद्र को यह अंतिम चेतावनी है। अंडर सेक्रेटरी ने जवाब दायर किया है, सचिव स्तर का अधिकारी जवाब दाखिल क्यों नहीं कर सकता? आपको संस्थानों का सम्मान करना होगा। हम कहते क्या हैं और आप जवाब क्या देते हैं? यह पहले भी कई बार चेताया जा चुका है।

अटॉर्नी जनरल वेणुगोपाल ने दिलाया भरोसा
सुनवाई के आरंभ में अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल माधवी दीवान द्वारा इस मामले पर बहस की जा रही थी। बाद में अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने मोर्चा संभाला। उन्होंने पीठ को आश्वासन दिया कि केंद्र सरकार द्वारा एक बैठक बुलाई जाएगी और इस मुद्दे पर निर्णय लिया जाएगा। उन्होंने इसके लिए पीठ से चार सप्ताह का समय मांगा। वेणुगोपाल ने यह भी कहा कि राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के ढांचे के भीतर कुछ काम किया जा सकता है।

सीजेआई ने रमण ने यह कहा
वेणुगोपाल के जवाब के बाद चीफ जस्टिस रमण ने कहा कि प्रश्न सरल है, पिछली बार हमने स्पष्ट किया था कि जब तक राज्यों को शामिल नहीं किया जाता है तब तक केंद्र कुछ नहीं कर सकता है। इसलिए हमने केंद्र को बैठक बुलाने और नीति तैयार करने का निर्देश दिया था। अब मुद्दा यह है कि एक व्यापक योजना बनाएं, जिन क्षेत्रों में तत्काल इसे लागू करने की आवश्यकता है उनकी पहचान करें। अगर आप भूख से निपटना चाहते हैं तो कोई संविधान या कानून नहीं कहेगा। हर कल्याणकारी राज्य की पहली जिम्मेदारी भूख से मरने वाले लोगों को भोजन मुहैया कराना है।

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