रोचक है बिरसिंहपुर मे विराजमान मैया के उद्भव की कथा, पूरी होती है मनोकामनायें
बांधवभूमि, तपस गुप्ता
बिरसिंहपुर पाली। पाली नगर मे विराजमान मां बिरासनी अपने अलौकिक स्वरूप और तेज के लिये जानी जाती हैं। उनके दरबार मे मन शांति और विश्वास से भर उठता है। जो व्यक्ति एक बार मातेश्वरी के दर्शन प्राप्त कर लेता है। वह हमेशा के लिये स्वयं को उनके चरणों मे समर्पित कर देता है। वे वात्सल्य का प्रतीक हैं, जिनके दरबार से कोई खाली हांथ नहीं लौटता है। मां बिरासिनी की शक्तियां जितनी चमत्कारिक हैं, उतनी ही रोचक भी है।
सिद्धिदात्री के उद्भव की कथा
कहा जाता है कि सैकड़ों वर्ष पूर्व बिरासिनी माता ने नगर के धौकल नामक एक व्यक्ति को सपने मे आकर कहा कि उनकी मूर्ति एक खेत में है, जिसे लाकर स्थापित करो। जिसके बाद उसने प्रतिमा को खोद निकाला और छोटी सी मढिया मे उन्हे स्थापित कर दिया। बाद मे नगर के राजा बीरसिंह ने एक मंदिर का निर्माण करा कर माता की स्थापना की।
एक हजार साल पुराना इतिहास
बिरासिनी मंदिर मे बिराजी आदिशक्ति मां बिरासिनी की प्रतिमा कल्चुरी कालीन है। जानकार मानते हैं कि इसका निर्माण 10वीं सदी मे कराया गया था। काले पत्थर से निर्मित भव्य मूर्ति देश भर मे महाकाली की उन गिनी चुनी प्रतिमाओं मे से एक है, जिसमे माता की जिव्हा बाहर नहीं है। मंदिर के गर्भ गृह मे माता के पास ही भगवान हरिहर विराजमान हैं जो आधे भगवान शिव और आधे भगवान विष्णु के रूप हैं। सांथ ही चारो तरफ अन्य देवी, देवताओं की प्रतिमायें स्थापित हैं। मंदिर परिसर मे राधा, कृष्ण, मरही माता, भगवान जगन्नाथ और शनिदेव के छोटे छोटे मंदिर हैं। जहां प्रवेश करते ही हृदय भक्ति भाव से ओतप्रोत हो उठता है।
1989 मे शुरू हुआ मंदिर का जीणोद्धार
कई वर्ष बाद दिनांक 23 नवम्बर 1989 को जगतगुरु शंकराचार्य शारदा पीठाधीश्वर स्वामी श्री स्वरूपानन्द सरस्वती जी के पावन करकमलों द्वारा बिरासिनी मंदिर का जीर्णोद्धार कार्य प्रारंभ हुआ। स्थानीय नागरिकों, कालरी प्रबंधन और दानदाताओं के सहयोग से लगभग सत्ताईस लाख रूपये मे माता का भव्य मंदिर बन कर तैयार हुआ। मंदिर का वास्तुचित्र वास्तुकार श्री विनायक हरिदास एनबीसीसी नई दिल्ली द्वारा निशुल्क प्रदान किया गया। बिरासिनी मंदिर का लोकार्पण 22 अप्रेल 1999 को जगतगुरु शंकराचार्य पुरी पीठाधीश्वर स्वामी श्री निश्चलानंद सरस्वती जी के शुभाशीष से संपन्न हुआ था।
स्वर्ण आभूषणों से होता है मां का भव्य श्रृंगार
चैत्र नवरात्र पर्व की अष्टमी तिथि पर बिरासिनी के दरबार मे अठमाईन चढा कर माता की पूजा अर्चना की जाती है। मान्यता है कि अष्टमी तिथि को अठमाईन चढ़ाने से माता विशेष भोग के रूप मे इसे ग्रहण करतीं है और मनोवांछित फल की प्राप्ति कराती है। अष्टमी पर ही मां का विशेष श्रृंगार भी किया जाता है। माता बिरासनी के दरबार मे विशेष आरती का आयोजन किया जाता है।
13686 कलशों की स्थापना
नवरात्र की चतुर्थी तक बिरासिनी दरबार मे कुल 13 हजार 686 कलश स्थापित किये जा चुके हैं। इनमे आजीवन ज्योति कलश घी 365, तेल 159, साधारण ज्योति कलश घी 1270, तेल 1128 तथा 10164 जवारा कलश शामिल हैं। मंदिर प्रबंध समिति द्वारा दी गई जानकारी के मुताबिक 30 मार्च को 2023 को विशाल जवारा जलूस निकला जाएगा।
धौकल के स्वप्न आईं थीं मां बिरासिन
Advertisements
Advertisements