सुप्रीम कोर्ट ने की बड़ी टिप्पणी,कहा- यह कानून द्वारा दिया गया हक
नई दिल्ली ।सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव लड़ने के अधिकार पर एक बड़ी टिप्पणी की है। सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा कि चुनाव लड़ने का अधिकार न तो मौलिक अधिकार है और ना ही सामान्य कानून बल्कि यह कानून द्वारा दिया गया अधिकार है। इस टिप्पणी के साथ ही सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस सुधांशु धूलिया की पीठ ने विश्वनाथ प्रताप सिंह द्वारा दायर की गई विशेष अनुमति याचिका को खारिज कर दिया। इस दौरान पीठ ने कहा कि कोई व्यक्ति यह दावा नहीं कर सकता है कि उसे चुनाव लड़ने का अधिकार है। जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 के साथ चुनाव आचरण नियम, 1961 में भी नामांकन फॉर्म भरते समय उम्मीदवार के नाम को प्रस्तावित करने की व्यवस्था है। अदालत ने कहा कि कोई व्यक्ति इस शर्त को अपने मौलिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं बता सकता।
दरअसल, याचिकाकर्ता विश्वनाथ प्रताप सिंह ने अपनी याचिका में कहा कि 21 जून 2022 से 1 अगस्त 2022 तक सेवानिवृत्त होने वाले सदस्यों की सीटों को भरने के लिए 12 मई, 2022 को राज्यसभा के चुनाव के लिए अधिसूचना जारी की गई थी और नामांकन जमा करने की अंतिम तिथि 31 मई थी। याचिकाकर्ता ने कहा कि इस चुनाव के लिए उन्होंने नामांकन पत्र दाखिल किया था, हालांकि उनके नाम का प्रस्ताव करने वाले उचित प्रस्तावक के बिना नामांकन दाखिल करने की अनुमति उन्हें नहीं मिली थी।इस मामले में उन्होंने भारतीय चुनाव आयोग की अधिसूचना के खिलाफ दिल्ली हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की थी, जिसमें प्रस्तावक होने की अनिवार्यता दी गई थी। मामले में उन्होंने दिल्ली हाईकोर्ट में कहा था कि उनके भाषण और अभिव्यक्ति के मौलिक अधिकार और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के उनके अधिकार का उल्लंघन किया गया था। हालांकि हाई कोर्ट ने उनके इस तर्क को खारिज कर दिया था। इसके बाद विश्वनाथ प्रताप सिंह ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। सुप्रीम कोर्ट में उन्होंने दिल्ली उच्च न्यायालय के 10 जून के आदेश को चुनौती देते हुए एक याचिका दाखिल की। इसी याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता और न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया की पीठ इसे खारिज कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने शीर्ष अपने आदेश में कहा कि दिल्ली उच्च न्यायालय के समक्ष दाखिल रिट याचिका पूरी तरह से गलत थी और वर्तमान विशेष अनुमति याचिका भी गलत है। चुनाव लड़ने का अधिकार न तो मौलिक अधिकार है और न ही सामान्य कानून। यह एक क़ानून द्वारा प्रदत्त अधिकार है। इस दौरान पीठ ने सुप्रीम कोर्ट के पिछले फैसलों का भी हवाला देते हुए कहा कि याचिकाकर्ता को संसद द्वारा बनाए गए कानून के अनुसार राज्यसभा के लिए चुनाव लड़ने का कोई अधिकार नहीं है। साथ ही पीठ ने अदालत का समय खराब करने के लिए एक लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया है। अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता चार सप्ताह के भीतर उच्चतम न्यायालय कानूनी सहायता समिति को इसका भुगतान करे।
दरअसल, याचिकाकर्ता विश्वनाथ प्रताप सिंह ने अपनी याचिका में कहा कि 21 जून 2022 से 1 अगस्त 2022 तक सेवानिवृत्त होने वाले सदस्यों की सीटों को भरने के लिए 12 मई, 2022 को राज्यसभा के चुनाव के लिए अधिसूचना जारी की गई थी और नामांकन जमा करने की अंतिम तिथि 31 मई थी। याचिकाकर्ता ने कहा कि इस चुनाव के लिए उन्होंने नामांकन पत्र दाखिल किया था, हालांकि उनके नाम का प्रस्ताव करने वाले उचित प्रस्तावक के बिना नामांकन दाखिल करने की अनुमति उन्हें नहीं मिली थी।इस मामले में उन्होंने भारतीय चुनाव आयोग की अधिसूचना के खिलाफ दिल्ली हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की थी, जिसमें प्रस्तावक होने की अनिवार्यता दी गई थी। मामले में उन्होंने दिल्ली हाईकोर्ट में कहा था कि उनके भाषण और अभिव्यक्ति के मौलिक अधिकार और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के उनके अधिकार का उल्लंघन किया गया था। हालांकि हाई कोर्ट ने उनके इस तर्क को खारिज कर दिया था। इसके बाद विश्वनाथ प्रताप सिंह ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। सुप्रीम कोर्ट में उन्होंने दिल्ली उच्च न्यायालय के 10 जून के आदेश को चुनौती देते हुए एक याचिका दाखिल की। इसी याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता और न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया की पीठ इसे खारिज कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने शीर्ष अपने आदेश में कहा कि दिल्ली उच्च न्यायालय के समक्ष दाखिल रिट याचिका पूरी तरह से गलत थी और वर्तमान विशेष अनुमति याचिका भी गलत है। चुनाव लड़ने का अधिकार न तो मौलिक अधिकार है और न ही सामान्य कानून। यह एक क़ानून द्वारा प्रदत्त अधिकार है। इस दौरान पीठ ने सुप्रीम कोर्ट के पिछले फैसलों का भी हवाला देते हुए कहा कि याचिकाकर्ता को संसद द्वारा बनाए गए कानून के अनुसार राज्यसभा के लिए चुनाव लड़ने का कोई अधिकार नहीं है। साथ ही पीठ ने अदालत का समय खराब करने के लिए एक लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया है। अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता चार सप्ताह के भीतर उच्चतम न्यायालय कानूनी सहायता समिति को इसका भुगतान करे।
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