पथरहटा गांव मे बिखरी पड़ी पुरातन महत्व की हजारों प्रतिमाएं
बांधवभूमि, उमरिया। उमरिया जिले का एक ऐसा पथरहटा गांव, जहां खोदाई करने पर जमीन से प्राचीन प्रतिमाएं निकलती रहती हैं। खोदाई मे यहां से निकलने वाली प्रतिमाओं की संख्या हजारों मे पहुंच चुकी है। तमाम प्रतिमाओं को खोदाई स्थल पर ही लावारिस हालत मे छोड़ दिया गया है। क्योंकि प्रतिमाओं को सहेजकर रखने के लिए संग्रहालय नहीं है। स्थानीय लोगों ने कई बार संग्रहालय निर्माण की मांग पुरातत्व विभाग और जिला प्रशासन से की, लेकिन नतीजा सिर्फ रहा। हालत यह है कि जगह-जगह बिखरी प्रतिमाओं के कारण पूरा गांव अघोषित संग्रहालय का रूप ले चुका है। ग्रामीणों ने अपने हिसाब से प्रतिमाओं को संजो कर रखा है।
संग्रहालय बनाने का प्रयास
इतिहास के पुरातत्व के जानकार एडवोकेट पुष्पेन्द्र सिंह अपने स्तर से प्रयासरत हैं कि पथरहठा मे एक संग्रहालय बन जाए। वे ग्राम पंचायत स्तर से संरक्षण संवर्धन के कोशिश कर रहे है। उन्होंने बताया कि हजारों मूर्तियों का ऐतिहासिक एवं पुरातात्विक धरोहर गांव पथरहटा उमरिया जिले के चंदिया रेलवे-स्टेशन से लगभग 7 किमी की दूरी पर स्थित है। यह गांव अपने-आप में एक विशाल संग्रहालय ही है। पथरहटा क्षेत्र का बड़ा गांव है इस गांव के हर घर मे गली-खोरी, खेत-खलिहान मे कल्चुरी काल की मूर्तियां बिखरी पड़ी हैं और जमीन मे दबी हुई हैं। आवश्यकता है कि यहां एक व्यवस्थित संग्रहालय बनाया जाए और इसे बाधवगढ़ टाइगर रिजर्व के पर्यटन से जोड़ा जाए। जिससे देश विदेश से आने वाले पर्यटक पथरहटा संग्रहालय का अवलोकन कर सकें। आदिवासी विश्व विद्यालय अमरकंटक के पुरातात्विक विभाग से मूर्तियों के अध्ययन के लिए चर्चा की गई। जिला शिक्षक प्रशिक्षण विद्यालय उमरिया के बाला सिंह टेकाम, पूर्व प्राचार्य श्रीमती गीता तिवारी और व्याख्याता आरपी साहू, शिक्षक वीरेन्द्र दुबें को शामिल करके एक अध्ययन दल भी बनाया गया था। इसके पूर्व दिल्ली के पूर्व सांसद अनुसूचित जाति जन जाति परिसंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष को भी यह स्थान दिखाया जा चुका है।
इसी जगह होता था पत्थरों की गढ़ाई का काम
उमरिया जिले के चंदिया तहसील क्षेत्र के ग्राम पथरहठा मे जमीन की खुदाई के दौरान भी कलचुरी युग की प्रतिमाएं जमीन से निकल आती हैं। पथहरठा मे असंख्य प्रतिमाएं रखी हुईं हैं जो कल्चुरी काल की हैं और जिनका पुरातात्तिवक महत्व है। पिछले साल भी यहां एक घर के निर्माण के दौरान खुदाई मे जमीन से दो प्रचीन प्रतिमाएं निकली थीं जिन्हें पुरातत्व विभाग को सौंप दिया गया। पुरातत्ववेत्ताओं ने अपनी पुस्तकों मे भी इस बात का जिक्र किया है कि उमरिया जिले मे कल्चुरी शासकों के काल मे देवी भक्ति और शैव भक्ति चरम पर थी। स्व. डॉ. राजेश उपाध्याय नार्मदेय ने अपनी कई पुस्तकों में इस बात का जिक्र किया है कि कल्चुरी नरेश शैव परिवार के उपासक थे और उन्होंने इस क्षेत्र में कई देवी और शिव मंदिरों का निर्माण काराया था। मंदिरों के निर्माण के लिए पत्थरों की गढ़ाई का काम पथरहठा मे हुआ करता था परिणामस्वरूप आज भी जब यहां की जमीन खोदी जाती है तो नीचे से प्रतिमाएं निकलती हैं। व्याख्याता प्रदीप सिंह गहलोत भी बताते हैं कि गांव का नाम पथरहठा इसलिए पड़ा क्योंकि यह स्थान एक तरह से पत्थरों का हाट था।
खोदाई मे जमीन से निकली प्रतिमाओं के लिए नहीं है संग्रहालय
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