स्थापना दिवस पर विशेष: 23 साल का हुआ उमरिया
देने की बजाय छीनी जा रही सुविधायें
उपेक्षा ने थामा जिले के विकास का पहिया, रोजगार से वंचित युवा
उमरिया।आज के दिन उमरिया को उसका खोया हुआ सम्मान वापस मिला था, वह था वर्र्षाे पहले छीना हुआ जिले का दर्जा। दरअसल तत्कालीन अर्जुन सिंह सरकार द्वारा गठित जिला पुनर्गठन आयोग की अनुशंसा पर 1990 मे मुख्यमंत्री सुंदरलाल पटवा ने प्रदेश मे 16 नये जिले बनाने की घोषणा तो की, परंतु उसका क्रियान्वयन नहीं हो सका। वर्ष 1998 मे सीएम दिग्विजय सिंह ने 16 मे से 10 जिलों के गठन को हरी झण्डी दे दी,पर इस सूची मे उमरिया का नाम शामिल नहीं था। इससे लोगों को बड़ा झटका लगा। तत्कालीन विधायक अजय सिंह ने तो इस फैंसले से रूष्ट हो कर मुख्यमंत्री को इस्तीफा ही सौंप दिया। फिर शुरू हुआ जिला बनाओ आंदोलन। इस मांग को लेकर जनप्रतिनिधियों और नागरिकों ने जिस तरह का संघर्ष किया, वह आज भी इतिहास के पन्नो पर स्वर्णिम अक्षरों मे दर्ज है।
मात्र 6 दिन मे हुआ गठन
उग्र होते जिला बनाओ आंदोलन को देखते हुए राज्य सरकार ने पूर्व मुख्य सचिव श्री एमएस सिंहदेव की अगुवाई मे एक सदस्यीय आयोग का गठन किया जिन्होने उमरिया आ कर नागरिकों से उनकी राय जानी। उनके प्रतिवेदन पर सरकार ने 1 जुलाई को जिला गठन को सैद्धांतिक मंजूरी दी और 6 जुलाई 1998 को उमरिया जिला अस्तित्व मे आ गया। ।
शुरू हुआ विकास का सफर
पहले दिन से ही नवगठित जिले के विकास का सफर शुरू हो गया। उद्घाटन के सांथ ही सारे कार्यालयों का शुभारंभ हुआ। तत्कालीन विधायक अजय सिंह के प्रयासों से रिकार्ड समय मे संयुक्त कलेक्ट्रेट, जिला पंचायत भवन बन कर तैयार हो गये। यह जिला मुख्यालय को विस्तार देने की सोच का नतीजा था कि शहर के एक ओर कलेक्ट्रेट, तो दूसरी ओर जिला पंचायत तो तीसरी ओर पुलिस लाईन की स्थापना कराई गई।
समस्याओं से जूझ रही जनता
दुर्भाग्य से विकास का यह सिलसिला ज्यादा लंबा नहीं चल सका। नुमाईन्दों की उदासीनता के कारण जिला आज भी शिक्षा, स्वास्थ्य, आवागमन के साधनो आदि अनेक मूलभूल सुविधाओं से वंचित है। जिले मे डाक्टरों का व्यापक आभाव है। वहीं लगभग सभी कार्यालयों मे स्टाफ की भारी कमी है, जिससे आम जनता के कार्य बुरी तरह प्रभावित हो रहे हैं। बिजली की भीषण समस्या के कारण सिचाई और कारोबार पर प्रतिकूल असर पड़ रहा है।
नहीं लग सका एक भी उद्योग
इन 23 वर्षो के दौरान जिले मे एक भी उद्योग नहीं लग सका है। रोजगार का एक मात्र साधन कही जाने वाली कालरियां लगातार बंद होती जा रही हैं। नई खदानो का संचालन करने वाली प्रायवेट कम्पनियां ना तो स्थानीय लोगों को पर्याप्त नौकरियां दे रही हैं, नां ही उचित वेतन। अन्य शासकीय विभागों मे भी वर्षो से भर्तियां बंद हैं। इस ओर कोई भी ठोस पहल नहीं होने से बेरोजगारी बढ़ रही है, जिससे व्यापारियों और युवाओं मे भारी हताशा है।
स्टापेज भी नहीं बचा पा रहे कर्णधार
सब कुछ बना-बनाया मिलने के बाद समुचित विकास तो दूर जिले के कर्णधार जो है, उसे भी नहीं बचा पा रहे। बांधवगढ़ राष्ट्रीय उद्यान जैसा विश्व प्रसिद्ध पर्यटन का केन्द्र होने के बावजूद उमरिया मे दर्जनो ट्रेनो का स्टापेज नहीं है। इतना ही नहीं कोरोना के बाद शुरू हो रही ट्रेनो का ठहराव जिले की स्टेशनो से भी छीना जा रहा है लेकिन नुमाईनदों मे मुंह से आवाज तक नहीं निकल रही।
देने की बजाय छीनी जा रही सुविधायें
Advertisements
Advertisements