तिरूपति की घटना से सीख लें जिले के मंदिर प्रबंधन

तिरूपति की घटना से सीख लें जिले के मंदिर प्रबंधन

धार्मिक भावनाओं को आहत कर सकता पूजा वाला घी, पैसे कमाने की लालच मे कम्पनियां कर रहीं घालमेल

बांधवभूमि न्यूज 

मध्यप्रदेश

उमरिया
आंधप्रदेश मे स्थित देश और दुनिया भर के श्रद्धालुओं की आस्था के प्रमुख केन्द्र तिरूपति मंदिर मे प्रसाद के लिये बनाये जाने वाले लड्डुओं मे आपत्तिजनक घी के उपयोग की खबर इन दिनो सुर्खियों मे है। इस संबंध मे तरह-तरह की चर्चायें चल रही हैं। कई लोग इसे धार्मिक भावनाओं के सांथ खिलवाड बता रहे हैं, तो कुछ को इसमे साजिश नजर आ रही है। वहीं इस घटना ने बाजार मे बेंची जा रही दूषित सामग्रियों की ओर एक बार फिर अपना ध्यान आक्रष्ट कराया है। बताया जाता है कि कई कम्पनियां इन दिनो ऐसा ही घी बनाने का कारोबार कर रही हैं, जो जिले मे भी उपलब्ध है। उनके द्वारा अपने प्रोडक्ट के पैक पर बाकायदा खाने वाला घी और पूजा वाला घी लिखा जाता है। यदि इसे बारीकी से पढें तो पायेंगे कि दोनो प्रकार के घी की खूबियों का भी बखान पैकेट पर किया गया है। अंत मे पूजा वाले घी के डिब्बे पर इसका उपयोग सिर्फ हवन और दिये आदि जलाने मे ही करने तथा खाने और शरीर पर न करने की बात का उल्लेख है।

हवन और ज्योतिकलश मे भी उपयोग हो शुद्ध सामग्री
सवाल उठता है कि ईश्वर को प्रसन्न करने के लिये जिस घी से हवन अथवा कलश जलाये जाते हैं, उसका इस्तेमाल भोजन मे क्यों नहीं किया जा सकता। क्या वह शुद्ध घी दूध अथवा वनस्पतियों से तैयार नहीं किया जा रहा। यदि किया जाता है, तो उसे खाने और लगाने मे क्या दिक्कत है। उल्लेखनीय है कि जिले के कई मंदिरों मे नवरात्र के समय ज्योति कलश प्रज्वलित किये जाते हैं। जिसके लिये बडे पैमाने पर घी की खरीददारी की जाती हैं, ऐसे मे मंदिर प्रबंधन को प्रोडक्ट को लेकर विशेष सतर्कता बरतने की जरूरत है, ताकि तिरूपति की तरह श्रद्धालुओं की धार्मिक भावनायें आहत न हों। उन्हे यह भी सुनिश्चित करना चाहिये कि सिर्फ खाने मे ही नहीं हवन और दीप प्रज्वलन मे भी विशुद्ध घी अथवा प्राकृकि वनस्पति से बने तेलों का ही इस्तेमाल हो।

मां बिरासिनी मंदिर समिति ने मंगाई पूजा योग्य घी की निविदा
जिले के कई मंदिरों मे चैत्र और शारदेय नवरात्र पर्व धूमधाम से मनाये जाते हैं। इस दौरान वहां बडे ही भक्तिभाव से ज्योति कलशों की स्थापना होती है। कई श्रद्धालु अपने नाम से कलश प्रज्वलित कराते हैं, इसके लिये वे निर्धारित राशि का भुगतान भी करते हैं। बताया जाता है कि संबंधित मंदिर समितियों द्वारा कार्यक्रम हेतु घी तथा अन्य सामग्री की खरीद की जाती है। हाल ही मे मां बिरासिनी देवी मंदिर संचालन समिति पाली द्वारा एक निविदा आमंत्रित की गई है। जिसमे खाने और पूजन योग्य घी की दरें चाही गई है। कई समाज सेवियों और धार्मिक संस्थाओं से जुडे लोगों का मत है कि मंदिर प्रबंधन ऐसा सामान खरीदें जो इतना स्वच्छ और प्राकृतिक हो कि हवन, पूजन के सांथ भोजन मे इस्तेमाल किया जा सके। इतना ही नहीं इनका उपयोग शुद्धता परखने के बाद ही किया जाय।

भोजन मे होता है बचे हुए घी का उपयोग
बताया जाता है कि नवरात्र के समय श्रद्धालुओं द्वारा राशन, सब्जी के अलावा घी भी दान मे दिया जाता है। आयोजन के बाद बचा हुआ घी भण्डारों के भोजन मे लगा दिया जाता है। ऐसे मे दूषित घी या तेल नसिर्फ श्रद्धालुओं की भावनायें आहत कर सकता है बल्कि इससे फुड प्वाइजनिंग जैसी गंभीर घटना होने से इंकार नहीं किया जा सकता।

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