दिल का मरीज बना रहा डीजे का शोर
साउण्ड संचालकों की मनामानी से परेशान नागरिक, हवा मे उड रहा सुप्रीम कोर्ट का आदेश
बांधवभूमि, उमरिया
बैण्ड बाजों और नाच गाने के बगैर ना तो बारात की शोभा बनती है और नां ही दूल्हे के रूतबे का पता चलता है। भारत मे वैवाहिक समारोह के दौरान तरह-तरह के वाद्य यंत्रों के उपयोग की पुरातन परंपरा रही है, परंतु जबसे इसमे आधुनिकता ने प्रवेश किया है, तभी से कई तरह की समस्यायें पैदा हो गई हैं। विशेष कर डीजे जैसे ध्वनि विस्तराक यंत्रों ने कार्यक्रमो को वीभत्स बना कर रख दिया है। इससे होने वाले ध्वनि और पर्यावरर्णीय, प्रदूषण तथा मनुष्य के स्वास्थ्य पर पडने वाले दुष्प्रभाव को देखते हुए कुछ वर्ष पहले देश की सर्वोच्च अदालत को हस्ताक्षेप करना पडा। जिसके बाद ध्वनि प्रदूषण विनिमयन और नियंत्रण कानून 2000 बनाया गया। इसके तहत रात्रि 10 से प्रात: 6 बजे तक लाउड स्पीकर और डीजे बजाना प्रतिबंधित है। राज्य शासन चाहे तो इसे बढा कर 12 बजे तक की सशर्त अनुमति दे सकता है। नियम मे ध्वनि की सीमा (डेसिबल) निर्धारित है, परंतु जिले मे कहीं पर भी ना तो माननीय न्यायालय के निर्देशों का पालन हो रहा है और नां ही प्रशासन से किसी तरह की अनुमति ही ली जा रही है।
महसूस होती घबराहट और बेचैनी
जिले मे बारात के सांथ बजाये जा रहे डीजे का शोर इतना तेज होता है कि अगल-बगल के मकान कांप जाते हैं। इतना ही नहीं बारात के सांथ चलने वाले अथवा समीप से गुजरने वाले व्यक्तियों को कई बार घबराहट और बेचैनी महसूस होती है। कई स्थानो पर इससे लोगों की जान भी जा चुकी है। केवल दिल दहलाने वाली आवाज ही नहीं डीजे संचालक अब साउण्ड बाक्सों के बीच तेज रोशनी वाली लाईट का भी उपयोग कर रहे हैं, जिसके सामने पडते ही आखें चौंधिया जाती हैं। आजकल बारात केे सांथ बच्चों, महिलाओं और बुजुर्गो के चलने का भी फैशन है, लिहाजा इसका नुकसान स्वयं बारातियों तथा वर-वधु पक्ष के परिजनो को भी हो रहा है। ऐसे मे डीजे संचालकों पर कडी कार्यवाही के सांथ इस सिस्टम से होने वाले शारीरिक तथा पर्यावरण को होने वाले नुकसान के प्रति नागरिकों को जागरूक व सचेत किये जाने की आवश्यकता है।
हो सकता है जेल और जुर्माना
विधि विशेषज्ञों के अनुसार संविधान के अनुच्छेद 21 मे हर व्यक्ति को ध्वनि प्रदूषण मुक्त वातावरण मे रहने का अधिकार है। किसी को धार्मिक या सांस्कृतिक आयोजन के नाम पर भी यह छूट नहीं है कि वह इस तरह की मनमानी करे। यहां तक कि कोई किसी को जबरन भजन, गाना या धार्मिक उपदेश सुनने के लिए बाध्य नहीं कर सकता। कहावत है कि आपके अधिकारों की सीमा वहीं तक है, जहां से दूसरों के अधिकारों का हनन न हो। देर रात तक लाउडस्पीकर या डीजे बजाने से यदि किसी की नींद खराब होती है या मानसिक स्वास्थ्य पर असर पड़ता है, तो यह उसके मौलिक अधिकारों का हनन है। शादी या किसी भी समारोह मे बज रहे लाउड स्पीकर की आवाज पब्लिक न्यूसेंस की श्रेणी में आते हैं। इसके लिए आईपीसी की धारा 290 और 291 के तहत जेल और जुर्माने का भी प्रावधान है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन कर चुका आगाह
वहीं चिकित्सकों का मानना है कि ध्वनि प्रदूषण के कई साईड इफेक्ट हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन भी इसके लिये आगाह कर चुका है। शोर से सबसे अधिक नुकसान बच्चों को है। इससे किशोर और युवाओं मे हीयरिंग लॉस का भी खतरा है। ध्वनि प्रदूषण से नींद प्रभावित हो सकती है। दिल की बीमारियों का खतरा बढ़ता है। साइकोफिजियोलॉजिकल असर पड़ता है। यह माइग्रेन ट्रिगर, डिप्रेशन और डिमेंशिया का कारण बन सकता है। नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन की एक स्टडी के मुताबिक तेज शोर मे कार्डियोवैस्कुलर डिजीज और हार्ट अटैक का खतरा बढ़ जाता है। वहीं ब्लड प्रेशर और ब्लड शुगर तेजी से शूट अप करते हैं। अगर किसी को कोई हार्ट डिजीज है तो लाउड स्पीकर या डीजे वाले स्थान पर जाने से बचना चाहिए।
नियमो का पालन अनिवार्य
ध्वनि विस्तारक यंत्रों के उपयोग को लेकर माननीय न्यायालय के स्पष्ट दिशा-निर्देश हैं। इसके अलावा जिले मे चुनाव आचार संहिता भी प्रभावी है। इसे देखते हुए समस्त नागरिकों के लिये नियम का पालन अनिवार्य है। इसका उल्लंघन करने वालों पर कानूनी कार्यवाही की जायेगी।
प्रतिपाल सिंह महोबिया
अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक
उमरिया