न काली नृत्य, न दिखी हरियाली चादर

शारदेय नवरात्र की नवमी पर नहीं निकला मां बिरासिनी का जवारा जुलूस
बिरसिंहपुर पाली/तपस गुप्ता। चैत्र नवरात्र की तरह शारदेय नवरात्र पर भी नगर मे बिराजी मां बिरासिनी मंदिर से जवारा जुलूस नहीं निकाला गया। कोरोना महामारी को रोकने शासन-प्रशासन के दिशा-निर्देशों के कारण सभी कार्यक्रम प्रतीकात्मक हुए, इस दौरान श्रद्धालुओं की संख्या भी नगण्य रही। गौरतलब है कि नगर का ऐतिहासिक जवारा जुलूस अपने विशाल स्वरूप और श्रद्धा-भक्ति के लिये जाना जाता है। इस अवसर पर कलेक्टर की पूजा-अर्चना उपरांत जब मंदिर से जुलूस विसर्जन के लिये रवाना होता है, तब उसका शाही अंदाज देखने लायक होता है। रास्ते भर बैण्ड बाजों की थाप पर थिरकते भक्त, कालिका और पण्डा के नृत्य का मनोरम दृश्य हर किसी को भावविभोर कर देता है। जुलूस मे सिर पर रखे जवारा कलशों का समूह ऐसा एहसास कराता है मानो कोई हरा भरा खेत जीवायमान हो माता को विदाई देने निकल पड़ा है। अपने तरीके के अनूठे तथा देश भर मे विख्यात इस जुलूस मे न सिर्फ जिले बल्कि अन्य प्रांतों से आये हजारों श्रद्घालु शामिल होते हैं। इस दौरान सड़क पर पैर रखने तक जगह नहीं बचती।
असीमित भक्ति और विश्वास
हांथ मे तपता हुआ खप्पर लेकर भक्ति आवेश मे कालिका के साथ नृत्य करता पंडा और कील की खडाऊ पहनकर नाचते श्रद्धालु भक्ति मे शक्ति का अनूठा और अद्भुत उदाहरण पेश करते हैं। माना जाता है कि मां के प्रताप से न तो पंडे को खप्पर की तपन का अहसास होता है और न ही बाना छिदवाने वाले भक्तों को चुभन और पीड़ा का। अपने भक्तों पर ममता और कृपा बरसाने के कारण ही मां बिरासिनी का यह मंदिर देश भर मे प्रसिद्घ है। तभी तो लोग सैकड़ों मील दूर से मनौतियां लेकर मां के श्रीचरणों मे आते है। ये सारे नजारे इस बार भी देखने को नहीं मिले। कोरोना के कारण जवारा कलश बोये ही नहीं गये जबकि मंदिर परिसर मे प्रज्वल्लित आजीवन घी और तेल कलशों का विसर्जन समिति द्वारा कराया गया।

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