सुप्रीम कोर्ट ने आईबीसी के नियमों को बरकरार रखा
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने ऋणदाताओं को व्यक्तिगत गारंटीकर्ताओं के खिलाफ दिवाला कार्यवाही शुरू करने का मार्ग प्रशस्त कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने 21 मई को प्रमोटर गारंटरों के खिलाफ दिवालिया कार्यवाही शुरू करने वाले ऋणदाताओं के खिलाफ विभिन्न प्रमोटर गारंटरों की याचिका खारिज कर दी। इन्सॉल्वेंसी और बैंकरप्सी कोड (आईबीसी) के नियमों को बरकरार रखा है, जो ऋणदाताओं को व्यक्तिगत गारंटीकर्ताओं के खिलाफ दिवाला कार्यवाही शुरू करने की अनुमति देते हैं। जस्टिस एल नागेश्वर राव और जस्टिस रवींद्र भट की बेंच ने इनसॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड (आईबीसी) के तहत जारी 15 नवंबर, 2019 की अधिसूचना को बरकरार रखा। अधिसूचना ने उधारदाताओं को कॉर्पोरेट दिवाला समाधान प्रक्रिया (सीआईआरपी) का सामना करने वाली कंपनियों के प्रमोटर गारंटरों के खिलाफ व्यक्तिगत दिवाला कार्यवाही शुरू करने की अनुमति दी थी। कोर्ट ने अधिसूचना को चुनौती देने वाली 75 याचिकाओं पर फैसला किया। उल्लेखनीय है कि सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल कर कानून में किए गए बदलाव को चुनौती दी गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कॉरपोरेट कर्जदार से संबंधित समाधान योजना की मंजूरी इस तरह से काम नहीं करती कि निजी गारंटर, कॉरपोरेट कर्जदार की देनदारियों का निर्वहन हो सके। शीर्ष अदालत ने कहा कि अधिसूचना कानूनी और वैध है। अदालत ने कहा कि इस मामले में किए गए संशोधन और कानूनी प्रावधान वैध हैं और संवैधानिक अधिकार का हनन नहीं करता है। कोर्ट के इस फैसले से इन सभी कॉरपोरेट को झटका लगा है। कपिल वधावन, संजय सिंघल, वेणुगोपाल धूत और कई अन्य जैसे उद्योगपतियों ने 2019 की अधिसूचना को चुनौती दी थी, जिसने आईबीसी के व्यक्तिगत दिवाला प्रावधानों को प्रमोटरों के लिए भी बढ़ा दिया था।