दैनिक बांधवभूमि की वर्षगांठ पर विशेष संपादकीय

संघर्ष के पंद्रह बरस

दैनिक बांधवभूमि की वर्षगांठ पर विशेष संपादकीय

राजेश शर्मा, संपादक

जीवन घटनाओं का संग्रह है। जन्म से लेकर मृत्यु तक हर पल व्यक्ति किसी नये हालात से मुखातिब होता रहता है। यहीं से वह चुनौतियों को समझने और उनसे मुकाबला करने की कला सीखता है। जिस प्रकार से बिना आग मे तपे सोना कुंदन नहीं बनता, जंग लगे लोहे को आकार नहीं मिलता। ठीक उसी तरह संकट के गहरे समुद्र मे डूबते-उतराते, जूझते और लडते हुए खुद को बचा कर साहिल तक पहुंचने का अनुभव अपने आप मे अप्रतिम है। वास्तव मे मनुष्य का संघर्षकाल ही उसके व्यक्तित्व को संवारने की नर्सरी है।

दैनिक बांधवभूमि आज 15 साल पूर्ण कर अपने 16वें वर्ष मे प्रवेश कर रहा है। भारत-पाक विभाजन की विभीषिका मे अपना सब कुछ गवां कर मेहनत और जीवटता के बल पर फिर एक नया मुकाम हांसिल करने वाले अनथक योद्धा और हमारे पितृ पुरूष पं.अर्जुनदास शर्मा ने 01 मई 2009 को इस पत्र की स्थापना की और अगले ही साल 08 अगस्त 2010 को अनंत यात्रा पर निकल पडे। वे भले ही इस दुनिया मे नहीं हैं, पर उनके प्रासंगिक विचार आज भी हमारा मार्ग प्रशस्त करते हैं। दैनिक बांधवभूमि के लोकार्पण के अवसर पर उन्होने कहा था कि सत्य के मार्ग पर चलना और उस पर अडिग रहना किसी भी युग मे आसान नहीं रहा। इसके लिये कई तरह की बाधाओं का सामना करना पडता है, परंतु जो अडिग रह कर अडने की कला जानते हैं, उनके लिये कुछ भी दुष्कर नहीं।

हुआ भी ऐसा ही, तमाम तरह की विपरीत परिस्थितियों और कठिनाईयों ने कुछ लम्हों के लिये ठिठकने के लिये मजबूर तो किया पर उद्देश्यों की ठोस बुनियाद ने संकल्प की इमारत को कभी दरकने नहीं दिया। शासन और प्रशासन के समक्ष सत्यवाचन तथा असहमति के सम्मान की धूमिल पडती परिपाटी के नये दौर मे न्याय के लिये आवाज उठाना और यथार्थ को हूबहू उजागर करना निश्चित तौर पर जोखिम भरा काम है, पर निस्वार्थ और पवित्र भावना के सांथ अपने लक्ष्य की अग्रसर रहने वालों का आत्मविश्वास नकारात्मक शक्तियों का मनोबल हर लेता है।

इन्ही सिद्धांतों को अपनाते हुए पत्र ने हर क्षेत्र मे अपनी उपयोगिता साबित की है। सुनी-सुनाई बातों को परोसने की बजाय समाज, देश और आसपास उपगत घटनाओं का अनुसंधान कर उनका प्रकाशन, सरकार और प्रशासन के सकारात्मक कार्यो, सामाजिक, राजनैतिक, धार्मिक खबरों, जन समस्याओं तथा पक्ष-विपक्ष को बिना किसी पूर्वागृह के सम्मानजनक स्थान, खेल, कला, विज्ञान, साहित्य के क्षेत्र मे राष्ट्रीय और अंतराष्ट्रीय पटल पर होने वाली प्रत्येक गतिविधि को पाठकों तक पहुंचाने के प्रयास ने दैनिक बांधवभूमि को ख्याति और विश्वसनीयता प्रदान की है।

संघर्ष के इन 15 वर्षो मे सीमित संसाधनो के बावजूद संस्थान ने कई नवाचार किये हैं। सुदूर अंचल के नागरिकों की आवाज सीधे प्रशासन के मुखिया तक पहुंचे, इसके लिये हर सप्ताह प्रकाशित होने वाले कालम कलेक्टर जी सुनिये ने लोकप्रियता के कई कीर्तिमान स्थापित किये हैं। यह बदलाव का दौर है। हर क्षेत्र की तरह पत्रकारिता मे भी परंपरागत तौर तरीकों का स्थान आधुनिक तकनीक ने ले लिया है, तो संस्थान ने भी समय के सांथ खुद को अपडेट किया है। अब दैनिक बांधवभूमि का वेब चैनल कम्प्यूटर और मोबाईल के जरिये चौबीस घंटे उपलब्ध है।

स्थापना की पंद्रहवीं वर्षगांठ और 16वें पायदन की ओर कदम रखने के समय दैनिक बांधवभूमि के पास कुछ हो या न हो, पर पाठकों का असीम स्नेह और भरोसे की कोई कमी नहीं हैं। यह भरोसा कायम रहेगा, उम्मीदें पूरी होंगी और आपकी कसौटी पर आगे भी खरे उतरेंगे। इसी दृढ संकल्प के सांथ अपने सभी सम्माननीय सुधी पाठकों, सहयोगियों और ईष्ट मित्रों के प्रति कोटिश: आभार।
धन्यवाद, जय हिंद

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