जगह-जगह लगता है जमावड़ा, वाहनो की चपेट और बीमारियों से हो रही मौत
बांधवभूमि, उमरिया
इस देश मे सदियों से गाय को माता का दर्जा प्राप्त है। इसका अमृततुल्य, स्वादिष्ट तथा रोग प्रतिरोधक गुणों से भरपूर दूध कैल्शियम की कमी को दूर कर शरीर को ऊर्जा से भर देता है। अध्यात्म और पुराणों मे भी इसे प्रताडि़त करना जघन्य अपराध माना गया है, इसके बावजूद स्वार्थी पशुपालकों तथा शासन की संवदेनहीनता के कारण गौवंश आज सर्वाधिक दुर्दशा का शिकार है। जिले की सड़कों तथा गली, मोहल्लों मे सैकड़ों आवारा गाय-बछड़े भोजन और पानी के लिये भटकते देखे जा सकते हैं। जबकि हाईवे पर आये दिन दर्जनो मूक पशु ट्रकों की चपेट मे आकर बेमौत मरने के लिये मजबूर हैं। इनकी वजह से रोजाना अब तक कई गंभीर दुर्घटनायें भी हो चुकी हैं। जिनमे नकेवल लोग गंभीर रूप से घायल हुए हैं, बल्कि कितनी ही जाने भी चली गई हैं।
दूध छोड़ते ही घर निकाला
गौवंश की इस हालत के लिये उनके पालक ही जिम्मेदार हैं, जिनकी नजर मे गौ तभी तक माता है, जब तक वह दूध दे रही है। दूध छोड़ते ही उसे दूध की मक्खी की तरह निकाल कर घर से बाहर फेंक दिया जाता है। इतना ही नहीं गाय के सांथ उनके बछड़ों को भी घर निकाला मिल जाता है। मजे की बात यह भी है, कि ये स्वार्थी लोग दूर से अपने पशुओं को ताकते रहते हैं। महीनो बाद जैसे ही पता चलता है कि गाय ने बच्चे को जन्म दिया है, वे तुरंत ही उसे घर ले जाते हैं। यह सिलसिला लगातार चलता रहता है।
गंदगी से भरते हैं पेट
मालिक द्वारा त्यागे जाने के बाद गाय, बछड़ों की भारी दुर्गति होती है। अपना पेट भरने के लिये वे कालोनियों तथा बाजार मे भटकते रहते हैं। भूख की वजह से गौवंश सड़कों पर फैले पॉलिथीन, दूषित पदार्थो के अलावा कई प्रकार का कचरा भी खा जाते हैं। इस दौरान प्लास्टिक, कीटनाशक, सर्फ, साबुन यहां तक कि शेविंग क्रीम और ब्लेड जैसी खतरनाक चीजें उनके पेट मे चली जाती हैं। जिससे वे गंभीर बीमरियों का शिकार हो जाते हैं।
जबानी जमाखर्च तक सीमित प्रयास
समाज मे गौरक्षा की बातें तो बहुत होती हैं। कुछ वर्षो से राजनीति मे भी गाय की इण्ट्री हुई है। गौमांस को लेकर बात मारकाट और दंगों तक पहुंच गई। चुनावों के दौरान नेताओं द्वारा भाषण दिये जाते हैं कि गाय की तरफ आंख उठाने वालों को नहीं बक्शा जायेगा, लेकिन उनके खून से लाल होती सड़कों की तरफ किसी का ध्यान नहीं जाता। इसी जबानी जमाखर्च के कारण हालात बद से बदतर हो चुके हैं। सरकार की ओर से गायों की सुरक्षा के लिये कोई ठोस कदम नहीं उठाये जा रहे। कई शहरों मे आवारा पशुओं के लिये उनके मालिकों पर जुर्माना लगाने का प्रावधान है। जिसे जिले मे भी कड़ाई से लागू करने की आवश्यकता है।
बंद हो गये कांजी हाब्स
आवारा पशुओं की समस्या कोई नई नहीं है। कुछ वर्ष पहले तक इससे निपटने के लिये जगह-जगह कांजी हाब्स की व्यवस्था थी, जहां आवारा पशुओं को रखा जाता था। इन स्थानो पर जानवरों को खुराक भी दी जाती थी। देखरेख के लिये बाकायदा कर्मचारी तैनात थे, परंतु धीरे-धीरे इसे समाप्त कर दिया गया। स्थानीय लोगों का मानना है, इस अप्रिय स्थिति से निपटने के लिये कम से कम शहरी इलाकों के आसपास कांजी हाब्स जैसी कोई पहल अत्यंत जरूरी है।
गौवंश के खून से लाल हो रही सड़कें
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