निकायों मे अध्यक्षों के खिलाफ अविश्वास लाना हुआ मुश्किल

निकायों मे अध्यक्षों के खिलाफ अविश्वास लाना हुआ मुश्किल

अब तीन साल के पहले नहीं होगी प्रक्रिया, मोहन कैबिनेट के निर्णय ने काफूर की कई हसरतें

बांधवभूमि न्यूज

मध्यप्रदेश

उमरिया
मध्यप्रदेश मे मोहन कैबिनेट द्वारा कई महत्वपूर्ण फैसले लिए गए हैं। आज हुई बैठक के बाद इनकी जानकारी डिप्टी सीएम राजेंद्र शुक्ल ने मीडिया को दी। उन्होने बताया कि नगरीय निकाय मे अब 3 साल मे अविश्वास प्रस्ताव आएगा। याने नगर पालिका अध्यक्ष 3 साल के पहले नहीं हटेगा। मध्य प्रदेश नगर पालिका अधिनियम 1961 की धारा 43 में संशोधन का प्रस्ताव पास हो गया है। इसके अलावा अविश्वास प्रस्ताव के लिए अब दो तिहाई की जगह तीन चौथाई बहुमत जरूरी होगा। इससे पहले तक अविश्वास प्रस्ताव दो साल पूरे होने के बाद लाया जा सकता था। वहीं इसके लिये दो-तिहाई पार्षदों के समर्थन की जरूरत थी। सरकार का यह निर्णय उन नगर पालिका एवं नगर परिषद के अध्यक्ष-उपाध्यक्षों को राहत देने वाला है, जहां बहुमत और अल्पमत मे फांसला बेहद कम है। उल्लेखनीय है कि उमरिया जिले के कुछ निकायों मे यह स्थिति निर्मित हो चुकी है। नगर परिषद नौरोजाबाद मे तो काफी पहले से अध्यक्ष के खिलाफ मोर्चा खोल दिया गया था। इंतजार केवल दो साल पूरे होने का था। असंतुष्ट इस मुहिम मे लगते, इससे पहले ही सरकार मे मामला टांय-टांय फिस्स कर दिया।

क्यों की जा रही थी मांग
साल 2022 मे हुए निकाय चुनावो मे सत्ताधारी भाजपा ने अधिकांश नगर पालिकाओं तथा नगर परिषदों ने कब्जा कर लिया था। इसमे अध्यक्ष और उपाध्यक्षों का निर्वाचन सीधे जनता की बजाय पार्षदों द्वारा कराया गया था। कई स्थानो पर अध्यक्ष और उपाध्यक्ष जोड-तोड से बनाये गये। कमोबेश यही स्थिति कांग्रेस की भी रही। सूत्रों का कहना है कि दोनो ही पार्टियों के प्रतिनिधि पार्षदों की अनर्गल मांगों और ब्लैकमेलिंग से तंग हो चुके थे। जिसकी वजह से इस प्रक्रिया को कडी करने की मांग हो रही थी। बीते दिनो इसे लेकर कांग्रेस और भाजपा मे सहमति बनते ही इसे कानूनी रूप दे दिया गया।

अब दो साल के लिये कौन करेगा इन्वेस्ट
सरकार द्वारा अविश्वास प्रस्ताव की समय सीमा मे एक वर्ष की वृद्धि तथा प्रस्ताव के लिये जरूरी सदस्यों की तादाद दो से तीन चौथाई होने से अध्यक्ष और उपाध्यक्षों की स्थिति मजबूत होगी और अब वे विकास के कार्यो मे ज्यादा ध्यान दे सकेंगे। जोड-तोड के जरिये निकायों का अध्यक्ष-उपाध्यक्ष बनने की हसरत पालने वालों के लिये भी यह बडा झटका है। जानकारों का मानना है कि अविश्वास जैसी कार्यवाहियों मे बडी मशक्कत के सांथ जेबें भी ढीली करनी होती हैं। अब यह परिस्थिति आने मे एक साल और देरी होगी, वहीं कार्यकाल भी महज दो साल ही बचेगा। इतनी कम अवधि की अध्यक्षी के लिये करोडों का इन्वेस्टमेंट भी टेढी-खीर हो जायेगी।

 

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