नये जुगाड से घटेगा हाथियों का उपद्रव
बांधवगढ नेशनल पार्क के कर्मचारियों और क्षेत्रवासियों को प्रशिक्षित करने मे जुटे विशेषज्ञ
बांधवभूमि न्यूज, रामाभिलाष
मध्यप्रदेश
उमरिया
मानपुर। जिले के बांधवगढ नेशनल पार्क तथा आसपास बसे गावों के लिये लंबे समय से सिरदर्द बने जंगली हाथियों के उपद्रव को कम करने के नये तौर-तरीके लगातार खोजे जा रहे हैं। इसके लिये नकेवल पार्क के वरिष्ठ अधिकारी विभिन्न प्रांतों के अभ्यारणों मे जा कर वहां इस समस्या से निपटने अपनाये जा रहे तौर-तरीकों को समझ रहे हैं, बल्कि विशेषज्ञों के जरिये उद्यान के कर्मचारियों और क्षेत्रवासियों को प्रशिक्षित भी करवा रहे हैं। हाल ही मे महाराष्ट्र के हांथी विशेषज्ञ आनंद शिंदे ने उद्यान के अमले के सांथ-सांथ प्रभावित ग्रामो के रहवासियों को इस संबंध मे काफी समझाईश दी है। इससे पहले उप संचालक पीके वर्मा जंगली हाथियों को नियंत्रित करने के तौर तरीकों को देखने महाराष्ट्र के चंद्रपुर जिले मे स्थित तडोबा टाईगर रिजर्व गये थे।
मधुमक्खियां कसेंगी गजराज की नकेल
राष्ट्रीय उद्यान के क्षेत्र संचालक पीके वर्मा के अनुसार कडाई से हाथियों को नियंत्रित नहीं किया जा सकता। देश तथा विदेशों मे स्थित अनेक अभ्यारणो मे इन जीवों को काबू करने के लिये जो उपाय किये जा रहे हैं, उन्हे बांधवगढ मे भी आजमाया जायेगा। हाथियों को मधु मक्खियों से ज्यादा एलर्जी है, लिहाजा पार्क और गावों की सीमा पर मधुमक्खियों के कृत्तिम छत्ते लगा कर उन्हे पाला जायेगा। ग्रामीणो को कहा गया है कि वे हाथियों को भगाने के लिये गोबर के कंडों पर लाल मिर्च जलायें, यह नुस्खा काफी कारगर हो सकता है।
सीखनी होगी सांथ रह कर जीने की कला
विशेषज्ञों के मुताबिक देश के अन्य राज्यों मे जान-माल की नुकसानी को कम करने जंगली हाथियों से टकराव का रास्ता छोड कर परंपरागत जुगाड का सहारा लिया जा रहा है, जिसके सकारात्मक परिणाम सामने आये हैं। उनका मानना है कि बांधवगढ क्षेत्र से सटे ग्रामो के लोगों को हांथी, बाघ, टाईगर और अन्य जीवों के सांथ रह कर जीने की कला सीखनी होगी। अमूमन पार्क मे हाथियों को देखते ही लोग शोर करने लगते हैं। पटाखे फोडते हैं या मशाल लेकर उन्हे खदेडने का प्रयास करते हैं। वहीं कर्मचारियों की टीम पालतू हाथियों के जरिये उन्हे बस्तियों से दूर करने की कोशिश करती है। इससे बात बनने की बजाय और बिगड जाती है। वहीं हाथियों का गुस्सा बढ जाता है और वे हमेशा के लिये इंसान को अपना दुश्मन समझने लगते हैं।
बढता जा रहा उत्पात
गौरतलब है कि बीते कुछ वर्षो से जिले मे जंगली हाथियों का उत्पात बढा है। आये दिन उनके द्वारा गावों मे खडी फसलों को तबाह किया जाता है। सांथ ही घरों मे घुस कर उन्हे उजाडने के कई मामले सामने आये हैं। इतना ही नहीं उनके हमलों मे अनेक लोगों की जान भी जा चुकी है। एक बार यदि हाथियों का दल किसी इलाके मे प्रवेश करता है, तो वहां की तबाही तय है। झुण्ड के कुछ सदस्य तो बेहद आक्रामक हैं, जो इंसानो को देखते ही उनकी ओर दौड पडते हैं। हाथियों की मूवमेंट और उनके द्वारा जानमाल को पहुंचाये जा रहे नुकसान से ग्रामीणो मे रोष उत्पन्न होता है और वे इसके लिये उद्यान की व्यवस्था को दोषी ठहराते हैं। प्रबंधन ने भी अपनी ओर से कोई कसर नहीं छोडी है। उत्पाती हाथियों को खदेडने के अलावा उनका रेस्क्यू भी किया गया पर इसका कोई असर दिखाई नहीं पड रहा।
कई झुण्डों मे कर रहे विचरण
जानकार मानते हैं कि छत्तीसगढ से भटके हांथी को पकड कर बांधवगढ लाने का फैंसला प्रबंधन को भारी पड गया। उसके बाद से ही यहां हाथियों का आना शुरू हुआ। अब जिले मे इनकी तादाद बढ कर 65 के करीब हो चुकी है। सूत्रों के मुताबिक 5 से 7 हांथी अकेले चलते हैं। इसके अलावा जंगलों मे 4-5 ग्रुप भी सक्रिय हैं, प्रत्येक झुण्ड मे 10 से 12 हांथी है। विशेषज्ञों ने बांधगवगढ मे हाथियों की बढती तादाद का असर बाघ और उनके भोजन पर होने की आशंका जताते रहे हैं। हलांकि उन्हे यहां से विस्थापित करने की कोई योजना विभाग ने फिलहाल नहीं बनाई है।