राष्ट्रीय मातृशक्ति पुरूस्कार के लिए हुआ चयन, आज दिल्ली मे होगा आयोजन
बांधवभूमि, उमरिया
जिले के कटनी राष्ट्रीय राजमार्ग से सटे ग्राम लोढ़ा मे निवासरत वयोवृद्ध आदिवासी महिला अंतरराष्ट्रीय चित्रकार जोधईया बाई को आज 8 मार्च 2022 को राष्ट्रीय मातृशक्ति पुरूस्कार से नवाजा जाएगा। यह कार्यक्रम आज राजधानी दिल्ली मे होगा। इस खबर से न सिर्फ जिले के चित्रकारों बल्कि आम नागरिकों मे भी हर्ष की लहर है। उनका कहना है कि इससे न सिर्फ जोधईया बल्कि समूचा जिला गौरवान्वित हुआ है। उल्लेखनीय है कि बैगा आदिवासी समाज से ताल्लुक रखने वाली 82 वर्षीय बुजुर्ग जोधईया बाई का चयन बीते दिनों केंद्र सरकार के नारी शक्ति सम्मान पुरूष्कार हेतु हुआ था। इस पुरूस्कार मे 1 लाख रूपये नकद एवं प्रशस्ति पत्र प्रदान किया जाता है।
60 साल मे सीखी पेंटिंग
बैगा कला को जन्म देने वाली 82 वर्षीय जोधईया बाई ने 60 वर्ष की उम्र मे पेंटिंग करना सीखा था और महज 10 सालों मे ही दुनिया भर मे अपनी कला का लोहा मनवा लिया। जोधईया बाई के चित्रों की प्रादर्शनी, लंदन, अमेरिका, फ्रांस, इटली सहित कई देशों मे लग चुकी है बीते वर्ष जोधईया बाई को पद्मश्री पुरूष्कार के लिए नामांकित भी किया गया था। जोधईया बाई बैगा के जीवन का सफर बड़ा संघर्ष पूर्ण रहा है।
बैगिन कला को दी नई पहचान
जोधइया बाई ने विलुप्त होती बैगिन चित्रकला को एक बार फिर जीवित कर दिया है। जिस बड़ादेव और बघासुर के चित्र कभी बैगाओं के घरों की दीवार पर सजते थे वे अब दिखाई नहीं देते और न ही उन्हें नई पीढ़ी के बैगा जानते हैं। उन्हीं चित्रों को जब जोधइया ने कैनवास और ड्राइंग शीट पर आधुनिक रंगों से उकेरना शुरू किया तो बैगा जनजाति की यह कला एक बार फिर जीवित हो उठी।
संघर्षों और दुखों से भरा जीवन
जिले के इस महान कलाकार का जीवन भी दुख और संघर्षों से भरा हुआ है। जब इस बारे मे बात की जाती है तो जोधईया की आंखें छलकती तो नहीं हैं, लेकिन भर जरूर आती हैं। वे बताती हैं कि केवल 30 साल की उम्र में पति का साया सिर से उठ गया और बच्चों को पालने के लिए मजदूरी ही एक रास्ता बचा। पति की मौत के बाद जोधइया ने माटी-गारे का काम किया। जंगल मे हिंसक जानवरों के बीच चारा काटा। बड़े लोगों के खेतों मे मजदूरी की। जोधइया बैगा ने कभी स्कूल का मुंह भी नहीं देखा था इसलिए उनके लिए इस तरह की मजदूरी ही अपना व अपने बच्चों के पेट पालने का साधन रही। छोटे और पिछड़े जिले से निकली इस प्रतिभा ने अपने जीवन मे बड़ा नाम कमाया। जोधईया बाई शांति निकेतन विश्वभारती विश्वविद्यालय, नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा, आदिरंग जैसे संस्थानों के कार्यक्रम मे शामिल होकर सम्मानित हुईं। वहीं मध्यप्रदेश जनजातीय संग्रहालय भोपाल मे जोधइया बाई के नाम से एक स्थाई दीवार बनी हुई है जिस पर इनके बनाए हुए चित्र हैं। प्रदेश के पूर्व सीएम शिवराज सिंह चौहान न सिर्फ जोधइया बाई को सम्मानित कर चुके हैं बल्कि वे उनसे मिलने के लिए लोढ़ा के उनके कर्मस्थल तक भी पहुंच गए थे। अमेरिका और जर्मनी के कला के कद्रदान जोधइया बाई के लोकचित्रों को ले जा चुके हैं। बैगा आदिवासी चित्रकार जोधइया बाई का नाम जिला प्रशासन द्वारा पद्म श्री आवार्ड के लिए नामांकित किया जा चुका है। उनके द्वारा बनाई गई पेंटिंग राज्य स्तर, राष्ट्रीय स्तर तथा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित होने वाले आयोजनों मे प्रदर्शित की जाती है। वर्ष 2014 आदिवासी संग्राहलय भोपाल मे आयोजित कार्यक्रम मे सहभागिता, वर्ष 2015 मे भारत भवन भोपाल मे आयोजित कार्यक्रम मे सहभागिता, वर्ष 2020 मे एलियांस फांस मे पेंटिंगग्स का प्रदर्शन, वर्ष 2017 में इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मानव संग्राहलय भोपाल द्वारा केरल मे आयोजित कार्यक्रम मे सहभागिता, वर्ष 2018 मे शांति निकेतन पश्चिम बंगाल मेे पेंटिंगग्स का प्रदर्शन, वर्ष 2020 मे आईएमए फाउण्डेशन लंदन द्वारा बिहार संग्राहलय पटना मे सहभागिता एवं सम्मान तथा प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा वर्ष 2016 मे उमरिया मे आयोजित विंन्ध्य मैकल उत्सव उमरिया मे सम्मानित किया गया। इसी तरह इनका राष्ट्रीय स्तर पर भारतीय परंपरागत आर्ट गैलरी के आयोजन मे मिलान इटली मे फांस मे पेरिस शहर मे आयोजित आर्ट गैलरी मे तथा इंग्लैण्ड, अमेरिका एवं जापान आदि देशों मे इनके द्वारा बनाई गई बैगा जन जाति की परंपरागत पेंटिंगग्स की प्रदर्शनी लग चुकी है।
जोधईया ने दिलाया जिले को गौरव
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