निर्वाचन आयुक्त की नियुक्ति पर सुप्रीमकोर्ट ने केन्द्र से मांगा जवाब

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को केंद्र को निवार्चन आयुक्त अरुण गोयल की नियुक्ति से जुड़ी फाइल उसके (शीर्ष न्यायालय के) समक्ष पेश करने को कह दिया है। गोयल को 19 नवंबर को निर्वाचन आयुक्त नियुक्त किया गया था। न्यायमूर्ति के.एम. जोसेफ की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने कहा कि वह जानना चाहती है कि निर्वाचन आयुक्त के रूप में गोयल की नियुक्ति में कहीं कुछ अनुचित नहीं किया गया क्योंकि उन्होंने हाल में सेवा से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ली थी। पीठ ने सुनवाई जारी रहने के दौरान गोयल की नियुक्ति से जुड़ी फाइल देखने की न्यायालय की इच्छा पर अटार्नी जनरल आर वेंकटरमणि की आपत्तियों को खारिज किया। वेंकटरमणि ने कहा कि न्यायालय चुनाव आयुक्तों और मुख्य निर्वाचन आयुक्त (सीईसी) की नियुक्ति के बड़े मुद्दे की सुनवाई कर रहा है और यह वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण द्वारा उठाए गए व्यक्तिगत मामले पर गौर नहीं कर सकता। उन्होंने कहा मैं इस पर गंभीर आपत्ति जताता हूं और संविधान पीठ की सुनवाई के बीच न्यायालय के फाइल देखने पर मुझे आपत्ति है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मुख्य निर्वाचन आयुक्त की नियुक्ति के लिए परामर्श प्रक्रिया में प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) को शामिल करने से निर्वाचन आयोग की स्वतंत्रता सुनिश्चित होगी। उच्चतम न्यायालय का कहना था कि केंद्र में कोई भी सत्तारूढ़ दल ‘‘सत्ता में बने रहना पसंद करता है’’ और मौजूदा व्यवस्था के तहत पद पर एक ‘‘यस मैन’’ (हां में हां मिलाने वाला व्यक्ति) नियुक्त कर सकता है। शीर्ष अदालत कुछ याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है जिसमें निर्वाचन आयुक्तों (ईसी) और मुख्य निर्वाचन आयुक्त (सीईसी) की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम जैसी प्रणाली का अनुरोध किया गया है। केंद्र ने सुनवाई के दौरान दलील दी कि 1991 के अधिनियम ने सुनिश्चित किया है कि निर्वाचन आयोग अपने सदस्यों के वेतन और कार्यकाल के मामले में स्वतंत्र रहता है ऐसा कोई बिंदु नहीं है जो अदालत के हस्तक्षेप को वांछित करता हो। उसने कहा कि मुख्य निर्वाचन आयुक्त की नियुक्ति के लिए अपनाई गई व्यवस्था निर्वाचन आयुक्तों के बीच वरिष्ठता है। न्यायमूर्ति जोसेफ की अध्यक्षता वाली पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने कहा कि संस्थान की स्वतंत्रता उस सीमा पर सुनिश्चित की जानी चाहिए जिसके लिए प्रवेश स्तर पर नियुक्ति की जांच पड़ताल की जानी है। पीठ में न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस न्यायमूर्ति ऋषिकेश रॉय और न्यायमूर्ति सी. टी. रविकुमार शामिल हैं।पीठ ने कहा हम सीईसी की नियुक्ति के लिए परामर्श प्रक्रिया पर ध्यान केंद्रित करना चाहते हैं और इस प्रक्रिया में भारत के प्रधान न्यायाधीश को शामिल करने से आयोग की स्वतंत्रता सुनिश्चित होगी। केंद्र की ओर से पेश अटॉर्नी जनरल ने कहा कि दिनेश गोस्वामी समिति की रिपोर्ट के बाद संसद द्वारा कानून पारित किया गया था। कानून यह सुनिश्चित करता है कि आयोग अपने सदस्यों के वेतन और कार्यकाल के मामले में स्वतंत्र रहता है जो किसी संस्थान की स्वतंत्रता के लिए आंतरिक विशेषताएं हैं। पीठ ने वेंकटरमणि से कहा कि 1991 के जिस कानून का वह जिक्र कर रहे हैं वह केवल सेवा शर्त की शर्तों से संबंधित है जो इसके नाम से ही स्पष्ट है। पीठ ने कहा ‘‘मान लीजिए सरकार हां में हां मिलाने वाले एक ऐसे व्यक्ति की नियुक्ति करती है जो उसकी विचारधारा का है। कानून उसे कार्यकाल और वेतन में सभी छूट प्रदान करता है लेकिन संस्था में कोई तथाकथित स्वतंत्रता नहीं है। यह एक निर्वाचन आयोग है जहां शुरुआती बिंदु पर स्वतंत्रता सुनिश्चित की जानी चाहिए।

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