कोर्ट के फैंसले ने बढ़ाई “जमीनदारों” की धड़कन
रेलवे को घोषित किया शहर की 4.74 एकड़ आराजी का भूमिस्वामी
बांधवभूमि, उमरिया
अदालत द्वारा दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे विरूद्ध राजेश अग्रवाल, मप्र शासन व अन्य के मामले मे अहम फैंसला सुनाये जाने के बाद शहर के लगभग तीन दर्जन परिवारों के सामने एक बार फिर वर्षो पूर्व अपने खून-पसीने से ली हुई जमीन खोने का खतरा पैदा हो गया है। करीब 18 साल बाद बीती 10 अगस्त 2023 को आये इस निर्णय मे प्रथम व्यवहार न्यायाधीश वरिष्ठ खण्ड उमरिया श्री आरपी अहिरवार ने वादी अर्थात रेलवे को बांधवगढ़ तहसील अंतर्गत छटन कैम्प की खसरा नंबर 1334, रकबा 4.74 एकड़ आराजी का भूमि स्वामी घोषित कर दिया गया है। उल्लेखनीय है कि उपरोक्त भूमि प्रतिवादी राजेश अग्रवाल ने 12 मई 1986 को सुखराम कायस्थ से क्रय की थी। जो 1990 मे 33 लोगों को प्लाटिंग करके बेंच दी गई थी। कुछ समय बाद ही किसी ने इसकी शिकायत कर दी, तब से लेकर क्रेता और विक्रेता कोर्ट के चक्कर काट रहे हैं। घूमते फिरते वर्ष 2005 मे मामला जिला न्यायालय पहुंच गया, जहां पूरी जमीन का मालिकाना रेलवे को देने का फैंसला आ गया है। हलांकि अधिकांश प्रतिवादी इस फैंसले को वरिष्ठ न्यायालय मे चुनौती देने की तैयारी मे जुट गये हैं।
रेलवे का तर्क
रेलवे ने न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत अपने तर्क मे कहा है कि उक्त आराजी जो कि तालाब है, को वर्ष 1940 मे बंगाल-नागपुर रेल्वे (बीएनआर), जो कि वर्तमान मे दक्षिण पूर्व मध्य रेल्वे है, को हस्तांतरित हुआ था। रीवा राज दरबार द्वारा 1883-84 मे रेल्वे स्टेशन व यार्ड हेतु भूमि दी गई थी। खसरा नबर 1334 रकबा 4.74 एकड़ व खसरा नम्बर 167 रकबा 2.15 एकड रेल्वे के पास ही रही है, किन्तु प्रतिवादी राजेश कुमार अग्रवाल, जो कि उमरिया मे रहकर व्यापार करता है, के द्वारा वादी की भूमि को अनाधिकृत रूप से अपने नाम से दर्ज कराकर 33 को लोगों को विक्रय कर दी है। वादी को उक्त भूमि का भूमिस्वामी घोषित करने के सांथ ही राजेश अग्रवाल द्वारा 7490.44 वर्गफिट पर किये गये निर्माण को तोड़ कर भूमि रिक्त कराई जाय।
प्रतिवादी का जवाब
वहीं प्रतिवादी राजेश कुमार अग्रवाल का कहना है कि खसरा नंबर 1334, रकबा 4.74 एकड भूमि पर प्रतिवादी का कोई अवैध कब्जा नहीं था। दिनांक 21/12/1940 से वादग्रस्त भूमि पर सुखराम और उसकी मां काबिज थे। वर्ष 1958-59 की वार्षिक खतौनी मे भी वादग्रस्त भूमि सुखराम के नाम से दर्ज थी। प्रतिवादी ने उक्त भूमि रजिस्टर्ड विक्रय पत्र के आधार पर 10 हजार रूपये मे दिनांक 12 मई 1986 को क्रय की थी। जिसे डायवर्शन कराने के उपरांत जिन लोगों को विक्रय किया गया, उन सभी को जमीन का कब्जा दे दिया गया था। इसमे किसी प्रकार की अनियमितता नहीं की गई है। अब तक जो भी कार्यवाहियां की गई हैं, वे सभी अधिकारिता क्षेत्र के बाहर होने से शून्यवत हैं। अत: वाद निरस्त किया जाय।
सोच-समझ कर करें निवेश
पिछले कुछ वर्षो से अन्य शहरों की तरह उमरिया मे भी अचल संपत्तियों मे निवेश का चलन बढ़ा है। एक ओर जहां मध्यम वर्ग बड़े पैमाने पर जमीन-भवन आदि मे अपना धन लगा रहा है। वहीं नौकरीपेशा और गरीब तबका शासकीय भूमियों का कब्जा लेकर उन पर मकान निर्माण मे अपने जीवन भर की जमा पंूजी खर्च कर रहा है। कई सारे दलाल रिटायर होने वाले कर्मचारियों और अधिकारियों के घर जा कर उन्हे जमीने खरीदने की सलाह दे रहे हैं। जानकारों का मानना है कि रेलवे विरूद्ध राजेश अग्रवाल के मामले मे आया न्यायालय का यह फैंसला उन 33 क्रेताओं ही नहीं सभी लोगों के लिये एक प्रकार की सीख है कि जमीन इत्यादि मे पैसा लगाने से पूर्व उसके दस्तावेजों की भतिभांति जांच जरूर कर लें। ताकि पैसा, समय और मानसिक तनाव से बचा जा सके।